Gunahon Ki Saja - Part 15 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | गुनाहों की सजा - भाग 15

Featured Books
Categories
Share

गुनाहों की सजा - भाग 15

अपनी ससुराल पहुँचकर माही ने रीतेश को वहाँ का पूरा किस्सा सुनाते हुए कहा कि उसने अपने पापा से बात कर ली है और उन्हें मना भी लिया है। माही के मुँह से यह सुनते ही रीतेश के लालची मन में ख़ुशी के पटाखे फूटने लगे।

उसने बड़े ही प्यार से माही को अपनी बाँहों में भरते हुए कहा, "वेरी गुड माही, तुम्हारी मेरे दिल की रानी बनने की शुरुआत आज से ही हो गई है। बस कागजात ले आओ, फिर देखना तुम्हारी ज़िन्दगी ही बदल जाएगी।"

रीतेश की बात सुनकर माही के दिल में उसके लिए पनपी हुई नफ़रत और भी बढ़ गई। वह सोच रही थी कि रीतेश लालच के जिस बवंडर में गोते लगा रहा है, वह एक न एक दिन उनके रिश्ते को ख़त्म कर देगा।

उधर माही के पापा दिन-रात तनाव में रहने लगे। वह यह बात न अपनी पत्नी को बता सकते थे, न बेटे को। यदि रौशनी को बताते, तो उसका तो रोना-धोना सब शुरू हो जाता और रात-दिन चिंता करती वह अलग। यदि नीरव को बताते, तो वह तो सीधे रीतेश से झगड़ा करने पहुँच जाता। क्या करें, क्या न करें, इसी कशमकश में उनके दिन-रात बीत रहे थे।

इधर ज़ोर-शोर से शादी की तैयारियाँ चल रही थीं। एक हफ्ता बीतने में समय ही कहाँ लगता है। 19 तारीख भी आ गई और वरुण के साथ माही का विवाह भी संपन्न हो गया। ये शादी एकदम साधारण तरीके से की गई क्योंकि इतनी जल्दी ज़्यादा कुछ नहीं हो सकता था। शादी से पहले सभी ने मिलकर यह तय किया था कि शादी के बाद एक शानदार रिसेप्शन आयोजित किया जाएगा, जिसमें सभी रिश्तेदार और जान-पहचान वाले लोगों को आमंत्रित किया जाएगा।

शादी के बाद नताशा का परिवार बहुत खुश था। इतना अच्छा दामाद मिल गया और शादी भी कम खर्चे में ही निपट गई।

शादी के अगले ही दिन वरुण और नताशा हनीमून पर चले गए।

हनीमून पर वरुण ने अपनी सुहाग रात पर ही नताशा से कहा, "नताशा, मैं सोच रहा हूँ, मैंने लंदन में काफ़ी पैसा इकट्ठा कर लिया है। यदि उस पैसे से मैं यहाँ पर अपना बिज़नेस शुरू कर दूं, तो कैसा रहेगा? तुम्हें तुम्हारे पापा-मम्मी से दूर नहीं जाना पड़ेगा। मेरा तो वैसे भी कोई परिवार नहीं है, पर तुम्हारा तो है और वही अब मेरा भी परिवार है।"

"वरुण, ये तो बहुत ही अच्छी बात है। मैं बहुत खुश हूँ, तुम मेरे लिए कितना सोचते हो।"

दो-तीन रातें प्यार से हनीमून मनाने के बाद, चौथे दिन वरुण ने नताशा से कहा, "नताशा, एक समस्या है, मेरा पूरा पैसा तो मैं बिज़नेस में लगा दूंगा, पर मुझे एक बहुत बड़ी जगह चाहिए होगी। उसका क्या करूं...? इतना पैसा नहीं है मेरे पास कि जगह भी अभी ही खरीद लूं। तुम्हारी नज़र में है कोई ऐसी प्रॉपर्टी जो हमें सस्ते दाम में मिल सके?"

"नहीं वरुण, ऐसी तो कोई जानकारी मुझे नहीं है, पर हम ढूँढ लेंगे और किराए से ले लेंगे।" वरुण ने प्यार से उसे अपनी बाँहों में भर लिया। वरुण की बाँहों में खोकर नताशा ने वह कह दिया जो शायद उसे नहीं कहना चाहिए था। उसने कहा, "वरुण, मैं तुम्हें एक बात बताना चाहती हूँ, पर तुम हमारे घर पर उसकी चर्चा मत करना; ना ही किसी को पता लगने देना कि मैंने तुम्हें कुछ बताया है।"

"बात क्या है, नताशा, बताओ? मैं क्यों किसी से कुछ कहूंगा?"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः