फाइल देखते ही शोभा का चेहरा कमल के फूल की तरह खिल गया। उसने कहा, "अरे माही, तू आ गई, बहुत अच्छे समय पर आई है। मैंने अभी-अभी चाय बनाई है, रसोई में जाकर ले-ले और खाने की तैयारी शुरू कर।"
माही को देखते ही वरुण तुरंत उठकर खड़ा हो गया और उसने कहा, "अरे भाभी जी, आप आ गईं, चलो अच्छा हुआ, अब तो आपके हाथों का स्वादिष्ट खाना मिलेगा।"
माही ने कहा, "हाँ, मैं तुरंत ही रसोई में जाती हूँ।"
"अरे नहीं भाभी जी, ऐसी भी कोई जल्दी नहीं है। बैठिए थोड़ी देर, हम लोगों के साथ, फिर काम तो करना ही है।"
शोभा घबरा रही थी कि कहीं वरुण वह फाइल ना देख ले। उसने माही से कहा, "बैठ-बैठ माही, तू बैठ, ला यह फाइल मुझे दे-दे, मैं रख देती हूँ।"
तब तक वरुण ने ही माही के हाथ से फाइल लेते हुए पूछा, "अरे भाभी जी, क्या है इस फाइल में जो आप बाहर से लेकर आ रही हैं?"
माही कुछ कहती, उससे पहले ही शोभा ने कहा, "अरे वरुण, कुछ नहीं है। डॉक्टर की फाइल है, लाओ, दे दो।"
तब तक तो वरुण ने फाइल खोल ली और पढ़ने लगा। यह देखते ही वहाँ बैठे सभी लोग एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। सबके चेहरों पर बारह बज रहे थे। फाइल पढ़कर वरुण ने कहा, "वाह, क्या बात है, भाभी जी के पिता का मकान रीतेश को मिल रहा है। वाह यार, रीतेश, तुम तो बड़ी किस्मत वाले हो, इतनी बड़ी प्रॉपर्टी, वाह!"
रीतेश चुपचाप था, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे। सबको शांत देखकर वरुण ने कहा, "तुम उस घर के दामाद हो और मैं इस घर का, तो मुझे लगता है इस प्रॉपर्टी पर मेरा हक होना चाहिए; क्योंकि दहेज के नाम पर तो मुझे फूटी कौड़ी भी नहीं मिली। चलो रीतेश, इस फाइल पर दस्तखत कर दो।"
रीतेश ने बौखलाते हुए कहा, "वरुण, तुम यह क्या कह रहे हो?"
"क्यों, एक बार में समझ नहीं आ रहा है क्या?"
रीतेश ने अपनी बहन नताशा की तरफ देखते हुए पूछा, "नताशा, क्या है यह सब? यह किससे रिश्ता जोड़ लिया है तूने? यह क्या बक रहा है?"
"दे दो भैया, दे दो, कर दो दस्तखत।"
"तू पागल हो गई है क्या ...? या तू भी इसमें शामिल है?"
"भैया, मैं मजबूर हूँ।"
"मजबूर हूँ ...? आखिर क्या है तेरी मजबूरी?"
"अरे-अरे रीतेश, मेरी पत्नी को क्यों तंग कर रहा है? मैं ही बता देता हूँ," कहते हुए वरुण वह रिकॉर्डिंग सुनाने लगा। रिकॉर्डिंग सुनते ही वहाँ सबके होश उड़ गए।
शोभा ने कहा, "नताशा, तूने यह क्या कर दिया?"
तभी रीतेश, वरुण के हाथों से मोबाइल छीनने के लिए लपका।
वरुण ने कहा, "अरे-अरे रीतेश, ये क्या कर रहा है? इतना कमजोर खिलाड़ी नहीं हूँ मैं, जो तुम्हें अब कोई मौका दूंगा। मेरा दोस्त यहाँ का आईजी है। उसे मैंने अभी खाने पर बुलाया है। वह आता ही होगा और यह रिकॉर्डिंग उसके पास भी है। यदि अपना भला चाहते हो, तो चुपचाप फाइल पर दस्तखत कर दो।"
विनय बिना कुछ कहे ही सर पकड़ कर बैठ गए, मानो उन्हें कोई सांप सूंघ गया हो। इतने में फिर से डोर बेल बजी। रीतेश, विनय और शोभा सब के सब घबरा गए।
शोभा ने रोते हुए कहा, "सोच क्या रहा है रीतेश, कर दे दस्तखत। जल्दी कर, लगता है वह पुलिस वाला बाहर ही खड़ा है। इसने हमारे खिलाफ यह बहुत बड़ी साजिश रची है।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः