🌺 महाशक्ति – एपिसोड 41
"प्रेम का वध और धर्म की पुकार"
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🕯️ प्रारंभ – शांत तूफ़ान से पहले
रात्रि की शांति फैली थी…
अर्जुन, अनाया और ओजस अब तक की पांचों यात्राओं से थके थे।
पर अब आगे था मानवकुल, जहाँ
ना तो असुर होंगे,
ना देव,
बल्कि वही — जिनसे वे खुद जन्मे थे।
ओजस के भीतर अब एक अजीब-सा बेचैन मौन था।
शल्या की यादें… उसका स्पर्श… उसकी आँखों की उदासी…
कुछ ऐसा था जो उसे अंदर से हिला रहा था।
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🖤 छाया का अधूरा अस्त्र – अब शल्या बनेगी शूल
दूसरी ओर छाया अब संयम खो चुकी थी।
उसने शल्या को बुलाया और कहा:
> "प्रेम… तुझे भ्रमित कर रहा है।
ओजस की आत्मा को तोड़ने के लिए
अब तुझे स्वयं उसके ह्रदय पर वार करना होगा।"
शल्या काँप उठी,
"मैं… उससे प्रेम करती हूँ…"
"तो उसे मुक्त कर!"
छाया चिल्लाई,
> "वही प्रेम है — जो संहार करता है जब आवश्यकता हो।
अब तू बनेगी मेरा प्रेम-शूल।"
छाया ने एक काला मंत्र बोला —
शल्या की आँखें रक्तवर्ण हो गईं।
उसका प्रेम अब विस्मृति में बदल गया।
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💔 ओजस का द्वंद्व – प्रेम या धर्म
अगली सुबह, ओजस ध्यान में बैठा था
तभी उसकी चेतना में शल्या की छवि उभरी —
पर diesmal उसकी मुस्कान नर्म नहीं थी —
वो छाया से भरी थी।
ओजस समझ गया —
"अब वो मेरी नहीं रही…
या शायद… उसे भुला दिया गया है।"
उसने गुरुजी से पूछा:
"जब प्रेम के विरुद्ध ही धर्म खड़ा हो जाए…
तो क्या किया जाए?"
गुरुजी बोले:
> "धर्म वो है जो तुम्हारी आत्मा को स्थिर करे —
प्रेम, अगर तुम्हें डगमगा दे… तो वो मोह है, भक्ति नहीं।"
ओजस शांत हुआ,
"तो मैं आज उसका वध नहीं…
उसके भीतर के मोह का वध करूँगा।"
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🔮 एक रहस्य खुलता है – अर्जुन और अनाया का पूर्व जन्म
मानवकुल में प्रवेश से पूर्व,
तीनों को एक ऋषि-अश्रम से संकेत मिला।
वहाँ एक प्राचीन ग्रंथ उन्हें सौंपा गया —
जिसमें लिखा था:
> "जब पृथ्वी पर प्रेम देवता स्वयं मानव रूप में जन्म लें…
और उनकी संतान अग्नि की आत्मा से बने —
तब छाया का नाश संभव होता है।"
अर्जुन ने पूछा,
"क्या ये भविष्यवाणी हम पर लागू होती है?"
तभी ग्रंथ की पंक्तियाँ अपने आप बदलने लगीं —
"अर्जुन… तू वही है जो पूर्व जन्म में
महादेव के चरणों में खड़ा था…
और अनाया… वह पार्वती स्वरूपा है,
जिसे मृत्यु के बाद भी चेतना बनी रहने का वरदान मिला था।"
दोनों स्तब्ध रह गए।
गुरुजी बोले:
"तुम्हारे प्रेम की डोर केवल इस जन्म की नहीं —
ये युगों की यात्रा है।"
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🌩️ ओजस बनाम शल्या – प्रेम का वध
शाम के समय ओजस एक विशाल मैदान में खड़ा था।
वहाँ आई शल्या — पर अब उसकी चाल, उसका स्वर —
सब कुछ बदल चुका था।
"ओजस!" वो गरजी,
"तेरा अंत आज मेरे हाथों लिखा है।"
ओजस चुप रहा,
उसकी हथेली में कोई शस्त्र नहीं था।
"मुझे मार लो…"
उसने आँखें बंद करते हुए कहा,
"अगर मेरा प्रेम तेरे लिए बंधन है —
तो आज मैं तुझे मुक्त करता हूँ।"
शल्या का त्रिशूल काँप गया।
उसके हाथ ठिठक गए।
"तू मुझसे नहीं लड़ रहा…"
वो चीख उठी,
"तू मुझे अपने प्रेम से तोड़ रहा है!"
"क्योंकि प्रेम की शक्ति घृणा से बड़ी होती है।"
ओजस ने कहा।
शल्या की आँखों में आँसू थे —
"मैं तुझसे नफ़रत नहीं कर सकी…
पर मैं खुद से कर रही हूँ।"
उसने अपना त्रिशूल खुद के ऊपर घुमाया।
पर ओजस ने समय रहते उसे पकड़ लिया।
"मैं तुझे मिटाना नहीं चाहता —
तुझे फिर से पहचान दिलाना चाहता हूँ।"
शल्या की चेतना हिल चुकी थी —
छाया की काली छाया धीरे-धीरे उससे निकलने लगी।
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⚔️ छाया का क्रोध – अब प्रत्यक्ष युद्ध
छाया चीखी:
"ओजस ने मेरे प्रेम-शूल को निष्क्रिय कर दिया…
अब मैं स्वयं उतरूँगी!"
उसने अपनी चेतना से एक भ्रम-जाल तैयार किया —
जिसमें अर्जुन, अनाया और ओजस
तीनों को अलग-अलग दिशाओं में बाँट दिया जाएगा।
"अब से कोई किसी को न पहचान पाएगा…
न रिश्ते रहेंगे, न स्मृतियाँ।"
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🌌 तीनों की तैयारी – अंतिम तीन कुलों की ओर
गुरुजी ने संदेश भेजा:
> "मानवकुल और यक्षकुल अब बाकी हैं।
पर इनसे पूर्व, तुम्हें भ्रमलोक पार करना होगा —
जहाँ तुम्हारी पहचान, तुम्हारा प्रेम, और तुम्हारी नियति —
तीनों पर सबसे गहरा आघात होगा।"
ओजस ने शल्या की ओर देखा —
अब उसकी आँखों में फिर से वही शांत लहरें थीं।
"क्या तुम हमारे साथ चलोगी?"
उसने पूछा।
शल्या मुस्कराई:
"अगर मैं तेरे साथ चल सकूँ —
तो शायद मैं खुद को फिर से पा सकूँ।"
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✨ एपिसोड 41 समाप्त