: : प्रकरण : : 17
अजय कुमार के साथ जो हुआ था.
यह बात उन का अहम सह नहीं पाया था.
और उन्होंने अपनी जात दिखाई थी. मुझे उन की कंपनी में जोब मिला था.. यह सुनकर वह वहाँ भी पहुंच गये थे. और मैनेजमेंट को मेरे खिलाफ भड़काया था :
" उस से बचकर रहना वह यूनियन जैसी तूफानी हरकत करने वालों से. "
मुझे उस का पता नहीं था. मैं खुद वहाँ से निकल गया था.
सुहानी के ममेरे देवर की बदौलत मुझे शेठ ब्रदर्स की ओफिस में जोब मिला था., जो मेरे लिये हर तरह से फायदे मंद साबित हुआ था. मेरा पगार भी अच्छा था, मुझे एक्सपोर्ट ओफिसर का दर्जा प्राप्त हुआ था. और मैंने टाइपिंग करना भी छोड़ दिया था.
कुछ लोगो ने मेरे साथ गलत व्यवहार करने की झूल्लत की थी तो मैंने उलटे हाथ लिया था. उस के साथ भगवान ने मुझे श्रेष्ठ उपहार दिया था.
कंपनी ने स्टेनो ग्राफर टाइपिस्ट की पोस्ट पर एक लड़की को नियुक्त किया था.
उस के पहले ही दिन हम दोनों ओफिस के दरवाजे पर मिल गये थे. हम दोनों ने आपस में ' गुड मोर्निंग ' भी विश किया था.
उस से पहला काम करवाने का शुभ मौका भगवान ने मुझे बक्षा था:
मैंने अगले ही दिन एक लेटर का ड्राफ्ट तैयार कर के रखा था जो टाइपिस्ट रश्मि से करवाना था. जो आई नहीं थी. तो मैंने उसे नई लड़की से करवाने का सोच कर ओपरेटर करिश्मा को इंटर कोम पर सूचित किया था.
" प्लीझ! सेंड न्यू गर्ल टु मी.. "
और कुछ देर में वह लड़की शोर्ट हैंड बुक और पेंसिल लेकर मेरे सामने आकर ख़डी हो गई थी.
मैंने हल्की सी मुस्कान के साथ उसे. आवकार दिया था.. और सामने वाली खुर्शी में बैठने का इशारा करते हुए सवाल किया था :
" वोट ईझ योर गुड़ नेम? "
" फ्लोरा डी' सोजा! "
उस ने गुजराती ढंग से साड़ी परिधान की थी, जिस ने मुझे यह मानने को प्रेरित किया था.
" केन यु टाइप धिस लेटर फोर मी? "
" स्योर! मैं उसी के लिये तो आई हूं. "
मैंने लेटर का ड्राफ्ट उस के हाथों में थमा दिया.
उस ने एक नजर उस पर डाली.
" मेरे राइटिंग तो पढ़ सकती हो ना? "
" वैसे तो कोई प्रोब्लेम नहीं हैं. "
" फिर भी कुछ प्रोब्लेम हो तो पूछ लेना. "
" ओ के ! "
कह कर वह ड्राफ्ट लेकर चली गई थी.
कुछ देर में वह वापस आई थी.
उस को एक शब्द समझ नहीं आया था.
वह पूछने आई थी.
मैंने उसे जवाब दिया था. और वह चली गई थी.. और दस मिनिट में लेटर टाइप कर के मेरे पास आई थी. मैंने उसे सौजन्य दिखाते हुए सवाल किया था.
" तुम खुद क्यों आई? किसी प्यून के हाथों भेज दिया होता तो चलता था.
" नहीं सर यह मेरा काम था तो खुद आना मेरा फ़र्ज था."
उस ने मुझ से सर कहकर बुलाया था. उस पर मैंने एतराज जताया था और मेरा नाम बताकर उस नाम से बुलाने का आग्रह किया था.
ईश्वर ने सचमुच मेरे लिये एक अनमोल तोहफा भेजा था. बहुत ही जल्दी हम दोनों के बीच गजब का ट्यूनिंग हो गया था.
एक दिन शाम को मुझे ओफिस के काम के लिये बाहर जाना था. उस वक़्त फ्लोरा भी निकलने को तैयार ख़डी थी. उस ने तबियत ठीक ना होने की शिकायत की थी. मैं टेक्सी में जानेवाला था.. वह भी जोगानुजोग उसी का ही इलाका था. मैंने उसे टेक्सी में लिफ्ट दिया था. मैं तो उसे घर तक पहुंचाना चाहता लेकिन उस की मम्मी पसंद नहीं करेगी. ऐसा कहां तो मैंने उसे गली के नुक्कड़ पर छोड़कर अपने काम पर चला गया था.
दूसरे दिन वह ओफिस नहीं आई थी. इस लिये मुझे चिंता हो रही थी.
उस की सगाई हो गई थी. उस का मंगेतर हप्ते में दोबारा उसे मिलने और पिक अप करने ओफिस आता था. फ्लोरा ने हम दोनों का परिचय करवाया था..
उन्ही दिनों मेरा जन्म दिन आ रहा था. इस अवसर पर मैंने फ्लोरा को गुजारिश की थी.
" कल तुम परमेश्वर को ओफिस बुलाओगी?
" क्यों क्या बात हैं? "
" कल 13 दिसंबर हैं और मेरा बर्थ डे हैं! "
" वाह क्या बात हैं 16 तारीख को मेरा भी बर्थ डे हैं.."
और दूसरे दिन परमेश्वर ओफिस में हाजिर हो गया था.
हम लोग तुरंत टेक्सी कर के चर्च गेट पहुंच गये थे. मैंने दोनों को उन की पसंद की आइटम्स खिलाई थी. बाद में परमेश्वर के लिये कोल्ड कॉफ़ी, मेरे लिये चाय और फ्लोरा के लिये मेंगोला ओर्डर किया था.
हम लोग एक घंटे से ज्यादा समय साथ में थे.. हम तीनो के बीच बहुत सारी बातें हुई थी. उस वक़्त परमेश्वर ने बताया था. उस ने पासपोर्ट के लिये आवेदन किया हैं.
वह एक स्वप्नशील युवान था. वह विदेश जाकर अपने परिवार के लिये खूब धन कमाना चाहता था.. उन की सारी इच्छाये पुरी करना चाहता था.
निकलते समय उस ने फ्लोरा के बर्थ डे में शामिल होने का निमंत्रण दिया था और हमारे सारे परिवार को चर्च गेट स्टेशन बुलाया था..
आरती तो बच्चों को लेकर कोई फंक्शन में शामिल होने अपने मायके जाने वाली थी.. तो वह तो शामिल नहीं हो सकते थे.
इस स्थिति में अकेला ही चर्च गेट स्टेशन पहुंचा था. मैंने एक घंटे से ज्यादा इंतजार किया था.. वह तो नहीं आये थे लेकिन कोई मेसेज नहीं आया था. कया हुआ होगा? मुझे चिंता हो रही थी. आरती देर से घर आनेवाली थी.
घर जाकर क्या करूंगा? अकेला घर में बोर हो. जाऊंगा. यह सोचकर मैं इरोझ थियेटर में फ़िल्म देखने बैठ गया था.
अंग्रेजी फ़िल्म थी जो जल्दी पुरी हो गई थी और मैं 09-30 को घर पहुंच गया था. फिर भी उन दोनों के ना आने को लेकर मैं तब भी चिंतित हो रहा. था..
मैंने आरती को भी सब कुछ बताया था. वह लोग नहीं आये थे. यह सुनकर वह भी परेशान हो गई थी. दोनों चोक्कस थे. जो बोलते थे, वह सदा करते थे.. आज पहली बार उलटा हुआ था. उस की कोई वजह थी, यह ख्याल हम दोनो को परेशान कर रहा था.
क्या हुआ था? इस सोच में नींद भी दुश्मन बन गई थी.
सच्चाई जान के लिये दूसरे दिन सुबह फ्लोरा को मिलना आवश्यक हो गया था.
0000000000000 (क्रमशः)