Yaado ki Sahelgaah - 16 in Hindi Biography by Ramesh Desai books and stories PDF | यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (16)

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यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (16)


                    : : प्रकरण : : 16

        उन दिनों उन के सब से छोटे भाई की शादी होने वाली थी. हमे सह परिवार शादी में आमंत्रित किया गया था

         उस वक़्त एक बात बाहर आई थी. विजय कुमार की बीवी को मैं पहचानता था. हम दोनों साथ में खेले थे. हमारे बाजु के घर में उस की नानी मा का घर था. वह अक्सर आती थी. इस वजह से हमारे बीच दोस्ती हो गई थी.

      ओफिस में ज्यादातर लड़कियो को काम दिया जाता था. यह विजय कुमार की ऐयासी की मेहेरबानी थी.

       उस में दो केथोलिक लड़कियां शामिल थी. 

       एक का नाम सिसिल्या था और दूसरी जोकिना.

       दोनों मेरे बहुत करीब थी. हम लोग अपनी सभी बातें शेयर करते थे. मेरे कहने पर वह दोनों मेरे घर पर आये थे. उन से मिलकर घर वालों को खुशी मिली थी.

      अजय विजय को हमारी दोस्ती के बारे में पता था.. हमारे रिश्ते से उन्हें जलन होती थी.

      उस के अलावा एक और लड़की थी वह भी केथोलिक बिरादरी से थी. उस के साथ भी मेरी अच्छी बनती थी. वह देखने में काफ़ी खूबसूरत थी. विजय कुमार की उस पर नजर थी. वह उसे अपनी वासना का शिकार बनाना चाहते थे, लेकिन उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई थी.

       विजय कुमार उसे जोब से बर्खास्त करना चाहते थे. लेकिन उस की कोई ठोस वजह नहीं थी.

        उन दिनों एक नई लड़की को नियुक्त की गई थी.. इस लिये डोना को बाहर करने की विजय कुमार को वजह मिल गई थी. लेकिन वह अपना नाम ख़राब नहीं करना चाहते थे.. इस लिये उन्होंने मुझे बकरा बनाने की कोशिश में सवाल किया था.

        " स्टाफ बढ़ गया हैं, इस स्थिति में किसी एक को निकालना जरुरी हो गया हैं.. श्रुति और डोना.. दोनों में से किसी एक को बाहर करना पड़ेगा. तुम्हारे हिसाब से किसे निकालू? "

        " यह फैंसला तो खुद आप को करना हैं. आप मेरे को क्यों पूछ रहे हो? "

         " आप अनुभवी हो, सीनियर हो आप जानते हो.. इस लिये आप की राय उपयोगी हो सकती हैं. "

      " यह तो मैं स्पष्ट रूप से कह नहीं सकता. लेकिन काम करने में कौन बढ़िया है? ऐसा पूछो तो नई लड़की बढ़िया हैं! उस ने कम समय में बहुत कुछ पिक अप कर लिया हैं. "

       बस वह मेरे बोलने की राह देख रहे थे.

       दूसरे दिन विजय कुमार ने डोना को जोब से बर्खास्त कर दिया था.

       उस के बाद एक बार डोना मुझे स्टेशन पर मिल गई थी. उसे अच्छा जोब मिल गया था. उस ने मुझे बताया था.

        उस ने होटल में एक रात बिताने की बात की थी. उस के लिये 5000 देने को भी तैयार हो गया था. लेकिन मैंने उस की बात नहीं मानी थी. इस लिये दूसरी लड़की की नियुक्ति की थी जो कम उम्र में बेवा हो गई थी. उस पर तरस खाकर विजय कुमार ने मुझ से ज्यादा सैलरी देकर काम पर ऱख लिया था और पहले दिन उसे होटल ले गया था. उस के साथ रात गुजारी थी बदले में 2000 रूपये दिये थे. उस के अलावा वह ज़ब चाहे जो पैसे मांगे उसे देता हैं. "

       विजय कुमार के कारनामें ने मुझे चकित कर दिया था.

       हम लोग जहाँ बैठते थे वह केवल एक मामूली केबिन थी जो किसी बड़ी कंपनी के हिस्से की थी और अजय विजय वहाँ पेइंग गेस्ट थे. विजय कुमार के कारनामें से उन का नाम ख़राब होता था. इस स्थिति में उन्होंने प्रेम सन को खाली करने का नोटिस दिया था

      और बाद में बड़ी जगा में प्रेम सन ने अपना धंधा जारी रखा था.

       वहाँ विजय कुमार अपने गंदे कारनामो के लिये वोश रूम, टॉयलेट का इस्तेमाल करता था.

       प्रेम सन का ओफिस एक मरघट, स्मशान जैसा था जो कभी भी बंध नहीं रहता था.

      एक बार गणेश चतुर्थी के त्यौहार पर सब लोग छुट्टी चाहते थे. लेकिन अजय कुमार टस से मस नहीं हुए थे. मैं कंपनी का सीनियर कर्मचारी था तो सब ने मुझे गुजारिश की थी. 

        " आप सब से बात करो ना. गणेश चतुर्थी की छुट्टी दे दे. "

         मैं जानता था. वह कभी तैयार नहीं होगा.

         मैंने उस बात को नकारते हुए सुझाव दिया था

         " मैं एक लेखित अरजी तैयार करता हूं. आप सब उस पर सिग्नेचर कर दो. मैं उसे अजय कुमार के टेबल पर रखूंगा. "

        उस वक़्त अजय कुमार ओफिस में नहीं थे. मैंने अरजी तैयार कर के सब की सिग्नेचर लेकर उन के टेबल पर ऱख दी थी..

        थोड़ी देर में वह ओफिस आये. उन्होंने अरजी देखी उसे पढ़कर अकाउंटेंट को बुलाया और कहां :

       " इस में लिखो जो कोई भी उस दिन ओफिस नहीं आयेगा उसे बरतरफ किया जाया था. "

       वह जान चुके थे की यह सब मेरा किया कराया था. उन्होंने ने मुझे बुलाया भी था.. संभाषण भी शुरू किया था, उस के जवाब में मैंने केवल उन्हें इतना ही कहां था.

         " एक गुजारिश, बिनती का आप धमकी देकर जवाब देंगे यह हमने सोचा नहीं था. "

       उस को छुट्टी देने में कोई समस्या नहीं थी. लेकिन सब ने सिग्नेचर किया था उस बात से उन्हें यूनियन बन जाने का डर लगा था, और ऐसी घटिया कारवाही कर के अपनी बुद्धि का प्रदर्शन किया था.

       उस दिन कौन आया था, कौन नहीं आया था यह तो जानने का मौका नहीं मिला था.. लेकिन अजय कुमार की बात से यह स्थापित हुआ था मंगेश नाम का लड़का ओफिस में आया था.

       उस पर मैंने कमेंट्स किया था.

       सिग्नेचर कर के वह ओफिस आया वह गलत था.

       दूसरे दिन ओफिस में दाखिल होते ही भूखे शेर की तरह मेरे पर टूट पड़े थे.

       मैंने केवल इतना कहां था. 

       " एक गुजारिश का, बिनती का आपने धमकी से जवाब दिया इसी लिये हम नहीं आये. "

        उस पर उन्होंने ने अल्टीमेटम सुना दिया..

        " तुम को नौकरी से बर्खास्त किया जा रहा है. तुम अपना पैसा कोर्ट से वसूल कर लेना. "

         मैंने भी डटकर जवाब दिया था.

        " आप के 500-1000 रूपये ना मिलने से मैं कंगाल नहीं हो जाऊंगा. मेरे पास भी लेटर की कोपी है. मैं उसे आप के सभी हरीफों को बाटूंगा. उस में आप की ही जग हसाई होगी. लोग तुम्हारी बेवकूफी का चर्चा करेंगा. "

      तब उस का सुदानी भाई भी वहाँ मौजूद था.

      उस ने मुझ पर ओफिस स्टेशनरी चोरी करने का आरोप लगाया था. 

       उस का भी मैंने तगड़ा जवाब दिया था.

       " मैं तुम जैसा मुर्ख नहीं हूं. "

       बात बढ़ रही थी. मैंने कोर्ट जाने की भी धमकी दी थी, शायद उसी वजह से उन्होंने मेरा हिसाब कर दिया था..

        और में विजयी मुस्कान के साथ उन की ओफिस से बाहर निकल आया था.

                        0000000000 ( क्रमशः)