माही के मुँह से "कोशिश करुँगी" यह शब्द सुनकर शोभा ने बौखलाते हुए कहा, "कोशिश करुँगी ... अरे तू ऐसा क्यों कह रही है? क्या तुमने अपने घर में कभी काम नहीं किया?"
माही ने शांत स्वर में कहा, "नहीं माँ, ज़्यादा तो नहीं किया। वहाँ तो हमारे घर में काम करने वाली बाई थी। ज़्यादातर काम तो वही कर देती थी। मेरी मम्मी रसोई का काम संभाल लेती थीं और हम लोग पढ़ाई में ही व्यस्त रहते थे।"
शोभा ने कहा, "यह तो तुम्हारी माँ ने बहुत ग़लत किया है। यदि उन्होंने नहीं सिखाया है तो अब सीख लो। काम तो करना पड़ेगा ना? यह तुम्हारा मायका नहीं, ससुराल है और हर सास को बहू के आने के बाद आराम करना ही चाहिए।"
माही को शोभा की बातें बुरी ज़रूर लगीं, पर उसने उनके सामने हर बात पर अपनी ख़ुशी जाहिर करते हुए हामी भर दी।
जब रात को वह अपने कमरे में गई, तब रीतेश ने उसे बाँहों में भरकर उसका चुंबन लेने के बाद कहा, "माही, अब तो हमारी शादी को तीन दिन हो गए हैं। तुम कल सुबह से जल्दी उठना शुरू कर दो। अब तक माँ ने सब कुछ संभाला था, अब तुम्हें संभालना पड़ेगा। यह उनके आराम करने के दिन हैं। तुम तो जानती ही होगी कि बहू के आने के बाद यह तो स्वाभाविक ही हो जाता है कि बहू काम करेगी और सास आराम। जब माँ बहू थीं, तब उनके साथ भी ऐसा ही तो हुआ था। इसी अनुभव को उन्होंने सच मान लिया है। बोलो माही, कर सकोगी सब कुछ?"
माही ने रीतेश की तरफ़ देखकर व्यंगात्मक मुस्कान बिखेरते हुए कहा, "रीतेश, मेरे घर भी मेरी भाभी हैं। लेकिन मेरी मम्मी आज भी उनके साथ बराबरी से काम करती हैं। अरे, कभी-कभी तो भाभी से भी ज़्यादा काम कर लेती हैं।"
"हाँ, करती होंगी माही, परंतु हर परिवार के कायदे-कानून अलग-अलग होते हैं। तुम यह तुलना मत करो। जब-जब मेरी शादी की बात घर में चलती थी, तब-तब माँ की एक ही इच्छा सामने आ जाती थी कि बस रीतेश, तेरी शादी करा दूं, फिर मैं आराम से रहूंगी।"
"ठीक है रीतेश, मैं ध्यान रखूंगी।"
अगले दिन अपने मोबाइल में सुबह पाँच बजे का अलार्म बजते ही माही उठकर बैठ गई। उसे याद आ रही थी अपने मायके की सुबह, जब वह आराम से उठती थी। कोई रोक-टोक नहीं थी, ना उस पर, ना ही उसकी भाभी पर। माही सुबह उठते ही काम से लग गई। उसने फटाफट अपने ससुर विनय, ननंद नताशा और रीतेश के लिए टिफिन बनाया। आदत ना होने के बाद भी उसने पूरी कोशिश की कि सही समय पर सबको नाश्ता मिल जाए। लेकिन टिफिन तैयार करने और नाश्ता बनाने में उसे देर हो गई। सभी लोग डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गए।
सासू माँ, जो कल तक पूरा काम अकेले ही करती थीं, आज रसोई में झांकने तक नहीं आईं। नई नवेली बहू को कुछ समझा दें, मदद कर दें, कुछ सिखा दें, पर नहीं, उन्हें तो उनका आराम प्यारा था; जिसका इंतज़ार वह कई दिनों से कर रही थीं। वह नाश्ते के समय पर आराम से अंगड़ाई लेती हुई उठीं और फ्रेश होकर सीधे कुर्सी पर आकर बैठ गईं।
अपने चश्मे को सर पर से उतारकर आँखों को पहनाते हुए उन्होंने आवाज़ लगाई, "अरे बहू, अभी तक नाश्ता तैयार नहीं किया क्या? यहाँ सब भूख के कारण बेचैन हो रहे हैं। नताशा को कॉलेज के लिए देर हो रही है। क्या तू उसका कॉलेज छुड़वाना चाहती है इसीलिए देर कर रही है?"
माही ने रोते हुए कहा, "मम्मी जी, आप यह क्या कह रही हैं? मैं भला ऐसा क्यों चाहूंगी?"
"अरे, जलन, जलन के मारे और क्या?"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः