नताशा ने कहा, "दरअसल, वरुण, हमारे बीच सब कुछ इतनी जल्दी हो जाएगा, ऐसा तो मैंने भी कभी नहीं सोचा था।"
वरुण ने कहा, "अरे, नताशा, मैंने भी ऐसा कभी नहीं सोचा था, परंतु तुम में पता नहीं कैसा आकर्षण है, जो लगातार मुझे तुम्हारी तरफ़ खींचता ही चला जा रहा है। इससे पहले किसी को भी देखकर मुझे ऐसा कभी नहीं लगा था।"
नताशा ने वरुण का हाथ पकड़कर कहा, "वरुण, मेरा भी पहला प्यार तुम ही हो। मैंने भी इससे पहले कभी किसी के लिए यह महसूस नहीं किया था। शायद भगवान ने पहले से ही हमारी जोड़ी बना रखी है।"
दोनों बात करते-करते पार्किंग तक पहुँच गए। वहाँ से नताशा अपने घर चली गई और वरुण अपने।
आज वरुण बहुत खुश था। वह पूरे रास्ते नताशा के ख़्यालों में खोया दूसरे दिन का इंतज़ार कर रहा था, जब नताशा आकर उससे यह कहे, "वरुण, मेरे घर वालों ने हमारे रिश्ते के लिए हाँ कह दिया है। बस अब तुम्हें सबसे बात करने मेरे घर आना है।"
अगले दिन शाम को जब वरुण नताशा के ऑफिस के पास खड़ा होकर उसका इंतज़ार कर रहा था, तब कुछ ही समय में नताशा उसे दूर से आती हुई दिखाई दे रही थी। आज उसने गुलाबी रंग की बहुत ही सुंदर साड़ी पहन रखी थी और वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। उसे देखकर वरुण मुस्कुरा रहा था। वह सोच रहा था कि नताशा का चेहरा साफ-साफ यह बता रहा है कि वह बहुत खुश है, और वह खुश तो तभी होगी जब उसके घर वालों ने हाँ कह दिया होगा। इतने में ही नताशा अपने चेहरे पर आए बालों को हाथों से माथे के पीछे सरकाती हुई वरुण के पास आ गई।
आते ही उसने सीधे वरुण को गले से लगाते हुए कहा, "वरुण, मेरे घर में सब तैयार हैं। बस अब तुम्हें सबसे मिलने चलना है। मैंने सबको यह भी बता दिया है कि शादी के बाद मैं तुम्हारे साथ लंदन चली जाऊंगी। सब बहुत खुश हैं और तुमसे मिलने के लिए बेकरार भी हैं।"
वरुण ने उसे बाँहों में भरते हुए कहा, "यह तो तुमने बहुत ही अच्छी ख़बर सुनाई है, थैंक यू, नताशा।"
इसके बाद दोनों रोज़ की तरह होटल चले गए। वहाँ कॉफी के साथ बातचीत का दौर चलता रहा, भविष्य की योजनाएँ बनती रहीं।
नताशा ने पूछा, "तो वरुण, घर कब आ रहे हो?"
"बस कल ही आ जाऊंगा। कल तो रविवार है, तुम्हारी भी छुट्टी है, तो कल ही ठीक रहेगा। लेकिन नताशा, मैं यहाँ ज़्यादा दिन नहीं रह सकूँगा। मेरी दादी की पुण्य तिथि थी, इसलिए यहाँ आया था। मंदिर जाकर पूजा वगैरह करना चाहता था, वह सब हो गया है। अब तो मैं सिर्फ़ तुम्हारे लिए यहाँ रुका हूँ। क्या तुम्हारे पापा-मम्मी हमारी चट मंगनी और पट से शादी कर देंगे?"
"बिल्कुल कर देंगे, वरुण। मेरे घर में जो मैं चाहती हूँ, वही होता है।"
"तो ठीक है, मैं कल शाम को छः बजे आऊँगा।"
"ठीक है, वरुण, मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी।"
दूसरे दिन शाम को छः बजे वरुण नताशा के घर पहुँच गया। घर में उसके स्वागत की पूरी तैयारी कर रखी थी। माही ने भी खाने में कई तरह के पकवान बनाए थे। उसके आते ही पूरा परिवार हॉल में एकत्रित हो गया।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः