🌸 क्रॉस कनेक्शन
🌸लेखक – राज फुलवरे
यह वह दौर था जब फोन और खत दोनों ही लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा हुआ करते थे।ट्रेन की खिड़की से आती ठंडी हवा, डिब्बे में बजते लोकगीत और बाहर दौड़ते खेत — इन्हीं के बीच “गोंदिया एक्सप्रेस” में तीन मुसाफिर सफर कर रहे थे — राज, अंजली वर्मा (गांव वाली) और अंजली वर्मा (शहर वाली)।राज, भोपाल से दिल्ली जा रहा था — अपनी नई नौकरी के सिलसिले में।अंजली (गांव वाली) बालाघाट की रहने वाली थी, अपने भाई के इलाज के लिए दिल्ली जा रही थी।वहीं दूसरी अंजली (शहर वाली) भोपाल की रहने वाली, एक मार्केटिंग कंपनी में काम करती थी।तीनों एक ही डिब्बे में, और संयोग से — तीनों की सीटें एक ही पंक्ति में थीं।सफर लंबा था, बातों का सिलसिला भी लंबा हो गया।राज और दोनों अंजलियों में हँसी-मज़ाक, किस्से, ज़िंदगी की बातें शुरू हो गईं।गांव वाली अंजली की आँखों में सादगी थी, बोलचाल में मिठास।शहर वाली अंजली की बातों में आत्मविश्वास था, और हर शब्द में थोड़ा सा स्टाइल।राज दोनों की बातों में खो गया — उसे लगा, दोनों अपने-अपने अंदाज़ में खूबसूरत हैं।दिल्ली के करीब आते-आते दोनों अंजलियाँ अलग-अलग स्टेशन पर उतरने की तैयारी करने लगीं।भीड़ और हड़बड़ी में, उन्होंने अपनी फाइलें और बैग समेटे।पर अनजाने में दोनों की फाइलें राज के बैग में रह गईं।ट्रेन के हॉर्न और भीड़ के बीच कोई कुछ समझ नहीं पाया।दिल्ली पहुँचकर जब राज ने बैग खोला, तो उसे दो फाइलें मिलीं —एक में मेडिकल रिपोर्ट्स और खत का पता था, दूसरी में कंपनी के कागजात और एक आईडी कार्ड।दोनों पर लिखा था — “अंजली वर्मा”।राज ने सोचा, दोनों एक ही लड़की की फाइल हैं, इसलिए उसने एड्रेस देखकर पार्सल भेज दिया —पर वह फाइल शहर वाली अंजली की थी, और एड्रेस गांव वाली अंजली का था।कुछ दिन बाद गांव की अंजली के घर एक पार्सल आया।वह चौंक गई — कागजात किसी दूसरी अंजली के थे, लेकिन उसमें एक चिट्ठी थी —“आपके कागजात मुझे ट्रेन में मिले, लौटाने भेज रहा हूँ — आपका दोस्त, राज।”गांव वाली अंजली ने धन्यवाद देने के लिए खत लिखा — क्योंकि उसके पास फोन नहीं था।वहीं दूसरी अंजली (शहर वाली) को अपनी फाइल न मिलने पर गुस्सा आया, लेकिन उसने भी उस नंबर पर कॉल किया जो फाइल में लिखा था — वो नंबर राज का था।अब शुरू हुआ असली क्रॉस कनेक्शन —राज खतों के ज़रिए गांव वाली अंजली से बातें करने लगा,और फोन के ज़रिए शहर वाली अंजली से।दोनों के बीच भावनाएँ बढ़ने लगीं, लेकिन उसे पता नहीं था कि दो अलग अंजलियाँ हैं।गांव वाली अंजली के खतों में सादगी थी —“आपसे बात करके दिल हल्का लगता है, जैसे कोई अपना पास बैठा हो।”राज हर बार जवाब में कुछ रोमांटिक शब्द लिख देता —“कभी सोचा नहीं था, कोई चिट्ठी इतनी हसीन हो सकती है।”वहीं फोन पर शहर वाली अंजली हँसते हुए कहती —“राज, तुम पुराने ख्यालों के हो या मॉडर्न?”राज जवाब देता — “शायद दोनों, दिल खत लिखना जानता है, लेकिन उँगलियाँ कॉल लगाना भी।”महीनों तक दोनों रिश्ते अलग-अलग रूप में चलते रहे —एक सादगी की कहानी, दूसरी आधुनिक मोहब्बत की।राज को लगता रहा, ये दोनों एक ही अंजली हैं —जो कभी खतों में, कभी फोन में बदल जाती है।आखिरकार, तीनों ने मिलने का निर्णय लिया —मुंबई के बांद्रा में “मन्नत” के सामने।वो जगह, जहाँ सपने और सच्चाई एक साथ खड़ी रहती हैं।राज वहां पहुँचा — दो अंजलियाँ एक-दूसरे के सामने थीं।दोनों मुस्कुरा रहीं थीं, और राज हैरान था।गांव वाली बोली — “आप वही हैं जिनसे मैं खतों में बात करती थी?”शहर वाली हँसी — “और मैं वो, जो फोन पर तुम्हें तंग करती थी।”राज कुछ पल चुप रहा, फिर मुस्कुराया —“शायद यही ज़िंदगी का असली क्रॉस कनेक्शन है… दो नाम, दो रास्ते, और एक दिल।”उस दिन तीनों ने एक कप चाय साथ पी।कोई रिश्ता तय नहीं हुआ, लेकिन एक कहानी पूरी हो गई —जहाँ तकनीक और तन्हाई एक ही धागे में बंध गए।💌 “कभी-कभी ज़िंदगी के सबसे सुंदर रिश्ते, गलती से जुड़ जाते हैं।” 💫