In Case Of Emargency in Hindi Human Science by Raj Phulware books and stories PDF | इन केस ऑफ इमरजेंसी

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इन केस ऑफ इमरजेंसी

इन केस ऑफ इमरजेंसी

अध्याय एक: युद्ध की गरज

तोपों की गर्जना से पूरा आसमान काँप रहा था. गोलियों की बौछारें और बमों के धमाके चारों ओर गूँज रहे थे. हवा में धुआँ, बारूद और मौत की गंध तैर रही थी.
मेजर रंजीत सिंह अपने हेलमेट को कसकर पहनते हुए बोले —

> “ टीम अल्फा! पोजिशन लो! दुश्मन की पोस्ट नॉर्थ- ईस्ट तीन सौ मीटर पर है — तैयार रहो!



उनके आदेश पर सैनिक जमीन पर झुक गए, बंदूकों के ट्रिगर पर उंगलियाँ तनी हुईं.

> सिपाही अर्जुन ने कहा, सर, उनके पास हेवी मशीनगन है. हमें बायें तरफ से घुसना होगा।



मेजर ने शांत आवाज में जवाब दिया, मुझे पता है, सिपाही. पर डर मत. हम भारतीय हैं, पीछे हटना हमारे खून में नहीं।

एक जोरदार धमाका हुआ, मिट्टी और पत्थर हवा में उछल गए. कुछ सैनिक गिर पडे.

> “ सिपाही राकेश. राकेश! मेजर चिल्लाए, लेकिन जवाब नहीं आया.



सर, वो गया. किसी ने धीमी आवाज में कहा.

रंजीत सिंह की आँखों में एक पल के लिए दर्द झलका, लेकिन उन्होंने तुरंत खुद को संभाला.

> “ शहीद हुए हैं वो, मरे नहीं. चलो, उनके नाम पर आगे बढो!



उन्होंने अपने जवानों को इशारा किया और कहा —

> “ मेरे पीछे कोई नहीं आएगा. मैं आगे जाऊँगा, तुम लोग कवर दो।



अध्याय दो: दुश्मन की सीमा में

रात का अंधेरा फैल चुका था. चारों ओर सिर्फ बमों की रौशनी और धुएँ का कुहासा था.
रंजीत सिंह अपनी टीम के साथ दुश्मन की सीमा में दाखिल हुए. हर कदम सोच- समझकर रखा जा रहा था.

> अर्जुन फुसफुसाया, सर, हम बहुत अंदर आ गए हैं।



जानता हूँ, बेटा, मेजर बोले, पर जो काम शुरू किया है, वो खत्म किए बिना लौटना नहीं।

उन्होंने दुश्मन के बंकर को देखा — चार पहरेदार, एक मशीनगन.
रंजीत ने इशारा किया. दो जवान बायीं ओर, दो दायीं ओर खिसक गए. एक ही पल में गोलियों की झडी लगी, और बंकर साफ हो गया.

> “ क्लियर! अर्जुन ने कहा.



मेजर मुस्कुराए, अच्छा काम. अब अंदर चलते हैं।

अचानक — धमाका!
एक जोरदार ब्लास्ट ने सब कुछ हिला दिया. आग की लपटें उठीं.
सब कुछ धुंधला पड गया.

अध्याय तीन: मौन के बीच

जब रंजीत को होश आया, तो आसमान अजीब सन्नाटे में डूबा था. शरीर में दर्द था, सिर से खून बह रहा था. उन्होंने इधर- उधर देखा — कोई नहीं.
सिर्फ पेड, धुआँ, और दूर जलता हुआ बंकर.

> “ अर्जुन. प्रकाश. कोई है? उन्होंने पुकारा.



लेकिन सिर्फ हवा की आवाज थी.

वो उठने की कोशिश करते हैं, लेकिन गिर जाते हैं. धीरे- धीरे उन्होंने खुद को सँभाला और बैठ गए.
उनकी घडी टूटी हुई थी. रेडियो चुप था.
उनकी यूनिफॉर्म जली हुई थी, और जेब में सिर्फ तीन चीजें थीं —
एक चाकू, एक बंदूक( जिसमें सिर्फ एक गोली) और थोडा सूखा राशन.

> “ लगता है. ये ब्लास्ट हमें अलग कर गया, उन्होंने खुद से कहा.



ठीक है रंजीत, अब तेरा साथ सिर्फ तू खुद है।

अध्याय चार: जंगल का कैदी

रंजीत को समझ नहीं आया कि वो कहाँ हैं. दूर से पक्षियों की आवाजें, झाडियों की सरसराहट, और कभी- कभी किसी जानवर की गर्जना सुनाई देती थी.
वो धीरे- धीरे चलते रहे, दर्द के बावजूद.

सूरज ढल रहा था. उन्होंने एक बडे पेड के नीचे आश्रय लिया.
अपने चाकू से पास की शाखाएँ काटीं, और दो शाखाओं के बीच अस्थायी छत बना ली.

> “ कम से कम सिर पर कुछ तो रहेगा, वो बडबडाए.



भूख लगी थी. उन्होंने झरने के पास कुछ फल देखे.
एक फल उठाकर बोले —

> “ पता नहीं जहरीला है या नहीं. पर अब भूख ज्यादा जहरीली लग रही है।



उन्होंने फल खा लिया.

रात में जंगल और भी डरावना लगने लगा. जानवरों की आवाजें, पत्तों की सरसराहट — सब कुछ जैसे किसी अदृश्य दुश्मन का अहसास दिला रहा था.
फिर भी, रंजीत ने अपनी बंदूक पास में रखकर आँखें बंद कीं.

> “ जय हिंद, उन्होंने धीरे से कहा, कल सुबह फिर कोशिश करेंगे।



अध्याय पाँच: जंग और जज्बा

अगले दिन उन्होंने एक नदी देखी. पानी में मछलियाँ तैर रही थीं.
उन्होंने अपनी कमरबंद से एक धागा निकाला, उस पर काँटा बनाया, और मछली पकड ली.

> “ सैनिक कभी हार नहीं मानता, वो मुस्कुराए.
चाहे दुश्मन बंदूक वाला हो या भूख।



उन्होंने लकडी से आग जलाई, मछली भूनी और खाई.
उनके चेहरे पर सुकून की झलक आई — लेकिन वही पल था जब झाडियों में हलचल हुई.

एक बाघ!
रंजीत तुरंत उठे, बंदूक तानी — पर सिर्फ एक गोली थी.
उन्होंने गहरी सांस ली और गोली हवा में चलाई.
धमाके की आवाज से बाघ पीछे हट गया और जंगल में गायब हो गया.

> “ धन्यवाद भगवान, उन्होंने राहत की सांस ली, ये आखिरी गोली थी।



अध्याय छह: जहर और जडी- बूटी

तीसरे दिन दोपहर को वो चलते हुए गिर पडे.
उनके पैर पर कुछ चुभा था — एक साँप!
जहर चढ रहा था.

> “ नहीं. अभी नहीं. उन्होंने खुद से कहा.



उन्होंने अपनी बेल्ट खोली, पैर कसकर बाँधा, और चाकू से हल्की cut लगाकर जहर निकालने की कोशिश की.
उन्हें याद आया — Training के वक्त सिखाया गया था, सैनिक सिर्फ लडाई नहीं लडता, जिंदगी भी सीखता है।

पास में कुछ पत्तियाँ थीं जिन्हें उन्होंने पहचान लिया — एंटीवेनम पौधा.
उन्होंने उसे चबाकर जख्म पर लगाया.

कुछ घंटों में दर्द कम हुआ. वो बेहोश हो गए.

जब जागे, तो शाम हो चुकी थी. आसमान में चाँद था, और हवा ठंडी.
उन्होंने आसमान की ओर देखा और बुदबुदाए —

> “ हे भगवन, मेरी टीम को सुरक्षित रखना. और अगर मैं बचा रहा, तो बस एक बार अपने देश का झंडा फिर से सलाम कर लूँ।



अध्याय सात: उम्मीद की लौ

दिन बीतते गए. वो जंगल के रास्तों को याद करते गए, पहाडों के निशानों से दिशा तय करते रहे.
खाने को जडें, पीने को बारिश का पानी.

एक दिन उन्हें एक पुराना लाल कपडा मिला — शायद किसी गाँव का झंडा था.
उन्होंने एक लंबी लकडी ली और कपडा बाँध दिया.

> “ अगर कोई ऊपर से देखेगा, तो शायद समझेगा कि कोई यहाँ जिंदा है।



उन्होंने ऊँचाई पर चढकर वो झंडा लगाया और जोर से चिल्लाए —

> “ यहाँ कोई है! मैं इंडियन आर्मी से हूँ!



कोई जवाब नहीं आया. लेकिन उस दिन उनकी आँखों में उम्मीद लौट आई.

अध्याय आठ: आसमान से आवाज

पाँचवे दिन दोपहर में, दूर से आवाज आई —
व्हूप- व्हूप- व्हूप!
वो हेलीकॉप्टर की थी!

रंजीत भागकर खुले इलाके में पहुँचे, और लाल कपडा लहराने लगे.

> “ यहाँ! यहाँ नीचे! वो चिल्लाए.



हेलीकॉप्टर थोडी देर मंडराया, फिर सिग्नल छोडा —
मेजर रंजीत सिंह — लोकेशन कन्फर्म्ड।

रंजीत मुस्कुराए, और घुटनों पर बैठ गए.

> “ जय हिंद. उन्होंने आँसू रोकते हुए कहा, मिशन पूरा हुआ।



अध्याय नौ: वापसी

जब वे बेस कैंप पहुँचे, तो सभी अधिकारी और सैनिक सलामी में खडे थे.
कमांडर ने उनके कंधे पर हाथ रखा.

> “ मेजर, हमें लगा था आप शहीद हो गए हैं।



रंजीत ने हल्की मुस्कान दी, देश के लिए जो मरता है, वो मरा नहीं होता सर. बस इंतजार कर रहा होता है, फिर से लडने का।

उनके जख्मों का इलाज हुआ, और उन्हें छुट्टी पर भेजा गया.
घर पहुँचने पर उनकी पत्नी की आँखों में आँसू थे.

> “ तुम जिंदा हो.



हाँ, उन्होंने कहा, मौत भी सोच में पड गई थी — ले जाऊँ या सलाम करूँ।

बच्चे उनसे लिपट गए.
घर की दीवार पर लटकती उनकी यूनिफॉर्म अब और भी चमकदार लग रही थी.

अध्याय दस: एक सैनिक की कहानी

सालों बाद, रिटायरमेंट के बाद, मेजर रंजीत सिंह शाम को अपने पोते- पोतियों के साथ बैठते और वही कहानी सुनाया करते थे —
कैसे उन्होंने जंगल में दिन- रात जिया, कैसे एक गोली से बाघ को भगाया, कैसे उम्मीद ने उन्हें जिंदा रखा.

> पोता पूछता, दादाजी, आपको डर नहीं लगा था?



वो मुस्कुराते, डर तो सबको लगता है, बेटा. पर देश से बडा डर कोई नहीं।

दीवार पर उनकी तस्वीर लगी थी — मेडल्स चमक रहे थे.
नीचे लिखा था —
मेजर रंजीत सिंह — इन केस ऑफ इमरजेंसी।

और हर बार जब कोई उनसे पूछता कि“ इसका मतलब क्या है?
वो बस इतना कहते —

> “ जब जिंदगी और मौत के बीच फैसला करना हो,
तब सैनिक के दिल में सिर्फ एक बात होती है —
देश पहले, बाकी सब बाद में।



जय जवान, जय भारत.