Gunahon Ki Saja - Part - 18 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | गुनाहों की सजा - भाग 18

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गुनाहों की सजा - भाग 18

नताशा की बात सुनकर वरुण ने मुस्कुरा कर व्यंग्य भरे लहजे में कहा, "लेकिन अब तो तुमने शादी कर ली है। अब उसका शोक मनाने से कोई फायदा नहीं है। तुम्हें मुझे जितना कोसना हो, कोसती रहो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। नताशा, तुम यदि अपने परिवार से इतना ही प्यार करती हो, तो उन्हें जेल जाने से बचा लो। सिर्फ़ मकान ही तो हाथ से जाएगा, पर यदि इज़्ज़त चली गई, तो बड़ी बदनामी हो जाएगी। तुम्हारे भैया से कहना मेहनत करके ख़ुद कमा लें। मेरा क्या, मैं तो अकेला मस्त मौला हूँ। वैसे भी मैं ज़्यादा कुछ कहाँ मांग रहा हूँ? तुम्हारे पापा से उनका ख़ुद का कमाया हुआ तो मैं कुछ भी नहीं मांग रहा हूँ। जो मकान उन्हें मुफ्त में मिल रहा है, बस वही मांग रहा हूँ और वह भी मजबूरी में। कमा कर लौटा दूंगा यार, तुम चिंता मत करो।"

नताशा ने उसे घूर कर देखा और फिर वह चुपचाप कार में आकर बैठ गई। कुछ ही घंटे के बाद वे दोनों घर पहुँच गए। पूरा घर आँखें बिछाए उनके स्वागत में खड़ा था। शोभा के हाथों में आरती की थाली थी। उनके आते ही शोभा ने दोनों को तिलक लगाया और उनकी आरती उतारने लगी तो नताशा का उतरा चेहरा देखकर उसका हाथ रुक गया।

शोभा ने पूछा, "क्या हुआ नताशा, सब ठीक तो है ना? तेरी तबीयत ...?"

"नहीं-नहीं मम्मी, सब ठीक है, आप चिंता मत कीजिए। थोड़ी थकान है बस और कुछ नहीं। वह रात को नींद भी पूरी तरह से नहीं हो पाई थी। आप सब लोग ठीक हैं ना?"

"हाँ बेटा, सब ठीक है, आओ अंदर आओ।"

अंदर आते ही वरुण ने आवाज़ लगाते हुए कहा, "अरे भाभी जी, ज़रा पानी तो पिला दो और हाँ, ज़रा जल्दी से चाय का इंतज़ाम भी कर देना।"

शोभा ने कहा, "बैठो बेटा, मैं अभी चाय बना कर लाती हूँ।"

"अरे भाभी जी, लाएंगी ना, मम्मी, आप बैठिए हमारे पास आराम से।"

"अरे माही घर पर नहीं है, वह उसके मायके गई है।"

"अच्छा-अच्छा, कोई बात नहीं, फिर तो आपको ही बनाना पड़ेगा।"

वरुण आराम से बैठ गया। वह पास में रखे हुए समाचार पत्र को उठाकर उसके पन्ने पलट रहा था; तब तक चाय बनकर आ गई।

विनय ने पूछा, "वरुण बेटा, कैसी थी तुम लोगों की ट्रिप? कोई परेशानी तो नहीं हुई ना?"

"अरे नहीं पापा, सब कुछ एकदम अच्छा था। आराम से पाँच दिन कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला।"

चाय पीकर वे सभी बैठकर बातें कर रहे थे। रीतेश भी अपने जीजा की आवभगत में लगा हुआ था। उसने पूछा, "जीजा जी ..."

"अरे रीतेश यार, नाम से बुलाओगे तो ज़्यादा अच्छा लगेगा मुझे। क्या ज़रूरत है जीजा जी कहने की, अजीब लगता है।"

"ठीक है वरुण," कहते हुए उसने पूछा, "वरुण, क्या तुम दोनों शाम को मूवी देखना चाहोगे? तो मैं बुकिंग करवा लेता हूँ।"

वरुण कुछ बोले, उससे पहले कमरे से बाहर आते हुए नताशा ने कहा, "नहीं-नहीं, हम बहुत थके हुए हैं। आज हमें कहीं नहीं जाना है।"

तब तक दरवाजे पर बेल बजी तो शोभा ने दरवाज़ा खोला। बाहर दरवाजे पर माही खड़ी थी और उसके हाथों में एक फाइल थी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः