Mahashakti - 42 in Hindi Mythological Stories by Mehul Pasaya books and stories PDF | महाशक्ति - 42

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महाशक्ति - 42


🌺 महाशक्ति – एपिसोड 42


"भ्रमलोक की छाया और मृत स्मृतियाँ"




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🕯️ प्रस्तावना – प्रवेश उस लोक में, जहाँ सत्य स्वयं को भूल जाता है…


छाया की पिछली तीनों चालें असफल हो चुकी थीं:


मोहंध की मोहजाल


शल्या का प्रेम-शूल


और भ्रमलोक का खतरा



अब वह सबसे खतरनाक अस्त्र लेकर आई —

"मृत स्मृतियाँ" —

ऐसी छवियाँ, जो जीवित होते हुए भी मृत प्रतीत होती हैं।


उसने कहा:


> "इन तीनों ने अपने रिश्तों की गहराई पर भरोसा किया…

अब मैं उन्हें उनकी पहचान से ही काट दूँगी।

अब वे एक-दूसरे को देखेंगे —

लेकिन पहचान नहीं पाएँगे।"





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🌀 भ्रमलोक – चेतना का धुंधला द्वार


अर्जुन, अनाया, ओजस और अब शल्या

एक साथ भ्रमलोक के द्वार पर पहुँचे।


वहाँ एक शिला पर लिखा था:


> “यहाँ वह खो जाता है…

जो स्वयं को पूर्ण समझ बैठा हो।”




गुरुजी बोले:

"यहाँ प्रवेश करते ही तुम्हारी चेतनाएँ बिखर जाएँगी।

तुम्हें हर रिश्ते, हर स्मृति को फिर से कमाना होगा।"


ओजस ने शल्या का हाथ थामा।

"अगर मैं तुम्हें भूल जाऊँ… तो?"

शल्या मुस्कराई:

"तो मैं तुम्हें फिर से प्रेम करना सीखूँगी।"


चारों ने एक साथ कदम बढ़ाया —

और अगले ही क्षण…



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🌫️ पहली परत – पहचान का वियोग


ओजस को आँखें खोलते ही खुद को एक जंगल में पाया।

उसके पास एक स्त्री आई —

चमकती आँखें, लाल साड़ी, सिर पर सिंदूर।


"माँ?" उसने कहा।


"मैं तुम्हारी माँ नहीं हूँ, ओजस…"

"मैं तो केवल एक भ्रम हूँ…

पर अगर तुम मुझमें माँ ढूंढ लो,

तो शायद मैं सच हो जाऊँ।"


ओजस चुप था।

उसके भीतर एक अनजानी बेचैनी थी।


उसे अपनी पहचान धुंधली लग रही थी।



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अनाया एक मंदिर के खंडहर में थी।

वहाँ एक युवक खड़ा था —

कंधे चौड़े, आँखें गंभीर… पर पहचान अजनबी।


"तुम कौन हो?" उसने पूछा।


"मैं अर्जुन नहीं हूँ," उसने कहा।

"मैं बस एक यात्री हूँ,

जो अपना धर्म तलाश रहा है।"


अनाया की आँखों से आँसू बहने लगे।


"अगर तुम अर्जुन नहीं… तो मैं कौन हूँ?"

"क्या मेरा प्रेम कभी था भी… या बस कल्पना थी?"



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अर्जुन को एक तट पर खड़ा पाया गया।

एक बालक बालू में किलकारियाँ मार रहा था।


"ओजस?" अर्जुन ने पुकारा।


बालक चुप।

फिर बोला:

"पिता कौन होता है?"

"जो जन्म दे… या जो पहचान दे?"


अर्जुन के पैरों के नीचे की जमीन हिल गई।


वह बालक धीरे-धीरे जल में विलीन होने लगा…


"नहीं!" अर्जुन चिल्लाया।

"तू मेरा बेटा है! तू मेरा उत्तर है!"


पर कोई उत्तर नहीं आया।

केवल लहरों की सिसकी।



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🖤 छाया की चाल – मृत अनाया की छवि


अब छाया ने अपना सबसे क्रूर दांव चला।


ओजस के समक्ष वह छवि लाई,

जिसमें अनाया मृत अवस्था में पड़ी थी —

रक्त से लथपथ।


"यह तेरी माँ थी…"

"उसे बचा नहीं सका तू…

क्योंकि तेरा प्रेम सिर्फ शक्ति था,

त्याग नहीं।"


ओजस का स्वर काँप उठा:

"नहीं… माँ जीवित है…

ये झूठ है… ये भ्रम है…"


"तो उसे पहचान के दिखा,"

छाया बोली,

"अगर उसकी आत्मा तुझमें है —

तो वह तुझे स्वयं पहचान लेगी।"


ओजस रो पड़ा।



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🌸 शल्या का सत्य – वह देखती है प्रेम की सच्ची परछाई


शल्या, जो इस भ्रमलोक में सबसे कमजोर मानी जा रही थी,

अब सबसे जागरूक हो चुकी थी।


उसने एक-एक छवि को पहचानना शुरू किया —

छाया के दांव, उसके बनावटी रिश्ते,

हर फरेब को वह चीरती चली गई।


अंत में वह पहुँची अर्जुन और अनाया के बीच।


वह देखती है —

दोनों आमने-सामने खड़े हैं,

पर एक-दूसरे को पहचान नहीं पा रहे।


तभी शल्या, दोनों के बीच आती है।

वह अनाया का हाथ अर्जुन से मिलाती है।


"तुम दोनों को जो जोड़े रखता है —

वो सिर्फ स्मृति नहीं…

वो है आत्मिक विश्वास।

जिसे कोई भ्रम तोड़ नहीं सकता।"



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🔆 पहचान की वापसी – आत्मा की पुकार


अर्जुन की आँखें चमकीं।

"अनाया…"

"तेरी हथेली की रेखा आज भी वही है…

जिसे मैंने पहली बार छूकर अपनी तक़दीर माना था।"


अनाया काँपती है।

"अर्जुन…

तेरे स्वर में वो स्थिरता है…

जो दुनिया में किसी और की नहीं हो सकती।"


दोनों एक-दूसरे के गले लगते हैं।


वहीं ओजस,

अपनी हथेली से माँ की मरी हुई छवि को छूता है।


"माँ, अगर तू जीवित नहीं भी है —

तो भी तू मुझमें है।"


छवि मुस्कराती है —

और फिर प्रकाश बनकर ओजस के भीतर समा जाती है।



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🌠 भ्रमलोक का पतन – पहचान की पुनर्प्राप्ति


तीनों चेतनाएँ अब एक हो चुकी थीं।


छाया की आवाज़ गूँजी:


> "ये असंभव है!

भ्रमलोक से कोई वापस नहीं आता!"




गुरुजी प्रकट हुए:


"जहाँ प्रेम केवल भावना नहीं,

बल्कि दृष्टि बन जाए —

वहाँ भ्रम टूटता ही है।"



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🛤️ अब अंतिम राह – यक्षकुल की ओर


गुरुजी बोले:


> "अब केवल दो द्वार बचे हैं —

मानवकुल और यक्षकुल।

पर इनसे

पहले,

एक और युद्ध शेष है —

छाया का प्रत्यक्ष आक्रमण।"




शल्या झुककर बोली:

"मैं अब आपकी शरण में हूँ…

पर छाया मेरी चेतना से अब भी बंधी है।"


ओजस ने कहा:

"अगर तू मेरे साथ चल रही है…

तो छाया खुद काँपेगी।"



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✨ एपिसोड 42 समाप्त