Gunahon Ki Saja - Part 7 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | गुनाहों की सजा - भाग 7

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गुनाहों की सजा - भाग 7

PART 7
माही को डराते हुए रीतेश ने आगे कहा, "मायके वालों की धमकी तो तू देना ही मत क्योंकि वह ट्रक वाला अभी भी मेरा वफादार है। तू और तेरा भाई घर से बाहर निकलते ही हो ना। अरे हाँ, वह 5 साल का तेरा भतीजा भी तो घर से बाहर खेलने कूदने के लिए निकलता ही होगा? आजकल शहर में ट्रैफिक भी बहुत बढ़ गया है, किसी भी दिन कुछ हो सकता है।"

रीतेश के खतरनाक इरादे जानकर माही रो रही थी। रोते हुए उसने कहा, "तुम ऐसा सब मेरे साथ क्यों कर रहे हो? आखिर मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?"

"मेरी माँ की सेवा करती रहेगी तो कुछ नहीं होगा, समझी? और धीरे से मकान मेरे नाम करवा कर मकान के कागज़ ले आना। बस इतनी-सी छोटी-छोटी केवल दो ही तो फरमाइशें हैं हमारी, वह तो तुझे पूरी करनी ही पड़ेगी।"

इसके बाद माही बहुत डर गई। उसने डर के कारण यह सब बातें अपने घर में भी किसी को नहीं बताई। वह बीच में एक-दो बार अपने घर भी गई, परंतु रीतेश की धमकी ने तो मानो उसकी जीभ ही सिल दी थी। घर में उसके पापा ने, माँ ने, भाई-भाभी ने, सबने अपने-अपने तरीके से उसकी उदासी का कारण पूछा। लेकिन माही ने जीभ नहीं खोली।

वह केवल इतना ही कह देती, "थोड़ा समय लगेगा। आप लोगों को छोड़कर मन ही नहीं लगता, क्या करूं?"

वह जबरदस्ती खुश रहने की कोशिश करती, तो भी घर में सबको पता चल जाता क्योंकि जिसे बचपन से गोदी में खिलाया हो, अपने आंखों के सामने बड़ा होता देखा हो, जिस पर हर पल माँ-बाप की नज़र रहती हो, भला वे कैसे उसकी झूठी ख़ुशी को सच मान लेते।

माही के पापा-मम्मी सभी चिंतित थे। उसके पापा ने एक दिन उससे कहा, "माही बेटा, यदि किसी भी तरह की समस्या हो तो बेझिझक बता दो। यदि वहाँ कोई तुम्हें परेशान कर रहा हो तो हम तुम्हारे साथ हैं, बेटा। तुम चाहो तो उस परिवार से रिश्ता तोड़ सकती हो।"

उसकी माँ ने कहा, "हाँ माही, जो कुछ भी हो बता दे। डर मत!"

"कुछ नहीं है, पापा-मम्मी, आप लोग नाहक ही फ़िक्र कर रहे हो।"

दो-तीन दिन रहकर माही वापस अपनी ससुराल आ गई। अब तक तो वह बेचारी अपना ऑफिस भूल ही चुकी थी, इस्तीफा भी दे दिया था।

ऑफिस में लोगों ने रीतेश से पूछा भी कि क्यों यार, इतनी अच्छी नौकरी छुड़वा दी? तो रीतेश कहता, "माही की घर में ज़्यादा ज़रूरत है।"

अब तो रात में रीतेश जब भी माही को बाँहों में लेने की कोशिश करता, माही दूर हटने लगती, तो रीतेश हर रात उसके साथ जबरदस्ती करने लगा। माही के मन में तो अब रीतेश के लिए केवल नफ़रत ही नफ़रत भरी थी। ऐसे में भला कैसे वह उसके साथ हम बिस्तर होने में अपनी ख़ुशी जाहिर करती। उसके दूर हटते ही रीतेश पर अपमानित होने का गुस्सा सवार हो जाता और वह एक बलात्कारी की तरह उसके साथ पेश आता।

एक दिन माही ने उससे कहा, "मैं दिन भर बैल के समान तुम्हारे घर में कामकाज में जुटी रहती हूँ। तुम्हारे माँ-बाप और बहन को जो चाहिए, सब देती हूँ, पूरा काम करती हूँ। तुम्हारी माँ को खुश रखने की पूरी कोशिश करती हूँ, फिर अब क्यों तुम मुझे परेशान कर रहे हो?"

"अरे, तो तू मेरे परिवार के लिए कर रही है, तो सुना क्यों रही है? वह तो तेरा कर्तव्य है, बहू है इस घर की।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः