A Place of Memories - Ranjan Kumar Desai (3) in Hindi Biography by Ramesh Desai books and stories PDF | यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (3)

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यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (3)


                      :: प्रकरण :: 3

       खाना खाने के बाद हम लोग फ़िल्म' झनक झनक पायल बाजे ' देखने गये थे. वह उस दौर की क्लासिकल फ़िल्म थी. जो एक ही थियेटर में दो साल से अधिक चली थी जिस ने भारतीय नृत्यो का परिचय करवाया था.

       यह फ़िल्म वी शांताराम ने बनाई थी. जिस में गोपी कृष्ण और संध्या ने काम किया था.

       उस समय मुझे फ़िल्म और नाटक का भेद नहीं मालूम था. 

        मुझे ऐसा लगा था. मानो दो जिवंत आत्मा नृत्य कर रहे थे. उस के बाद हमने एक और मशहूर बैनर ' जैमिनी ' की इंसानियत फ़िल्म देखी थी, जो दो दोस्तों के प्यार और दोस्त की अनूठी कहानी थी. फ़िल्म में दो धुरंधर कलाकार दिलीप कुमार और देव आनंद ने काम किया था जिस की बीवी का रोल बिना रोय ने निभाया था. जो राज कपूर के साले की बीवी थी.

        फ़िल्म के अंत में दिलीप कुमार अपने दोस्त के बेटे की जान बचाने की कोशिश में अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठता हैं.

        उस के बाद निर्माता निर्देशक बी आर चोपड़ा ने ' एक ही रास्ता' बनाई थी, जिस में विधवा विवाह का मुद्दा उठाया था.

        नायिका का पति जिस ओफिस में काम करता था, वहाँ एक दुष्ट व्यकित से कोई झगड़ा हो जाता हैं. और वह उस को मार देता था. इस स्थिति में पति के साथ काम करने वाला लड़का उस का ध्यान रखता हैं. उस से बदनामी का माहौल खड़ा होता हैं.

     उस वक़्त वह दोस्त एक संवाद बोलता हैं.

     " बदनामी के पहाड़ आंसू में डुबोया नहीं जाता उसे तो तोडना पड़ता हैं. "

     उस समय मेरा अनन्या के घर आना जाना बढ़ गया था. मुझे उस के प्रति को लगाव हो गया था. मैं उसे बहन की तरफ का प्यार मानकर चलता था.

      मैंने कम उम्र में मा को खोया था तो उस ने अपने पिताजी को खोया था. उस की मा ने उसे लालन पोषण कर के बड़ा किया था. वह जवान हो चुकी थी. उस समय पड़ोश के बिल्डिंग में रहने वाला अपूर्व उस की जिंदगी में आया था.

      उस के बारे में मैंने खुद अनन्या की मा को अपूर्व से कहते हुए सुना था:

       " तुम्हारी कोई बहन नहीं हैं और अनन्या को कोई भाई. तुम दोनों आज रक्षाबंधन हैं. तो अपूर्व तुम अनन्या से राखी बंधवाकर उसे भाई का सुख प्रदान करो. "

       अपूर्व ने उन की बात मानते हुए अनन्या से राखी बंधवाई थी, और विरपसली की रस्म निभाई थी.

        वह भाई बहन थे. मैंने यह बात स्वीकार ली थी. भाई बहन के नाते दोनों एक दूसरे को छूते थे.. अपूर्व उसके गाल सहलाता था. उस के कंधे, कमर को हाथ लगाता था, उसे चुम्बन भी करता था. 

        अनन्या उस की गोद में सिर रखकर सो जाती थी.

         एक बार पड़ोश की बाई ने अनन्या की मा की प्रसंशा करते हुए कहां था.

          " आप को अच्छा दामाद मिल गया. "

          वह दामाद कौन था? मुझे मालूम नहीं था. उस वक़्त वह अपूर्व ही था, ऐसा ख्याल भी दिमाग़ में लाना गलत था. वह दोनों भाई बहन थे. और भाई बहन शादी नहीं कर सकते. वह नानी मा ने मुझे बताया था.

         उन्हें भाविका की बहुत चिंता होती थी. तब मैंने उन्हें आश्वस्त किया था.

         " आप फ़िक्र मत कीजिये, मैं भाविका से शादी करूंगा. "

        उस समय मुझे यह भी मालूम नहीं था.

        भाई बहन शादी नहीं कर सकते.

         अपूर्व और अनन्या के व्यवहार ने मुझे गलत बात सिखाई थी.

         इस बात से अनजान मैं अपूर्व का अंधा अनुकरण करता था. मैं भी उस का स्पर्श करता था. लेकिन उस ने कभी उस के लिये कोई एतराज दर्शाया नहीं था.

       हम लोग ग्रुप में कई बार फ़िल्म देखने आते थे.

       एक बार हम लोग एक फ़िल्म की टिकिट बुक करने गये थे. उस वक़्त लौटते समय मैं कम से कम 25 मिनिट उस की उंगली पकडकर चला था, और उस ने कुछ नहीं कहां था. 

       दूसरी बार मैंने अपूर्व के अंदाज में उस के गालों को मेरी हथेलियों के बीच दबोच लिया था. वह तो कुछ नहीं बोली थी लेकिन निशा ने उस के बारे में कमेंट्स की थी:

        " तुम अनन्या को इस तरह छू नहीं सकते. "

         उस की सगाई हो गई थी. वह बात भी उस ने मुझ से छिपाई थी.

         एक दिन सुबह से गायब थी. उस के गोड फादर सर्वेश को सब कुछ मालूम था. लेकिन उस ने मेरे सामने झूठ बोला था.

         " उस के मौसी के लडके की सगाई हैं, वह विले पार्ले गई हैं. "

          मैंने उस की बात पर भरोसा कर लिया था.

          लेकिन उस ने झूठ बोला था.

          शाम को अनन्या ने जामुन रंग की साड़ी पहनी थी. वह स्वर्ग की अप्सरा जैसी लगती थी.

           उस वक़्त मेरे दिमाग़ में सवाल उठा था. 

            मौसेरे भाई की सगाई में इतनी सज धज होने वाली लड़की अपनी सगाई में क्या करेगी?

          वह शाम को आते ही सर्वेश के घर आई थी. उस वक़्त मैं भी वहाँ मौजूद था. उस ने आते ही उस से बातें करना शुरू कर दिया. मेरी मौजूदगी का उपहास कर के वह सर्वेश से बातें करने लगी. उस का ध्यान बटोरने के लिये मैंने हल्के से उस की साड़ी का पल्लू खिंचा. उस पर उस ने नाराजगी प्रदर्शित की. लेकिन वह कुछ भी नहीं बोली थी.

       थोड़ी देर में वह अपने घर लौट आई थी. उस के पीछे मैं उस के घर गया था. उस ने मेरा आदर सत्कार किया था और मेरी कमर पर हाथ रखकर मुझे किचन में ले गई थी. और मिठाई से भारी डिश मेरे सामने ऱख दी.

       लेकिन वह कुछ नहीं बोली थी. अपने मौसेरे भाई की सगाई में इतना ठाठ माठ और मिठाई, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

        मुझे शंका हुई थी. अनन्या की खुद की सगाई हुई थी. लेकिन उस ने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा. उस वक़्त वह सोचती थी. मैं अपूर्व का हरीफ था और मुझे सुनकर बुरा लगेगा.

       मैं बिना मा का लड़का था. उस को मेरे प्रति हमदर्दी थी, शायद इस लिये वह चुप रही थी.

       उस ने मेरे साथ जो व्यवहार किया था. उस बात से मैं बहुत ख़ुश था.

       लेकिन दूसरे दिन उस की बात ने मुझे परेशान कर दिया था.

                     000000000       ( क्रमशः )