नताशा ने जब उस लड़के को देखा, तो वह उसे देखती ही रह गई। वह बिना पलकें झपके उसे देखती ही जा रही थी।
उस लड़के ने नताशा को परेशान देखा, तो बाइक रोक ली। बाइक से उतरकर उसने कहा, "लाइए, मैं स्टार्ट करने की कोशिश करता हूँ।"
नताशा "थैंक यू" कहते हुए स्कूटर के पास से हट गई।
उसने कहा, "मैंने बहुत कोशिश की, पर यह स्टार्ट ही नहीं हो रहा है। आप देखिए, शायद आपसे हो जाए।"
उस लड़के ने स्कूटर को स्टार्ट करने के लिए किक मारना शुरू किया। किक मारते समय अचानक उसकी निगाह नताशा पर पड़ी, तो उसने देखा कि वह तो लगातार उसे देख रही है। ऐसा लग रहा था मानो वह होश में ही नहीं है। तब उसे यह समझने में बिल्कुल भी समय नहीं लगा कि लड़की पहली नज़र में उस पर फिदा हो चुकी है।
तभी उसने स्कूटर की तरफ़ देखकर कहा, "लगता है इसमें कुछ ज़्यादा गड़बड़ है। आपको तो इसे किसी मैकेनिक के पास ले जाना पड़ेगा। इधर पास में ही एक मैकेनिक है, चलिए हम इसे वहाँ छोड़ देते हैं, अब इसे वही रिपेयर कर सकेगा।"
नताशा ने कहा, "ओह गॉड! मुझे तो बहुत देर हो जाएगी, खैर थैंक यू सो मच।"
"अरे आप ..."
"जी नताशा ... नताशा नाम है मेरा।"
"ओह थैंक यू नताशा जी, नाम बताने के लिए। मैं कह रहा था कि आप मुझे थैंक यू क्यों कह रही हैं? मैं तो आपका स्कूटर स्टार्ट कर ही नहीं पाया। वैसे यदि आपको देर हो रही है, तो मैं आपको जहाँ जाना है, वहाँ तक छोड़ सकता हूँ।"
नताशा को तो बिना मांगे ही वह मिल गया जिसकी उसके दिल को चाह थी और जिसे देखते ही उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था।
नताशा ने कहा, "जी ठीक है ..."
"मेरा नाम वरुण है।"
"वरुण जी, थैंक यू।"
इसके बाद नताशा और वरुण ने स्कूटर रिपेयर करने के लिए छोड़ा। उसके बाद नताशा उसकी बाइक पर बैठ गई। वरुण से फॉर्मल बात करते हुए वह अपने ऑफिस पहुँच गई। यहाँ अभी कुछ दिन पहले ही उसकी नौकरी लगी थी।
बाइक से उतरते हुए उसने वरुण की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, "वरुण जी, क्या आप मुझसे दोस्ती करोगे?"
वरुण ने हाथ मिलाते हुए कहा, "क्यों नहीं नताशा, यह तो बहुत ही अच्छी बात है, तो फिर आज ही हम अपनी दोस्ती की ख़ुशी में शाम को मिलकर पार्टी करते हैं। बोलो, क्या यह संभव है?"
"हाँ-हाँ वरुण, बिल्कुल। शाम छः बजे मेरा ऑफिस छूट जाएगा, हम तभी मिलेंगे," वरुण को ऐसा कहकर नताशा ने ऑफिस की तरफ़ उसके क़दम बढ़ाए।
जब वह जा रही थी, तभी वरुण का फ़ोन आ गया और वह वहीं खड़े होकर बात कर रहा था। बात करके उसने जैसे ही बाइक घुमाई, तो उसने देखा कि नताशा पलटकर उसे देख रही थी। नताशा ने जैसे ही देखा कि वरुण ने उसे देख लिया है, उसने तुरंत ही दूसरी तरफ़ गर्दन घुमा ली और वह सीधे ऑफिस चली गई।
शाम तक किसी तरह से उसने काम निपटाया, क्योंकि आज तो उसका मन कहीं और घूम रहा था, इंतज़ार की पीड़ा भुगत रहा था। जैसे-तैसे घड़ी का कांटा मानो सुस्त-सा चलते-चलते, टहलते-टहलते, छः के कांटे तक पहुँच गया।
छः बजते ही नताशा अपना बैग लेकर लिफ्ट की तरफ़ लपकी। उसने नीचे जाकर इधर-उधर नज़र दौड़ाई, पर वरुण कहीं भी नज़र नहीं आया। वह खड़े होकर उसका इंतज़ार करने लगी। लगभग 15 मिनट बीत गए, जो नताशा को 15 घंटे की तरह लग रहे थे। तब उसे दूर से वरुण आता हुआ दिखाई दिया।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः