Yaado ki Sahelgaah - 7 in Hindi Biography by Ramesh Desai books and stories PDF | यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (7)

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यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (7)


                     : : प्रकरण : : 7

       गरिमा देसाई मेरी बिरादरी से थी. वह मेरे लिये फायदे मंद था.

       उस के आने से मेरी जिंदगी में चमत्कारिक बदलाव आया था. मैं रातोरात सकारात्मक बन गया था. मुझ में सारी दुनिया की समझ आ गई थी. मैं ताकतवर बन गया था.

       उन दिनों मैंने फ़िल्म ' अनुपमा ' देखी थी. गायक हेमंत कुमार के गीत ने मुझे काफ़ी मदद की थी.

       या दिल की सुनो दुनिया वालों

       या मुझ को अभी चुप रहने दो

       मैं गम को खुशी कैसे कह दूं

       जो कहते हैं उन को कहने दो

     हेमंत कुमार की गायकी से मैं बड़ा प्रभावित हुआ था. मुझे ऐसा लग रहा था. मुझे उन की आवाज तोहफ़े में मिला था. यह मेरा भ्रम था, लेकिन मैं उसे सच्चाई मानता था.

      फ़िल्म में एक पिता अपनी बेटी को छोड़ देते हैं, क्यों की उस के जन्म के वह अपनी बीवी को खो बैठते हैं. 

      मैंने इस गीत को सकारात्मक बनाया था.

      " या दिल की सुनो दुनिया वालों

      या मुझे को अभी कुछ कहने दो

      मैं खुशी को गम कैसे कह दूं

      जो कहते हैं उन को कहने दो

       उस वक़्त मेरा स्कूली यार श्याम मेरे साथ था.

       मैंने उस के सामने सभी गायको के आवाज में गीत सुनाया था. वह बहुत प्रभावित हुआ था.. उस ने मेरी प्रशंसा के पुल बांधे थे.

       उस के कहने से मैंने होरोस्कोप की किताब खरीदी थी, जिस में साफ लिखा था.

       " तुम्हारी शादी पसंदीदा लड़की से ही होगी."

        जिस ने मेरी इच्छा  को पंख लगाये थे. और मैं उड़ने लगा था. 

        क्या दर्द किसी का लेगा कोई

        इतना तो किसी में दर्द नहीं

        उस समय मुझे  समझने वाला कोई नहीं था.

        फिर भी मैं लोगो का ख्याल करता था, उन की चिंता करता था.

       हमारे बिल्डिंग में एक औरत थी. वह शादी सुदा थी. उस के दो बच्चे थे.. और उस का पति पागल था.

        उस के साथ उस के चाचा ससुर भी रहते थे.. वह अपने भतीजी बहू का शोषण करना चाहता था.. वह घर का खर्चा उठाता था. उस का भाई अंध था. वह कुछ देख नहीं सकता था, कुछ कर नहीं सकता था. इस लिये मानो उसे सब कुछ करने का अधिकार मिल गया था. उस ने अपने भतीजे को कुछ खिलाकर पागल कर दिया था

      वह औरत जिस का नाम गौरी था, वह भी बदनाम थी. बात बात में हर किसी से झगड़ा करती रहती थी. कोई उसे बुलाने की हिमत नही करता था.

      एक दिन मुझे उस के घर से रोने की आवाज सुनाई दी थी, जिसे सुनकर मैं प्रताड़ित होकर उस के घर दौड़ गया था. उसे शांत किया था, पानी पिलाया था.

      उस वक़्त गीता बहन मुझे लेने उस के घर आये थे.

      उन्हें देखकर गौरी की सासुमा ने उन्हें आश्वस्त किया था.

       " आप चिंता मत कीजिये.. आप के बेटे ने बड़ा काम किया हैं. उसे कुछ नहीं होगा."

       मुझे हर चीज अच्छी लगती थी.

       एक दिन मैंने अपनी बात मेरे अजीज दोस्त अनुराग को बताई थी.

       " मैं गरिमा को चाहता हूं, उस से शादी करना चाहता हूं. "

       यह सुनकर उस ने मुझे बताया था.

       " उस की तो सगाई हो चुकी हैं. "

      सुनकर मुझे झटका लगा था. लेकिन गरिमा की सगाई होने की बात मैं मानने को तैयार नहीं था.

      उस वक़्त श्याम ने भी मेरे कोलेज दोस्तो के बारे में भड़काया था.

      " तुम किसी का भरोसा मत करना. वह तुम्हारे दोस्त नहीं हैं. "

       मैं श्याम की बातों में आ गया था. अनुराग की बात को लेकर मुझे संदेह हुआ था. मेरा उस पर से विश्वास उठ गया था.

      मैंने दोबारा अनुराग को गरिमा की सगाई को लेकर अनुरोध किया था.

      " प्लीझ! दोबारा जाँच पड़ताल करो. मुझे यह खबर सही नहीं लगती. "

      कुछ दिन के बाद उस ने खबर सही होने का समर्थन दिया था.

      फिर भी मैं खुद इस बात को जानना चाहता था. तो मैंने उसे मिलने की जिद पकड़ी थी.

     उस वक़्त अनन्या मेरे पास आई थी.

    मैंने उस के गले लगकर अनुरोध किया था.

    " तुम जाकर गरिमा को यहाँ ले आओ.. "

    मेरी जिद के आगे अनुराग झुक गया था. वह अपने दो दोस्त को लेकर क्लर्क से पता निकालकर गरिमा के घर पहुंच गया था.

     उस वक़्त उस का घर मेहमानों से खचाखच भरा हुआ था.

      उस वक़्त गरिमा कोई मेहमान की आगता स्वागता करने बाहर आई थी, तब उस की नजर अनुराग पर पड़ी थी.

      अनुराग उसे साइड में ले गया था. और सारी बात उसे बयान कर दी. सुनकर उसे बड़प्पन दिखाया और मेरी तसल्ली के लिये उस ने मुझ से मोबाइल पर बात की और दूसरे दिन दो बजे मेरे घर आने का वादा किया.

       वह चाहती तो मोबाइल पर अपनी सगाई की बात कह सकती थी. लेकिन मेरे घर आने का कष्ट उठाया था, सौजन्य दिखाया था. वह बड़ी बात थी.

      दूसरे दिन, वादे के मुताबिक ठीक दो बजे अपनी सहेली के साथ मेरे घर आई थी.

       उस वक़्त आकाशवाणी के विविध भारती के कार्यक्रम में एक गीत मानो उस का स्वागत कर रहा था.

     बहारो फूल बरसाओ मेरा मेहबूब आया हैं (2)

     हवाओ रागनी गाओ मेरा मेहबूब  आया हैं (2)

     उस समय यह गीत बज रहा था. यह भी ईश्वर की देन थी. उस ने मुझे विश्वास दिलाया था.. मेरी शादी गरिमा से ही होगी.

      वह दोनों घर में दाखिल हुए थे. मैंने उन का अभिवादन करते हुए गरिमा को कहां था.

      " मुझे कुछ नहीं हुआ हैं. मेरे घरवाले खामख्वाह डर गये हैं. चलो भीतर जाकर ईश्वर का आशीर्वाद लेते हैं. "

       उस पर अनन्या ने मुझे रोककर कहां था.

       " गरिमा तुम से बात करना चाहती हैं. "

       " हां बोलो क्या कहना चाहती हो? "

       " मेरी सगाई हो गई हैं. "

       " अब तो गरिमा तुम्हारी बहन हुई ना? 

      " उस में दो राय नहीं हो सकती! "

      इतना कहकर मैं भीतर चला गया था. भगवान की छबि के सामने मस्तक झुकाकर मैंने मांफी मांगी थी. और गरिमा को बहन के रूप में स्वीकार लिया.

      बाहर आकर उस के सिर पर हाथ रखकर मैंने शपथ ग्रहण किये.

      " आज से तुम मेरी बहन हो. मैं तुम्हे सदा इसी रूप में देखूंगा. उस में कोई विकार आया उस घड़ी मैं यह दुनिया छोड़ दूंगा. "

       और वह " मैं जाती हूं. " ऐसा कहकर चली गई थी.

       उस के जाते ही मुझे भगवान पर गुस्सा आया था.

       मुझे उस की यह बात समझ नहीं आई थी.

       उस ने गरिमा का स्वागत वह फ़िल्म गीत से क्यों किया था. शायद इसी बात ने मुझे तूफान करने को उकसाया था. 

      मैं कपाट पर पैर मारने लगा था. जोर जोर से रोने लगा था. वह गरिमा ने सुना था. 

                  0000000000    (क्रमशः)