वरुण को देखते ही सभी के चेहरों पर ख़ुशी दिखाई दे रही थी क्योंकि सभी को लग रहा था कि वरुण बिल्कुल नताशा की टक्कर का है। दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी लगेगी।
इसी बीच नताशा ने एक-एक करके सबसे वरुण का परिचय करवाया, "वरुण, यह मेरे पापा-मम्मी हैं और यह हैं मेरे बड़े भैया रीतेश और यह मेरी भाभी माही।"
वरुण ने नताशा के पापा-मम्मी के पाँव छुए, फिर रीतेश और माही से नमस्ते किया। इसके बाद सब बैठकर बातचीत करने लगे। वरुण से उसके माता-पिता के विषय में किसी ने कुछ नहीं पूछा क्योंकि नताशा ने पहले ही सबको बता दिया था कि उसके माता-पिता नहीं हैं। वरुण सभी को पसंद आ गया। वह लंदन में रहता है, अच्छी नौकरी करता है और सबसे ज़्यादा ख़ुशी उन्हें इस बात की थी कि वह अकेला है। सास-ननंद का झंझट ही नहीं है।
नताशा के पापा विनय ने अपनी पत्नी शोभा से कहा, "अरे शोभा, जाओ कुछ मीठा ले आओ। इतनी ख़ुशी का मौका है, हमारे होने वाले दामाद जी का मुंह मीठा करवा कर इस रिश्ते पर पक्का होने की मोहर लगा दो।"
"अरे, आप होने वाला क्यों कह रहे हैं? यह देखो, मैंने तो पहले से ही सारी तैयारी कर रखी है। चल रीतेश, तेरे जीजा को तिलक लगाकर यह भेंट दे-दे।"
"ठीक है, मम्मी," कहते हुए रीतेश ने वरुण को तिलक लगाया और एक लिफाफा देते हुए कहा, "यार वरुण, जल्दी में और कुछ नहीं ला सका, इसलिए यह ..."
"अरे, ठीक है ना भैया, यह सब तो औपचारिकता है, वैसे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है," इतना कहकर उसने लिफाफे के ऊपर लगा हुआ एक रुपये का सिक्का ले लिया और कहा, "बस यही काफ़ी है भैया, आप अपनी लाड़ली बहन, आपके घर की राजकुमारी मुझे सौंप रहे हैं; उसके अलावा मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए।"
वरुण के ऐसे व्यवहार ने सबका दिल जीत लिया। उस समय माही अपने पति को देख रही थी कि यह सुनकर उसकी क्या प्रतिक्रिया होती है, लेकिन जब रीतेश से उसकी नज़र मिली, तो रीतेश ने नज़र फेर ली।
थोड़ी देर बाद जब सब खाने के लिए बैठे, तो वरुण ने कहा, "अरे भाभी जी, आप भी आ जाइए ना खाना खाने। सब साथ में खा लेंगे, जिसे जो चाहिए ख़ुद ही ले सकता है।"
"नहीं, आप लोग खाइए, मैं बाद में खा लूंगी।" तभी शोभा ने कहा, "अरे माही, वरुण को खीर दे।"
वह नहीं चाहती थी कि माही भी सबके साथ खाने की टेबल पर आए।
खाना खाने के बाद वरुण ने कहा, "तो पापा, अब मुझे एक महीने के बाद जाना है। यह छुट्टियाँ मैंने सिर्फ़ नताशा के लिए ली हैं। क्या इसी महीने में हमारी शादी हो सकती है?"
"हाँ बेटा, क्यों नहीं, नताशा ने हमें सब कुछ बता दिया है। हमने पंडित से मुहूर्त पूछा तो उन्होंने कहा, इन दस दिनों में आप कभी भी विवाह कर सकते हो, तो हम लोगों ने सोचा है कि तुम जो तारीख कहोगे, वही तय कर लेंगे।"
"थैंक यू पापा, आप सभी लोग बहुत अच्छे हैं। पापा, मुझे लगता है आज 10 तारीख है, तो 19 तारीख ठीक रहेगी। फिर हम नताशा का वीजा वगैरह भी करवा देंगे। "
"ठीक है वरुण, हम लोग तैयार हैं।"
वरुण ने कहा, "अच्छा पापा-मम्मी, अब मैं चलता हूँ," इसके बाद माही की तरफ देखते हुए उसने कहा, "भाभी जी, आपने खाना बहुत टेस्टी बनाया था। आपके हाथ का खाना मुझे हमेशा याद रहेगा और वह खीर ... वह तो लाजवाब थी।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः