मदन मंजिरी
एक ऐसी कहानी… जो दर्द से शुरू होकर किस्मत की मोड़ पर जाकर बदल जाती है…
गाँव “निमगाव” की कच्ची गलियों में सुबह की धूप ऐसे उतर रही थी, जैसे किसी ने सुनहरी चादर बिछा दी हो।
गाँव छोटा था, पर उसमें धड़कनें बहुत थीं — और उन्हीं धड़कनों के बीच दो दिल बचपन से साथ धड़कते चले आ रहे थे…
मदन और मंजिरी।
दोनों एक-दूसरे के घर के इतने पास रहते थे कि घरों की छतों के बीच से आवाज़ें भी आसानी से पहुँच जाती थीं।
बचपन से स्कूल साथ, रास्ता साथ, हँसना साथ… बस एक चीज़ नहीं पता थी—
कि उनकी धड़कनें भी साथ धड़कती हैं।
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सीन 1 — स्कूल का आख़िरी दिन (बचपन)
मंजिरी मिट्टी से सने हाथ कपड़े पर पोंछते हुए बोली,
“मदन, तू बड़ा होकर क्या बनेगा?”
मदन ने मुस्कुराते हुए कहा,
“जो भी बनूँगा… तुम्हारे जैसे अच्छे दिल वाला तो बनूँगा।”
मंजिरी हँस पड़ी,
“तू तो मजाक बहुत करता है।”
मदन दिल में सोचता रहा— काश मज़ाक न होता… और मैं सच कह पाता।
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सीन 2 — साल बीत गए… मंजिरी का रिश्ता तय
दोनों अब बड़े हो चुके थे।
गाँव में हवा जल्दी-जल्दी खबरें उड़ाती थी, और एक दिन हवा अपने साथ खबर लाई—
"मंजिरी का रिश्ता तय हो गया…"
मदन सुन्न रह गया।
वो शाम को नदी किनारे बैठा था, खामोश।
उसका दोस्त रतन बोला,
“अरे पागल, तू इतना गुमसुम क्यों?”
मदन ने धीमे से कहा,
“कुछ नहीं रतन… बस मन नहीं लग रहा।”
रतन ने कंधे पर हाथ रखकर कहा,
“दिल में जो है उसे बता देता न… शायद किस्मत कुछ और लिख देती।”
मदन ने गर्दन झुका ली।
किस्मत… उसे हमेशा चुप रहने की आदत थी।
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सीन 3 — शादी के बाद की पहली सच्चाई
शादी के बाद जल्द ही गाँव में फुसफुसाहट फैलने लगी—
“भैरव ठीक नहीं है।”
“दारू पीकर रोज़ झगड़ा करता है।”
“बेचारी मंजिरी…”
लेकिन सच किसी को पूरा पता नहीं था…
क्योंकि मंजिरी ने अपनी आँसू खुद के अंदर बंद कर लिए थे।
एक रात…
भैरव लड़खड़ाते हुए घर आया,
और बिना किसी वजह के चिल्लाया—
“तूने खाना क्यों नहीं रखा? तू बेकार औरत है!”
मंजिरी काँपते हुए बोली,
“रखा है… चूल्हे पर है… बस गरम कर देती हूँ…”
पर भैरव ने उसे धक्का दे दिया।
उसका चेहरा फर्श पर टकराया।
होठ फट गए… सिर से खून बहने लगा।
मगर किसी को पता नहीं चला।
उसने किसी को बताया ही नहीं।
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सीन 4 — मदन उसे पहली बार टूटी हुई हालत में देखता है
एक दिन शाम को मदन गाँव की पगडंडी से जा रहा था।
उसने मंजिरी को ओटले पर बैठे रोते देखा।
चेहरा सूजा हुआ… होठ कटे हुए… आँखों में पानी।
मदन का दिल पिघल गया।
वह धीरे से पास बैठा और बोला,
“मंजिरी… क्या हुआ?”
वह चौंक गई, आँसू पोंछकर बोली,
“तू यहाँ क्यों आया? किसी ने देखा तो?”
मदन ने गंभीर स्वर में कहा,
“तू पहले ये बता… किसने मारा है?”
कुछ पल खामोशी रही…
फिर वह फट पड़ी।
“कसम है तुझे… किसी को नहीं बताना। न तेरे घरवालों को… न मेरे। दुनिया क्या बातें बनाएगी, मदन?”
मदन ने सिर हिलाया,
“ठीक है… पर तू अकेली नहीं है।”
उसने पानी दिया।
उसे ढाँढस बंधाया।
पर मन में आग जल रही थी।
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सीन 5 — दो दिन तक मंजिरी गायब… और मदन की बेचैनी
दो दिन तक मंजिरी कहीं नहीं दिखी।
मदन बेचैन था।
रात को भी नींद नहीं आ रही।
“कहीं उसने खुद को नुकसान तो नहीं पहुंचाया…?”
वह बुदबुदाया।
तीसरे दिन वह चुपके से मंजिरी के घर पहुँचा।
भैरव काम पर गया था।
उसने धीरे से आवाज दी,
“मंजिरी…”
भीतर से कमजोर आवाज आई,
“मदन… अंदर आ जा…”
मदन अंदर गया—
और उसे देखकर दहल गया।
उसके सिर पर पट्टी, होठ सूजे हुए, हाथ पर निशान…
मदन ने गुस्से में कहा,
“ये किस हद तक जाएगा? तुम ऐसे कितना सहेगी?”
मंजिरी ने आँसू रोकते हुए कहा,
“मेरी किस्मत है ये… तू बस चुप रह… कोई हंगामा मत करना।”
मदन उसके सामने बैठ गया,
धीरे से उसकी पट्टी बदली, पानी दिया।
वह उसे देखती रही—
उसकी आँखों में एक सुकून था…
जो शायद उसे बरसों से नहीं मिला था।
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सीन 6 — पहली बार दिल से निकली बात
मंजिरी ने अचानक पूछा,
“मदन… तू किस तरह की लड़की से शादी करेगा?”
मदन ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा,
“तुझ जैसी… तेरी परछाई जैसी… बस तू जैसी।”
मंजिरी हंसते-हंसते रो पड़ी।
उस हँसी में दर्द भी था… और चाहत भी।
उस दिन के बाद मदन रोज़ उसकी मदद करता—
दवा, पानी, घर का काम…
बस उसके पास रहना चाहता था।
सच सामने आने से पहले… तूफ़ान आना ही था।
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सीन 1 — भैरव की नज़रें और शक की आग
गाँव में दो ही चीजें तेज़ दौड़ती थीं—
हवा और बात।
कुछ लोग भैरव को चिढ़ाने लगे—
“तेरी बीवी का हाल कुछ ठीक नहीं…”
“कहीं किसी और से तो नहीं मिलती…?”
भैरव शराबी था, पर शक करने में होशियार।
उसने एक दिन दरवाज़े के पीछे छिपकर देखा—
मदन मंजिरी को दवा देता हुआ।
उसकी आँखों में लाल खून उतर आया।
वह दाँत भींचकर बोला,
“अच्छा… तो ये चल रहा है?”
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सीन 2 — तूफान वाली रात
शाम ढलते-ढलते भैरव ने पी रखी थी।
वह तड़पता हुआ घर आया।
मंजिरी पानी भर रही थी जब उसने उसका हाथ जोर से पकड़ा।
भैरव: “कहाँ थी तू? किसके साथ थी?”
मंजिरी: “मैं… मैं घर पर ही थी… तुम क्यों ऐसे बोल रहे हो?”
भैरव: “बोल! मदन क्यों आता है यहाँ?”
मंजिरी: “मदन? वो तो—”
चटाक—
एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर पड़ता है।
भैरव पागल हो चुका था।
भैरव: “आज बताऊँगा गाँव को… तेरी असलियत!”
उसने पकड़कर उसे कमरे में घसीटा।
झगड़ा बढ़ा, चीखें उठीं…
पर गाँव में कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं करता था।
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सीन 3 — मदन का दिल काँप गया
मदन अपने आँगन में बैठा था।
अचानक उसे मंजिरी की चीखें सुनाई दीं।
उसका दिल फट गया।
वह उठकर दौड़ा, पर घर के सामने पहुँचकर ठिठक गया।
गाँव की इज़्ज़त, रिश्तों की मर्यादा…
सब उसे रोक रहे थे।
पर दिल कह रहा था—
“जाए बिना नहीं बैठेगा।”
वह अंधेरे में से दीवार से लगा…
और सुना—
मंजिरी रो रही थी।
उसकी आँखें नम हो गईं।
वह अंदर घुसने ही वाला था कि गाँव के दो बुज़ुर्ग आ गए।
“मदन, क्या कर रहा है तू?”
“किसी और के घरो में घुसना अच्छा नहीं लगता।”
वह रुक गया।
दिल अंदर रो रहा था।
पर वह कुछ कर नहीं पाया।
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सीन 4 — पंचायत की तैयारी
अगली सुबह भैरव बुरी तरह गुस्से में था।
शराब उतरी नहीं थी… और शक बढ़ता जा रहा था।
वह गाँव के चौपाल पहुँचा और चिल्लाया—
“सुनो सब! मेरी बीवी और मदन के बीच कुछ चल रहा है!”
गाँव वाले चौंक गए।
कुछ को मज़ा आया, कुछ को साहस नहीं हुआ कुछ बोलने का।
पंच ने भौंहें चढ़ाकर कहा,
“इस मामले की जाँच होगी। दोनों घरवालों को बुलाओ!”
गाँव गूँज उठा।
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सीन 5 — मदन और उसका परिवार बुलाए गए
मदन घर आया तो उसकी माँ घबराई हुई बोली,
“मदन, भैरव ने तेरे खिलाफ बात उठाई है! पंचायत बुला रही है!”
मदन का चेहरा सफेद पड़ गया।
मदन: “मैंने कुछ गलत नहीं किया माँ…”
माँ: “लोग क्या कहेंगे? गाँव क्या सोचेगा?”
मदन: “मरीज को दवा देना कब से गुनाह हो गया?”
उसके पिताजी भारी आवाज़ में बोले,
“चल, सच बता देंगे। झूठ से डरने की क्या ज़रूरत?”
पर भीतर ही भीतर मदन को डर लगा…
कहीं मंजिरी उसे गलत साबित न कर दे।
वो जानता था भैरव उसे मार देगा।
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सीन 6 — मंजिरी को भी बुलावा
उधर मंजिरी को भी खबर पहुंच गई।
उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
उसने अपनी सास से पूछा,
“माँजी… पंचायत क्यों बुला रही है?”
भैरव ने सामने आकर कहा,
“आज सच्चाई सामने आएगी।”
उसकी आँखें ख़तरनाक थीं।
मंजिरी ने डरते हुए अपने आप से कहा,
“हे भगवान… अगर आज मदन को कुछ हो गया तो…?”
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सीन 7 — पंचायत का माहौल
चौपाल पर सभी जमा थे—
मदन का परिवार, मंजिरी का परिवार, भैरव का परिवार, और पूरा गाँव।
तनाव इतना कि हवा भी भारी लग रही थी।
पंच ने ऊँची आवाज़ में कहा,
“सब शांत रहें। आज सच बाहर आएगा।”
भैरव उठा और बोला,
“मेरी बीवी का अफेयर चल रहा है मदन से।”
गाँव में हलचल मच गई।
पंच ने कहा,
“मंजिरी! तू बोल।”
मदन की धड़कन रुक गई।
वह उसकी ओर देखने लगा।
मंजिरी उठी…
चेहरा डरा हुआ… पर भीतर एक तूफ़ान।
वह मदन की ओर देखकर सोच रही थी—
“क्या मैं सच बोलूँ? तो भैरव मार देगा… झूठ बोलूँ? तो मदन टूट जाएगा…”
उसने गहरी साँस ली।
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सीन 8 — वो थप्पड़ जिसने सारा खेल बदल दिया
मदन हिम्मत करके बोलने खड़ा हुआ—
“पंच साहब, मैं—”
चटाक!
मंजिरी ने सबके सामने मदन को जोरदार थप्पड़ मार दिया।
पूरा गाँव स्तब्ध।
घरवालों की चीख—
“अरे… ये क्या किया तूने मंजिरी?”
मदन की आँखें भर आईं।
लेकिन मंजिरी बोलती चली गई—
“आज के बाद तू हमारे घर के बीच में नहीं आएगा।”
“हमारे रिश्तों पर तू कुछ नहीं बोलेगा।”
“तूने जो देखा… जो सुना… वो किसी को मत बताना!”
मदन चुप हो गया।
टूट चुका था… पर समझ रहा था—
मंजिरी उसे बचा रही है।
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सीन 9 — लेकिन किस्मत ने करवट ली
पंचों ने भैरव से पूछा,
“अब तू क्या चाहता है?”
भैरव गुस्से में चिल्लाया,
“अगर मैं मंजिरी को छोड़ दूँ तो क्या मदन इसे अपनाएगा?”
सन्नाटा…
भैरव सिर्फ गुस्से में बोल रहा था—
उसे उम्मीद नहीं थी कि जवाब मिलेगा।
लेकिन उसी वक्त मदन खड़ा हुआ।
आवाज़ काँप रही थी, पर दिल सच्चा—
“हाँ… अगर तू छोड़ रहा है… तो मैं मंजिरी को अपनाऊँगा।”
गाँव में जैसे भूचाल आ गया।
मंजिरी के घरवाले खड़े हो गए।
मदन के घरवाले भी।
पर सबसे बड़ा झटका मंजिरी को लगा।
उसकी आँखों से आँसू टूट पड़े।
उसने पन्च से कहा—
“अगर ये सच बोल रहा है… तो मैं भी तैयार हूँ।”
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सीन 10 — भाग 2 का अंत
गाँव की पंचायत हिल गई।
सभी एक-दूसरे को देखने लगे।
कुछ को धक्का, कुछ को राहत, कुछ को संतोष।
क्योंकि सब जानते थे—
मदन और मंजिरी बचपन से एक-दूसरे के थे।
सच्चाई जब सामने आती है… कुछ रिश्ते टूटते नहीं—नए बनते हैं।
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सीन 1 — पंचायत में तूफ़ान
मदन और मंजिरी के “हाँ” बोलते ही चौपाल सन्नाटे में जम गई।
पंचों ने एक-दूसरे को देखा।
गाँव वाले एक-दूसरे की ओर झुककर फुसफुसाने लगे—
“ये क्या हो गया…?”
“इतने सालों में पहली बार ऐसा मामला आया है।”
भैरव का चेहरा गुस्से से लाल।
वह दाँत पीसकर बोला—
“ये दोनों मिलकर मुझे बेवकूफ़ बना रहे हैं!”
पंच ने शांत स्वर में कहा,
“भैरव… अब फैसला तू नहीं करेगा, पंचायत करेगी।”
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सीन 2 — मंजिरी का सच
पंचों ने मंजिरी को बुलाया।
वह हिम्मत जुटाकर आगे आई।
पंच ने पूछा,
“मंजिरी, सच्चाई बता। तेरा पति तुझ पर हाथ उठाता था?”
मंजिरी की आँखें भर आईं।
उसने धीरे-धीरे सिर हिलाया।
“हाँ… मुझे बहुत मारा… बहुत सहा… मैं किसी को बताती भी नहीं थी।”
गाँव की औरतें सिसकने लगीं।
एक पञ्च बोला,
“मदन से क्या रिश्ता है तेरा?”
मंजिरी ने बिना हिचक कह दिया—
“रिश्ता? बचपन का… दोस्ती का… भरोसे का।
प्यार कभी जुबान पर नहीं आया…
पर दिल में था… दोनों के।”
मदन नीचे देखता रहा, पर ये बात सुनकर उसकी आँखें भीग गईं।
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सीन 3 — मदन की सच्चाई
अब पंचायत ने मदन को बुलाया।
पंच: “मदन, तू क्यों कहता है कि तू इसे अपनाएगा?”
मदन: “क्योंकि मैं इसे बचपन से जानता हूँ।
क्योंकि ये दुख में है… और मैं इसे दुख में नहीं देख सकता।”
एक बुज़ुर्ग बोले,
“लेकिन गाँव क्या सोचेगा?”
मदन ने सीधा जवाब दिया—
“गाँव सोचे जो सोचे…
मेरे लिए मंजिरी की इज़्ज़त सबसे ऊपर है।”
पूरे चौपाल में सन्नाटा फैल गया।
किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि मदन इतनी हिम्मत से बोलेगा।
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सीन 4 — भैरव की आखिरी वार
भैरव बेकाबू होकर उठा और चिल्लाया—
“अगर ये औरत मुझे चाहे तो मैं नहीं छोड़ूँगा!
और अगर मुझे छोड़ रही है…
तो इसके पीछे ये लड़का है!”
वह मदन के पास पहुँचकर उसे धक्का देता है।
पुरुष उसे रोकते हैं।
मंजिरी चीखती है—
“भैरव! प्लीज़… रुक जाओ! अब बस!”
भैरव गुर्राकर कहता है—
“चल मंजिरी… घर चल… तू मेरी बीवी है!”
मंजिरी सख्त आवाज़ में बोली—
“मैं अब तेरी बीवी नहीं हूँ।
मैं सिर्फ एक औरत हूँ…
जो अपने लिए फैसला कर रही है।”
गाँव की औरतें पहली बार उसके लिए ताली बजाईं।
भैरव चौंक गया।
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सीन 5 — पंचायत का फैसला
पंचों ने आपस में बैठकर बात की।
लंबी चर्चा चली।
फिर प्रधान ने घोषणा की—
**“भैरव… तू अपनी पत्नी पर अत्याचार करता है।
तेरा विवाह अब अमान्य किया जाता है।
मंजिरी और मदन की रज़ामंदी से उनका विवाह मान्य किया जाएगा।”**
गाँव में हलचल मच गई।
भैरव ने सिर पकड़ लिया—
“मेरे साथ धोखा हुआ! ये दोनों मुझे बदनाम कर रहे हैं!”
पंच बोले—
“धोखा तूने किया है… आज सच्चाई बस सामने आ गई।”
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सीन 6 — जब मंजिरी ने अपनी बात रखी
पंच बोलते हैं,
“मंजिरी, तू भी कुछ कहना चाहती है?”
मंजिरी सबके सामने खड़ी हुई।
“मैंने कभी गलत रास्ता नहीं चुना।
मैंने बस सहा… और बस रोई।
आज पहली बार मैंने अपने लिए आवाज़ उठाई है।
अगर मदन नहीं होता… तो शायद मैं जिंदा नहीं होती।”
गाँव वाले हैरान थे कि इतनी शांत रहने वाली लड़की इतनी मजबूत कैसे हो गई।
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सीन 7 — मदन का प्रस्ताव
मदन धीरे से मंजिरी के पास आया।
सबकी नज़रें उन दोनों पर थीं।
मदन ने काँपते हुए कहा—
“मंजिरी… अगर तू चाहे… तो मैं तेरे साथ ज़िंदगी बिताना चाहता हूँ।”
मंजिरी की आँखें भर आईं।
वह धीरे से बोली—
“मैंने कभी अपने लिए कुछ माँगा नहीं…
आज बस एक बात कहूँगी…
हाँ… मैं चाहती हूँ।”
गाँव में साँसें थम गईं।
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सीन 8 — दो घरों का मेल
मदन के माता-पिता उठे और मंजिरी के माता-पिता के पास गए।
मदन की माँ:
“हम मंजिरी को अपनाने को तैयार हैं।
वो हमारे घर की बेटी बनकर आएगी… बहुत प्यार से।”
मंजिरी की माँ:
“और हम भी मदन को दामाद नहीं… बेटा मानेंगे।”
दोनों परिवारों ने एक-दूसरे के गले लगकर रोना शुरू कर दिया।
गाँव वाले हैरान भी थे… और खुश भी।
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सीन 9 — भैरव का अंत
भैरव अकेला बैठा रह गया।
उसके घरवाले तक उससे मुंह मोड़ चुके थे।
एक बुजुर्ग ने कहा—
“शराब तेरे घर को खा गई भैरव… और तूने उसे बचाया नहीं।”
भैरव सन्न बैठा रहा…
उसके पास अब रोने के अलावा कुछ नहीं था।
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सीन 10 — भाग 3 का अंत
गाँव के इतिहास में पहली बार—
एक औरत ने अपने लिए आवाज़ उठाई थी।
और एक लड़के ने पूरी पंचायत के सामने उसके साथ खड़े होकर प्यार को इज़्ज़त दी थी।