अध्याय 2: अनाया – एक रहस्यमयी आगाज
बनारस की सुबहें वैसे तो गंगा आरती और मंदिरों की घंटियों की गूंज से भरी रहती थीं, लेकिन आज हवाओं में कुछ अलग था। घाट की सीढ़ियों पर बैठा अर्जुन अपने विचारों में खोया हुआ था। गंगा की ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी, और उसका मन किसी अज्ञात एहसास से भरा हुआ था। वह शिवजी की मूर्ति की ओर देखता रहा, जैसे कोई संकेत खोज रहा हो। लेकिन किसे पता था कि महादेव ने उसके लिए कुछ और ही योजना बनाई थी।
गंगा की लहरें मंद गति से बह रही थीं, सूर्य की हल्की किरणें पानी पर पड़ते ही सोने की तरह चमक रही थीं। अर्जुन ने अपनी आँखें बंद कर लीं और महादेव का ध्यान करने लगा। लेकिन तभी…
"संभल कर! यह बनारस है, यहां किसी का भी संतुलन बिगड़ सकता है!"
एक तेज़, आत्मविश्वास से भरी आवाज़ ने उसकी तंद्रा तोड़ दी। अर्जुन ने तुरंत आँखें खोलीं और सामने जो देखा, उसने एक पल के लिए समय रोक दिया।
सफेद सूट में, खुले बालों के साथ, हल्की-सी बारिश में भीगी हुई एक लड़की खड़ी थी। उसकी आँखों में अजीब सा तेज़ था, मानो वो सिर्फ एक आम इंसान नहीं, बल्कि कोई दिव्य शक्ति हो।
अर्जुन को पहले तो कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर उसने देखा कि लड़की का संतुलन बिगड़ रहा था। वह घाट की सीढ़ियों से नीचे गिरने ही वाली थी कि अर्जुन ने झट से आगे बढ़कर उसका हाथ थाम लिया।
"देखा, किसका संतुलन बिगड़ सकता था?" अर्जुन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
लड़की ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, बल्कि एक अजीब-सा आत्मविश्वास झलक रहा था।
"मुझे संभालने की जरूरत नहीं थी, मैं खुद को बचा लेती। लेकिन तुमने अच्छा किया, कम से कम तुम्हें लगा कि तुमने किसी की मदद की।" लड़की ने हल्के से हंसते हुए कहा।
अर्जुन को उसकी यह बात थोड़ी अजीब लगी, लेकिन उसे महसूस हुआ कि यह मुलाकात आम नहीं थी।
"वैसे, तुम बनारस में नई हो क्या?" अर्जुन ने पूछा।
लड़की ने सिर हिलाया, "नहीं, मैं यहीं की हूँ। लेकिन कुछ समय के लिए बाहर थी। और तुम?"
"बनारस और मैं अलग हो ही नहीं सकते। यह शहर मेरी आत्मा में बसता है।" अर्जुन ने गर्व से कहा।
लड़की ने हल्की मुस्कान दी और कहा, "बनारस के लोग भी बड़े दिलचस्प होते हैं। खैर, अब मैं चलती हूँ।"
अर्जुन को न जाने क्यों ऐसा लगा कि वह इसे इतनी जल्दी जाने नहीं देना चाहता।
"नाम तो बताती जाओ?"
लड़की मुड़ी, उसकी आँखों में एक चमक थी, "अनाया।"
अर्जुन ने यह नाम अपने मन में दोहराया। यह नाम साधारण नहीं था, इसमें एक गूंज थी, एक रहस्य था। वह उसे जाते हुए देखता रहा, लेकिन उसके मन में एक सवाल उठ चुका था—क्या यह महज़ एक संयोग था, या फिर कोई दैवीय लीला?
अनाया का रहस्य
अर्जुन की नजरें अब भी उसी ओर थीं, जिधर अनाया गई थी। उसके कदम अनायास ही उस ओर बढ़ गए, लेकिन जैसे ही वह गली के मोड़ तक पहुँचा, अनाया कहीं नहीं दिखी।
"अजीब लड़की थी… इतनी जल्दी गायब कैसे हो गई?" अर्जुन ने खुद से कहा।
तभी एक बूढ़ी महिला, जो घाट पर फूल बेच रही थी, अर्जुन के करीब आई।
"बेटा, तुम उसे देख रहे थे?"
अर्जुन चौंका, "किसे?"
बुढ़िया ने मुस्कुराकर कहा, "अनाया को… बहुत लोग उसे ढूँढते हैं, लेकिन वह हमेशा उसी को दिखती है, जिसे महादेव ने चुना हो।"
अर्जुन को लगा कि शायद यह कोई संयोग मात्र है, लेकिन उसके भीतर उठते सवाल उसे परेशान कर रहे थे।
"क्या मतलब? वो तो एक आम लड़की थी!" अर्जुन ने कहा।
बुढ़िया हंस पड़ी, "इस संसार में कुछ भी आम नहीं होता, बेटा। समय आने दो, सब समझ जाओगे।"
अर्जुन को इस बात का अर्थ समझ नहीं आया, लेकिन उसे इतना जरूर लगा कि उसकी मुलाकात यूं ही नहीं हुई थी।
(आगे क्या होगा? क्या अनाया और अर्जुन की राहें दोबारा टकराएंगी? क्या अनाया सच में साधारण लड़की है या कुछ और? जानने के लिए पढ़ते रहिए… ‘महाशक्ति’)