यादों की सहेलगाह - प्रकरण 1
उस वक़्त मैं तीन साल का था, मेरा बड़ा भाई सुखेश पांच साल का था औऱ मेरी छोटी बहन भाविका केवल छह महिने की थी. उस वक़्त मेरी मा असाध्य बीमारी का शिकार हो गई थी.
उन्हें कांदिवली स्टेशन के बाहर एक सेनेटोरियम में रखा गया था.
मेरे पिताजी रोज सुबह 9 बजे की लोकल ट्रैन पकडकर मुंबई जाते थे. स्टेशन एकदम बाजू में था इस लिये ट्रैन आने की आवाज सुनकर ही वह बाहर निकलते थे औऱ टी सी की केबिन में चढ़ जाते थे.
औऱ हम दोनों भाई उस वक़्त बाहर पैसेज में बैंच पर बैठकर खेलते हुए पिताजी को जाते हुए देखते थे.
मेरी मा की एक सहेली थी..उस के साथ मेरे पिताजी की सगाई हुई थी, जो खुद की क़ोई गलती से टूट गई थी..औऱ बाद में मेरी मा औऱ पिताजी की शादी हो गई थी. उस बात को पांच साल से ज्यादा समय बीत गया था..
फिर भी लड़की मेरे पिताजी के पीछे पड़ गई थी. उस ने मेरी मा को भी काफ़ी तकलीफ दी थी. सहेली होने का दावा क़र के वह मेरी मा को नाहक में प्रताड़ित करती रहती थी , ज़ब क़ोई नुस्खा काम नहीं आया तो उस ने मेरी मा को कुछ खिला दिया था. जिस वजह से उस की हालत बिगड गई थी. उस के लिये अनेकानेक उपचार किये थे. लेकिन मा की तबियत सुधरने का नाम नहीं ले रही थी.
भाविका के जन्म बाद तुरंत उन्हें अस्पताल में दाखिल करना पड़ा था.
उपचार में पिताजी ने क़ोई कसर नहीं छोड़ी थी.
भाविका के नसीब में अपनी मा का दूध भी पर्याप्त नहीं था. उसे ऊपर का दूध पिलाना पड़ता था. उस वजह से , वह काफ़ी कमजोर पड़ गई थी ..नानी मा ने उस के लालन पालन, उछेर में क़ोई कमी नहीं छोड़ी थी..
सेनेटेरियम से ही मा की अर्थी उठी थी.
पिताजी तीन बच्चों की इकलौते देखभाल नहीं क़र पाते थे. इस स्थिति में मेरी मा की जनेता ने हमारी जिम्मेदारी संभाली थी.
पिताजी ने हमें भाड़े का घर लेकर गांव में नानी मा के पास छोड़ दिया था.
चार दिन हमारे साथ रहकर पिताजी भारी दिल से मुंबई लौट गये थे.
औऱ चौथे ही दिन बड़ा हादसा हुआ था.
हमारी पड़ोस में मनु चाचा रहते थे. उन का खुद का दो मजलिय बंगला था. जमीन औऱ खेती वाड़ी थी. उन का एक लड़का था, जो बड़ा शरारती औऱ खैपानी था. उस को मस्ती तूफान में क़ोई पहुंच नहीं सकता था.
वह सारे गांव में बदनाम था.
उस दिन किसान लोग उन के खेत की फ़सल का नमूना लेकर घर आये थे. वह लोग टांगे में आये थे. तुरंत वापिस जाना था तो उन्हों ने घोड़े को बांधना जरूरी नहीं समझा था.
इस बात का मनु चाचा के लडके ने फायदा उठाया था. वह खाली टांगा देखकर तुरंत उस पर चढ़ गया था.इतना नहीं हमें भी टांगे में बैठने के लिये आमंत्रित किया था
औऱ हम लोग तैयार हो गये थे. पहले मुझे टांगे में चढ़ाकर बड़ा भाई सुखेश भी टांगे में चढ़ गया था. हमें टांगे में बैठने को मिला था. इस बात से हम लोग बडे ख़ुश थे.
उस वक़्त जनक को ना जाने क्या सुझा था?
उस ने मुंह से कुछ आवाज की तो घोड़े चलने लगे थे.. उस पर जनक ने एक घोड़े की पीठ पर जोर से चाबुक फटकार दिया था और घोड़े दिशा बदलकर तेज गति से भागने लगे थे.
इस स्थिति में हम तीनो गभरा गये थे. जनक ने टांगा चला तो लिया, लेकिन उसे कैसे रोकना वह मालूम नहीं था.
हम दोनों भाई नानी का को हमें बचाने के लिये आवाज दे रहे थे, बूमरांग मचाते रहे थे.
रास्ते में छोटे बच्चे खेल रहे थे. उस का क्या होगा?
सारे गांव में चिंता औऱ दहशत का माहौल में घिर गया था.
टांगा हमें कहाँ ले जायेंगा? उस बात की चिंता हो रही थी.
टांगा आगे जाकर सामने एक टेकरी पर चढ़कर उलट गया था. हम दोनों टांगे के नीचे दब गये थे. हमें भारी चोट लगी थी. मैं सीधा गिरा था. सिर के पिछले हिस्से में मुझे चोट लगी थी, सात स्टिच लगे थे. मेरा भाई उल्टा गिरा था, उसे दो स्टिच आये थे औऱ जनक उछलकर रास्ते पर गिरा था. वह बालोबाल बच गया था.
डोक्टर भी हम दोनों भाइयों को खून से लथपथ देखकर चकित रह गये थे.
हमारे घर के पिछवाड़े ही डोक्टर का क्लिनिक था.
छोटे से गांव में उस हादसे की खबर बड़ी तेजी से फैल गई थी.
मेरा मौसेरा भाई भी खबर मिलते ही दवाखाना दौड़ आया था. उन्हों ने तुरंत मुंबई फोन किया था. औऱ मेरे पिताजी रात तक हांसोट पहुंच गये थे.
उन को अपनी संतान को दूसरों के भरोसे रखने के लिये अफ़सोस हो रहा था.
उन्हों ने नानी मा को बहुत कुछ सुनाया था.
सुनकर वह रो पड़े थे उस में ना तो नानी मा की गलती थी ना तो हमारी. टांगे में बैठने की लालच ने हमें जनक की बात मानने के लिये लिये उकसाया था, औऱ यह हादसा हुआ था.
फिर भी हम लोग बच गये थे. इस बात पर नानी मा ने भगवान का पाड माना था.
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दो तीन साल बीत गये थे. सुखेश को स्कूल में भर्ती क़र दिया था. वह स्कूल जाने लगा था.
मुझे भी पांचवा साल लगते ही स्कूल में भर्ती किया गया था.
ना जाने क्यों हमारा पढ़ाई लिखाई में दिल नहीं लग रहा था.
हमें पढ़ने लिखने से ज्यादा गाय भेंसो को चारा खिलाने औऱ उन के दोहने की प्रक्रिया देखने मे ज्यादा दिलचस्पी थी.
हमारी पड़ोस में एक ब्राह्मण औरत रहती थी. वह ज्यादा सेवा पूजा में व्यस्त रहती थी. उस ने अपने ही घर मंदिर बनाया था. श्री नाथजी की मूर्ति स्थापित की थी. दिन में दो बार वह पूजा आरती करती थी.
उस के पास गाय भेंसे थी. उन को दोहकर दूध का व्योपार करती थी.
ऐसी स्थिति में हम लोगो ने स्कूल न जाकर बाहर भटकना शुरू क़र दिया था.
दो दिन तो नानी मा को पता नहीं चला था. लेकिन तीसरे दिन हमारी पोल खुल गई थी. नानी मा ने कुंभार के लड़को की मदद से हमें ढूंढ निकाला था. औऱ दोनों भाईयों को मेथी पाक खिलाया था. औऱ पूरी रात हमें खाने पीने को नहीं दिया था.
मैं तो उस दिन से बराबर स्कूल जाने लगा था!
लेकिन बड़ा भाई?
00000000000000 ( क्रमशः)