शोभा और रीतेश की बातें सुनकर माही समझ गई कि यदि जल्दी ही उसने मकान इन लोगों को नहीं दिलवाया, तो वे उसे या उसके भाई किसी को भी ख़त्म करवा देंगे। आज रीतेश का लालच और हैवानियत देखकर माही ने अपने आपको एक नए युद्ध के लिए तैयार करने का मन बना लिया। वह इस ज़माने की पढ़ी-लिखी बहादुर लड़की थी। उसने भी कमर कस ली थी कि वह उनके इरादों को चकनाचूर कर देगी। लेकिन कैसे...?
यह विचार उलझे हुए धागे की तरह गुत्थी बनकर उसके दिमाग़ में घूम रहा था। वह कई तरह से सोचती, पर फिर डर जाती। कभी उसके दिमाग़ में ख़्याल आता कि वह रीतेश को ही मार डाले, ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी। पर फिर सोचती, नहीं-नहीं, ऐसे में तो उसे जेल जाना पड़ेगा। उसे लगता कि कोई ऐसा उपाय ढूँढना चाहिए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। कभी उसे लगता कि वह अपने भाई को सब कुछ बताकर पुलिस में रीतेश की शिकायत करवा दे, लेकिन फिर जैसे ही उसे ट्रक वाली बात याद आती, उसके पसीने छूट जाते। वह स्वयं को असहाय महसूस करने लगती। रीतेश ने बहुत ही खतरनाक बात उसके दिमाग़ में भर दी थी। यह रीतेश की चाल थी।
रीतेश के परिवार का हर इंसान लालच के गहरे कुएँ में तैर रहा था; जहाँ से बाहर निकलना वे सब शायद भूल चुके थे। इसलिए अब उन्होंने यह जाल फैलाया था और उनके इस जाल में माही का परिवार फंस चुका था। माही मछली की तरह तड़प रही थी। वह इस जेल से निकलकर वापस अपने परिवार के पास जाना चाहती थी। अब उसे रीतेश की वह सारी बातें याद आ रही थीं जो विवाह से पूर्व ही उसने बातों-बातों में उससे पूछ ली थीं।
उसने पूछा था, "तुम्हारे भाई की आगे क्या करने की इच्छा है?"
तब माही ने उसे सच बताते हुए कहा था, "भैया भाभी तो शायद अमेरिका चले जाएंगे तथा पापा मम्मी आते जाते रहेंगे।"
तब उसने पूछा था, "माही, तुम्हारा घर काफ़ी पुरानी स्टाइल से बना हुआ लगता है, पर बहुत ही सुंदर है, बड़ा भी बहुत है। हमारा घर तो तुम्हें बहुत छोटा लगेगा।"
उस समय माही ने साफ़ मन से उसे बताते हुए कहा था, "यह मकान उसके पापा ने उस समय खरीदा था जब वह बहुत छोटी थी। इतना बड़ा घर उन्हें काफ़ी किफायती दाम में मिल गया था क्योंकि उस मकान में रहने वाला पूरा परिवार हमेशा-हमेशा के लिए विदेश जा रहा था।"
यह सारी बातें याद आते ही उसे लगा कि इन लोगों की यह पूरी योजना तभी से शुरू हो गई थी, जब से उनके परिवारों के बीच इस रिश्ते की बात शुरू हुई थी। अब माही को ईंट का जवाब पत्थर से देना था, परंतु सीधी-सादी माही, जो काफ़ी अच्छे संस्कारों से पली-बढ़ी थी, उसे दुष्टता से भरी कोई युक्ति नहीं सूझ पा रही थी।
इसी बीच नताशा की ज़िंदगी में एक लड़का आया। उन दोनों की पहली मुलाकात अनायास ही एक दिन रास्ते में हुई। नताशा का स्कूटर खराब हो गया था। वह खड़ी होकर बार-बार किक मार रही थी। उसी समय वहाँ से बाइक पर एक बहुत ही हैंडसम नौजवान गुजर रहा था। उसकी आंखों पर काला चश्मा था। जींस और टी-शर्ट उसके फौलादी जिस्म की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा रही थी।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः