MAHAASHAKTI - 1 in Hindi Mythological Stories by Mehul Pasaya books and stories PDF | महाशक्ति - 1

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महाशक्ति - 1


एपिसोड01 सीजन 01 "महादेव की महिमा" – अर्जुन की कहानी

वाराणसी की तंग गलियों में अर्जुन का छोटा सा घर था, जहाँ वह अपनी पत्नी सुमन और छह साल के बेटे मोहन के साथ रहता था। एक साधारण मजदूर, जो सुबह काम पर जाता और शाम को दो वक्त की रोटी का इंतज़ाम करके लौट आता। उसकी दुनिया छोटी थी, मगर सुकून से भरी थी।

पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। एक दिन काम से लौटते समय अर्जुन का एक्सीडेंट हो गया। उसकी टांग इतनी बुरी तरह जख्मी हुई कि डॉक्टर ने कह दिया— "अब कुछ महीनों तक चलना तो दूर, सही से खड़ा होना भी मुश्किल होगा।"

यह सुनते ही अर्जुन की दुनिया अंधेरे में डूब गई। घर कैसे चलेगा? बेटे की पढ़ाई का क्या होगा? यह सब सवाल उसके मन में बवंडर की तरह घूम रहे थे। उस रात वह घर की चौखट पर बैठकर चुपचाप आसमान को ताक रहा था। हवा में कहीं दूर से "हर हर महादेव" का स्वर गूंज रहा था। उसकी नज़र पड़ोस के शिव मंदिर पर गई, जिसकी घंटियाँ हल्की-हल्की हवा में लहराकर जैसे उसे बुला रही थीं।

"क्या सच में कोई शक्ति होती है? क्या महादेव मेरी सुन सकते हैं?"— यह सवाल उसके मन में उठा, मगर फिर उसने सिर झटक दिया।

अगली सुबह, अर्जुन ने जैसे-तैसे बैसाखी के सहारे उठकर मंदिर जाने का फैसला किया। दर्द के बावजूद, वह एक-एक कदम बढ़ाता हुआ मंदिर तक पहुँच गया। अंदर घुसते ही उसे एक अजीब सी शांति महसूस हुई। दीपक की लौ मंद-मंद जल रही थी और मंदिर में कोई श्रद्धालु ओम नमः शिवाय का जाप कर रहा था।

पुजारी ने अर्जुन को देखा और मुस्कुराते हुए पूछा, "पहली बार मंदिर आए हो, बेटा?"

अर्जुन ने सिर झुका लिया, "हाँ बाबा, पहले कभी वक्त ही नहीं मिला..."

पुजारी ने कहा, "महादेव के दरबार में देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं। तुम बस अपनी श्रद्धा से उनका नाम लो, वो खुद रास्ता दिखाएंगे।"

उस दिन के बाद अर्जुन ने रोज़ मंदिर जाना शुरू कर दिया। पहले वह बस चुपचाप बैठा रहता, फिर धीरे-धीरे वह महादेव के भजन गाने लगा। ऐसा करते हुए कई दिन बीत गए, और अर्जुन के मन में महादेव के प्रति गहरी श्रद्धा जगने लगी।

कुछ हफ्तों बाद, अचानक अर्जुन के पुराने मालिक का संदेश आया कि अगर वह किसी भी तरह काम पर लौट सकता है, तो उसे नौकरी वापस मिल जाएगी। लेकिन समस्या यह थी कि उसकी टांग अब भी सही से ठीक नहीं हुई थी।

उसने मंदिर जाकर महादेव से प्रार्थना की, "हे महादेव, अगर आप सच में हैं, तो मेरी सहायता करें। मुझे कुछ ऐसा संबल दें कि मैं अपने पैरों पर फिर से खड़ा हो सकूं।"

उसी दिन अर्जुन ने संकल्प लिया कि वह 11 सोमवार का व्रत रखेगा और रोज़ शिव जी को जल चढ़ाएगा। चाहे कितना भी दर्द हो, वह रोज़ बैसाखी के सहारे मंदिर जाता।

आठवें सोमवार को, जब वह मंदिर से लौट रहा था, उसकी बैसाखी अचानक गिर गई। संभलने के लिए उसने खुद को ज़मीन पर गिरने से बचाने की कोशिश की और तभी उसे एहसास हुआ— उसकी टांग अब पहले जैसी दर्द नहीं कर रही थी!

धीरे-धीरे अर्जुन बिना बैसाखी के खड़ा होने लगा।

ग्यारहवें सोमवार तक आते-आते वह पूरी तरह ठीक हो चुका था। उसने अपने मालिक से जाकर मुलाकात की, और उसी दिन से काम पर लौट आया।

अब उसकी जिंदगी पहले जैसी नहीं थी—उसके भीतर श्रद्धा की एक नई लौ जल चुकी थी। जब पहली तनख्वाह मिली, तो वह सबसे पहले मंदिर पहुँचा और शिवलिंग के सामने नतमस्तक हो गया। अब उसे किसी चीज़ का भय नहीं था, कोई शंका नहीं थी।

"महादेव सिर्फ शक्ति के देवता नहीं हैं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास का सबसे बड़ा स्रोत भी हैं। जब कोई सच्चे मन से उन्हें पुकारता है, तो वे उसकी मदद करने जरूर आते हैं।" अर्जुन के होंठों से बस यही शब्द निकले।

"हर हर महादेव!"


"अर्जुन की यह कहानी सिर्फ एक शुरुआत थी... क्या महादेव की यह महिमा आगे भी चमत्कार दिखाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए – 'महाशक्ति'!"