Yaado ki Sahelgaah - 10 in Hindi Biography by Ramesh Desai books and stories PDF | यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (10)

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यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (10)


                     : : प्रकरण : : 10

       मैं शुरुआत में आरती को हैंगिंग गार्डन ले गया था.. पत्थर की आड़ में हम लोग बैठे थे. पहली बार मैंने उसे छुआ था. उस के होठों को कसकर चुम लिया था.

       फिर मैं उस की गोद में सिर रखकर सो गया था.

.      उस वक़्त एक अनजान आदमी हमारे पास आया था.

       " आप को रूम चाहिये? "

       उस का मतलब क्या होता है उसे जाने बिना आरती की उंगली पकडकर उसके पीछे चल पड़ा था. वह हमें एक गैरेज के पास ले गया था, जो अंदर से बंद था. अंदर कौन था?  उस का अनुमान किया जा सकता था. अंदर  हमारे जैसे हो लोग थे.

         वह हमे ऊपर हैंगिंग गार्डन ले गया था.

         उस समय धीमी धीमी बारिश भी शुरू हो गई थी.

        उस ने एक जगह दिखाकर कहां था.

        " जाओ! उधर बैठकर जो चाहिए वह कर लो "

       यह कहकर उस ने आरती के हाथों से किताबें भी छिनते हुए कहां .

       " प्यार में भला इस की क्या जरूरत हैं?"

       और हम लोग शुरू होने वाले थे. उसी समय दो अनजान लोग पुलिस के साथ वहाँ आ गये. जिसे देखकर हम लोग मारे डर के कांपने लगे. 

        यह देखकर उन्होंने शांति से सब कुछ बताया और उधर आने के लिये मना कर दिया.    

        उन लोगो को देखकर वह अनजान आदमी किताबें फेंककर दुम दबाकर भाग गया था.

        उस घड़ी से हमने ख़तरनाक इलाके में जाना छोड़ दिया. हम लोग फ़िल्म देखने या होटल में जाते थे.

         आरती ने 18 साल पुरे नहीं किये थे. उस के लिये तीन चार महिने बाकी थे.

          हम लोगो ने आपस में शादी करना तय कर लिया था. मैंने अपने मात पिता को भी बता दिया था. उन्हें हमारी शादी से कोई प्रोब्लेम नहीं था. मैं तो ललिता पावर की रजा मंदी लेना चाहता था. लेकिन मात पिता और खुद आरती ने मुझे रोक लिया था.

        आरती के 19 वे जन्म दिन को मैं उसे होटल में ले गया था. उस को मनपसंद व्यंजन का टेस्ट करवाया था . उस दिन शनिवार था..

         सोमवार को हमे शादी रजिस्टर करवाने जाना था. हम लोग नियत समय पर रजिस्ट्रार की ओफिस पहुंच गये थे .और गुरुवार को आर्य समाज होल में हमारी शादी होनी थी.

        उस वक़्त मानो कुदरत हम से क्या चाहती थी?

         ललिता पवार से शादी के अगले हीं दिन पेच अप हो गया था. उन की दो बेटियों ने कोई व्रत किया था उस के लिये जगराता था. उन्हें जगाने के लिये मुझे बुलाया गया था.

      पहले तो अबोला था. उस स्थिति में ललिता पवार को बताने का कोई सवाल नहीं था. लेकिन अब स्थिति बदल गई थी और मैं उलझ महसूस कर रहा था.

      किसी को भी सवाल हो सकता था. रात भर साथ में था और इतनी बड़ी खबर से अनजान रखा!!

       मैं शादी की अगली रात ललिता पवार के घर में था उन की बेटियों को जगाने में मदद की थी. उस के लिये सब से पहले बावन पत्ते की गेम खेला था. शतरंज का खेल खेला था. अंताक्षरी भी खेला था.

       कुछ जोक्स भी सुनाये थे.

       मेरी शादी होने वाली थी. इस बात को बहन भाविका से भी गोपित रखी थी. वह कहीं उत्साहित होकर शादी की बात बता देगी तो? मुझे उस बात का डर लगा रहा था.

       समय पसार करने के लिये मैंने गीतों का सहारा लिया था और सब का मनोरंजन करवाया था. मैं उस की कल्पना कर रहा था. साथ में ललिता पवार कैसे रियेक्ट करेंगे, उस के बारे में कल्पना भी कर रहा था.

       वाकई में मैं कुछ गलत करने जा रहा था. उस बात का मुझे बहुत रंज हो रहा था. लेकिन मेरी इस गलती के लिये एक मा खुद जिम्मेदार थी. उन्होंने लोगो की बात मानकर मुझ से अन्याय नहीं किया होता तो ऐसी नौबत नहीं आती थी. 

      मा कैसी होती हैं? उस की मिशाल मदर इंडिया फ़िल्म थी. कहां जाता हैं. एक मा सो शिक्षक के बराबर होती हैं. मैंने समय बिताने के लिये उस फ़िल्म की कहानी सब को बताई थी.

      इस फ़िल्म में गलत रास्ते पर चले गये अपने हीं बेटे को मार देती हैं. 

      बेटा गलत कर के जमीनदार की बेटी को अगुआ करता हैं जो एक मा को बहुत परेशान करता था. फिर भी उस की बेटी की इज्जत की खातिर अपने बेटे की जान ले लेती हैं.

     इस फ़िल्म में नरगिस ने मा की भूमिका निभाई थी. फ़िल्म में सुनील दत्त, राज कुमार, राजेंद्र कुमार, कुमकुम, अझरा, चंचल, कन्हैया लाल ने काम किया था.

       इस फ़िल्म के शूटिंग के दौरान आग के शोट में नरगिस फ़स जाती हैं, तब सुनील दत्त उसे बचाता हैं और बाद में दोनो की शादी हो जाती हैं.

        फ़िल्म में एक गीत था.

        दुनिया में हम आये हैं तो जीना हीं पड़ेगा

         जीवन हैं अगर जहर तो पीना हीं पड़ेगा

         फ़िल्म में यह गीत नरगिस और उस के दो बेटे पर फरमाया गया था, जिसे तीनो बहन लता, उषा और मीना मंगेशकर ने प्ले बेक दिया था.

         उस की अंतिम लाईन दिल को छूने वाली थी.

         मालीक हैं तेरे साथ तो ना डर गम से ए दिल

          मेहनत करे इंसान तो क्या काम हैं मुश्किल

          जैसा जो करेगा यहाँ वैसा हीं भरेगा.. (2)

          दुनिया में हम आये हैं...

.          मैंने इस फ़िल्म की कहानी ललिता पवार की आंखे खोलने के लिये सुनाई थी. लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ था.

       बाकी तो कोई नहीं लेकिन बड़ी मा को फ़िल्म की कहानी छू गई थी. उन की आँखों से सावन भादो बरसने लगे थे. 

        कहानी सुनकर उन्होंने मेरा शुक्रिया अदा किया था. 

        उस फ़िल्म में बारह गाने थे. सब एक से बढ़कर एक थे. आखिर में बेटे की हत्या करने के बाद जो गीत फरमाया गया था वह वाकई में सब को रुलाने वाला था.

        ओ मेरे लाल आजा तुझ को गले लगा लू

        दिल में तुझे छिपा लू,

        उस जगराता में अनिश भी शामिल था.

         वह भी कहानी सुनकर बड़ा प्रभावित हो गया था.

         मेरी वजह से जगराता पूर्ण रूप से संपन्न हुआ था उस के लिये बड़ी मा ने मेरा तहे दिल से आभार माना था. ललिता पवार ने तो कुछ कमेंट नहीं किया था.

         दिन उगते हीं क्या होने वाला था?

         उन को कोई पता नहीं था.

                        0000000000 ( क्रमशः)