जैसे ही अर्निका और उसके दोस्त क्लासरूम में दाखिल हुए, पूरे क्लास में अचानक सन्नाटा छा गया। सभी स्टूडेंट्स अपनी बातें रोककर उनकी तरफ देखने लगे। अर्निका और उसके दोस्त बिना किसी की परवाह किए चुपचाप अपनी सीट पर जाकर बैठ गए।
उधर रिया ने उन्हें देख कर अपनी दोस्त कायरा के पीछे छिपने की कोशिश की और धीरे-धीरे कुछ बड़बड़ाने लगी। उसकी ये हरकत ईनाया की नजर से बच नहीं पाई।
ईनाया बिना देर किए उठी और रिया के पास जाकर धीमी आवाज में बोली,
"रिया, क्या अपनी ही क्लास की स्टूडेंट को सीनियर्स के साथ मिलकर बुली करना सही होता है?"
रिया थोड़ी घबरा गई। उसे उम्मीद नहीं थी कि ईनाया इस तरह सामने आकर सवाल करेगी। वह बोली,
"मैंने कुछ नहीं किया... मैं बस अपनी दी के साथ थी। मैंने किसी से कुछ भी नहीं कहा।"
इस पर ईनाया ने उसे गंभीर लहजे में जवाब दिया,
"सच में? क्या हम सब नहीं जानते क्या हुआ था? अर्निका ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था जो तुमने सीनियर्स के साथ मिलकर उसे रैगिंग करने की कोशिश की? अगर वो खुद को डिफेंड नहीं कर पाती, तो आज हालात कुछ और होते। क्या तुम्हें ये सब शोभा देता है?"
क्लास के बाकी स्टूडेंट्स अब रिया की ओर अजीब नजरों से देखने लगे।
ईनाया ने एक नज़र रिया की आँखों में डाली और कहा,
"आज जो हुआ सो हुआ, लेकिन आगे से मैं चुप नहीं बैठूंगी। समझी?"
इतना कहकर वो अपनी सीट पर वापस आकर बैठ गई, और क्लास में फिर से शांति छा गई।
रिया सबके सामने शर्मिंदा हो चुकी थी, और इसी वजह से अंदर ही अंदर गुस्से से तिलमिला उठी। उसे ईनाया पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन क्लास के सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।
रिया के चेहरे पर गुस्सा देख कर कियारा बोली,
"रिया, गुस्सा करने की जरूरत नहीं है। गलती तुम्हारी थी, तो उसका सामना भी करना पड़ेगा।"
इस पर रिया की दूसरी दोस्त जूली बीच में बोली,
"कियारा, मुझे नहीं लगता रिया ने कुछ गलत किया। ये लोग खुद को कोई राजकुमारी समझते हैं, जैसे इनके साथ कोई कुछ कर ही नहीं सकता!"
तभी एक और दोस्त ने जूली की हां में हां मिलाते हुए कहा,
"बिलकुल सही कहा। रिया, तुम परेशान मत हो। तुम खुद एक क्वीन हो, इन डाउनमार्केट लोगों की बातों को सीरियस लेने की जरूरत नहीं है।"
इसी बीच क्लास में प्रोफेसर रंधावा की एंट्री हुई। उनके आते ही पूरे क्लासरूम में सन्नाटा छा गया।
प्रोफेसर रंधावा, जिन्हें उनकी सख्ती और न्यायप्रियता के लिए जाना जाता था, क्लास में आते ही बोले,
"क्या चल रहा है यहां? सबके चेहरे इतने गंभीर क्यों हैं?"
रिया और उसकी दोस्तें तुरंत शांत होकर अपनी सीट पर बैठ गईं। प्रोफेसर ने माहौल को भांप लिया था, लेकिन उन्होंने बिना कुछ कहे क्लास शुरू कर दी।
पढ़ाते-पढ़ाते थोड़ी देर बाद उन्होंने किताब बंद की और गंभीर लहजे में बोले,
"मैं देख सकता हूँ कि क्लास में कुछ गड़बड़ है। लेकिन याद रखो — यहां कोई किसी से बड़ा या छोटा नहीं है। अगर किसी ने भी किसी को तंग करने, नीचा दिखाने या रैगिंग करने की कोशिश की, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी, जिसमें सस्पेंशन भी शामिल है। ये क्लास पढ़ाई के लिए है, न कि किसी की इज्जत से खेलने के लिए।"
उनकी बात सुनकर क्लास में एक गहरी शांति छा गई, और हर कोई चुपचाप अपनी किताब की तरफ देखने लगा।
रिया प्रोफेसर की बातों से अंदर ही अंदर तिलमिला गई थी। उसका चेहरा सख्त और चुपचाप हो गया।
प्रोफेसर रंधावा ने इसके बाद दोबारा पढ़ाना शुरू किया। इस बार सभी स्टूडेंट्स क्लास पर ध्यान देने लगे और माहौल थोड़ा सामान्य होने लगा।
क्लास खत्म होते ही प्रोफेसर ने जाते-जाते कहा,
"आज के लिए बाकी क्लास कैंसल है। आप चाहें तो घर जा सकते हैं या लाइब्रेरी में पढ़ाई कर सकते हैं।"
यह सुनकर सभी स्टूडेंट्स खुश हो गए और अपने-अपने प्लान बनाने लगे।
अर्निका ने ईनाया की तरफ देखा और कहा,
"चल, घर चलते हैं।"
फिर दोनों ने अपने बाकी दोस्तों को बाय बोला और पार्किंग एरिया की तरफ बढ़ गईं। वहाँ से अपनी-अपनी बाइक ली और घर के लिए निकल पड़ीं।
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उधर राठौर भवन में, प्रिंस अपने कमरे में बैठकर लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। तभी उसका असिस्टेंट कुशल कमरे में आया और पास आकर बैठ गया।
कुशल ने कहा,
"प्रिंस, तुम्हें अभी आराम करना चाहिए। काम तो बाद में भी हो सकता है। पहले ठीक तो हो जाओ पूरी तरह।"
प्रिंस ने उसकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, बस स्क्रीन की तरफ देखता रहा। फिर उसने बिना देखे पूछा,
"जो मैंने कहा था, वो हो गया?"
कुशल ने एक फाइल उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा,
"हाँ, हो गया। उसकी सेफ्टी के लिए लोग तैनात कर दिए हैं। वो अब अपने अपार्टमेंट में शिफ्ट हो चुकी है और आज से कॉलेज भी जाने लगी है। मुझे ये भी पता चला है कि उसे और उसकी फ्रेंड को बाइक चलाना पसंद है, इसलिए दोनों कॉलेज बाइक से जाती हैं।"
प्रिंस ने फाइल ली और ध्यान से हर पन्ना पढ़ने लगा। उसकी आँखों में गंभीरता थी, जैसे वह किसी बड़ी बात पर विचार कर रहा हो।
फाइल के आखिरी पन्ने तक पहुँचते ही उसने कुशल की तरफ देखा और ठंडे लहजे में कहा,
"मुझे हर दिन की रिपोर्ट चाहिए — कब निकलती हैं, कब लौटती हैं, किससे मिलती हैं। और अगर उनके आसपास कोई अजनबी दिखाई दे, तो मुझे तुरंत खबर चाहिए।"
कुशल ने सिर हिलाते हुए कहा,
"जैसा आप कहें, प्रिंस। लेकिन मुझे नहीं लगता कि उसे सेफ्टी की जरूरत है। पता नहीं क्यों, पर मुझे लगता है वो बाकी सबसे अलग है। कोई उसे इतनी आसानी से नुकसान नहीं पहुंचा सकता।"
प्रिंस ने थोड़ी देर सोचते हुए पूछा,
"क्या मतलब है तुम्हारा?"
कुशल ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया,
"उसकी आंखों में कुछ खास है... जैसे उसने बहुत कुछ देखा हो। और उसके चारों ओर एक अजीब-सी एनर्जी है, जिसे समझना इतना आसान नहीं है। एक बात पूछूं? तुम वाकई उसकी सुरक्षा के लिए ये सब कर रहे हो या उसकी हर हरकत पर नजर रखने के लिए?"
प्रिंस ने बिना हिचकिचाए लैपटॉप बंद करते हुए कहा,
"ऐसी कोई बात नहीं है। मैं सिर्फ उसकी सेफ्टी चाहता हूं, और कुछ नहीं। उसने मेरी जान बचाई है, इसके लिए मैं उसका एहसानमंद हूं — बस इतनी सी बात है। तुम बेवजह ज़्यादा सोच रहे हो।"
कुशल ने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप प्रिंस को बेड तक ले जाने में मदद की ताकि वह आराम कर सके। उसे आराम से लेटा कर कुशल कमरे से बाहर निकल गया।
रूम का दरवाज़ा बंद करते हुए कुशल ने धीमे से कहा,
"क्या तुम सच में सोचते हो कि मैं तुम्हारी बातों पर यकीन कर लूंगा, प्रिंस? इतने सालों में तुमने सिर्फ अपनी बहन की परवाह की है… फिर अब ये सब क्यों?"
इतना कह कर कुशल हल्की मुस्कान के साथ वहां से चला गया।
उधर, अर्निका और ईनाया अपने अपार्टमेंट पहुंच चुकी थीं। दोनों ने फ्रेश होकर खाना खाया और थोड़ी देर आराम करने लगीं।
शाम के सात बजे अर्निका की मोबाइल की रिंगटोन बजी, जिससे उसकी नींद टूट गई। उसने आंखें मलते हुए मोबाइल स्क्रीन पर देखा — कॉल उसकी मां की थी। उसने तुरंत फोन रिसीव किया।
फोन के उस तरफ से उसकी मां की आवाज आई,
"कुकी, अभी तक सो रही हो? ये कोई सोने का टाइम है?"
अर्निका ने थोड़ी धीमी आवाज में जवाब दिया,
"मम्मा, कॉलेज से आने के बाद बहुत थक गई थी, इसलिए थोड़ी देर आराम कर रही थी। आप कैसी हो? सब ठीक है न?"
मां ने हँसते हुए कहा,
"सब ठीक है… बस तुम्हारी याद आ रही थी।"
कुछ देर दोनों ने हल्की-फुल्की बातें कीं, फिर अर्निका ने सुबह डीन से हुई बातचीत का ज़िक्र किया। साथ ही उसने अपनी मां से वो सवाल भी पूछ लिया, जो उसके मन में कब से था —
"मम्मा, आपको जो मौका मिला था विदेश जाकर पढ़ाई करने का… आपने उसे छोड़ा क्यों?"
उसके इस सवाल पर पहले तो माधवी जी के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई, लेकिन फिर वो मुस्कान धीरे-धीरे फीकी पड़ गई। उन्होंने खुद को संभालते हुए कहा,
"उस वक्त कुछ पारिवारिक परेशानियाँ थीं, इसलिए जाना नहीं हो पाया। लेकिन अब जब तुम पढ़ाई के लिए आगे बढ़ोगी, तो मुझे लगेगा जैसे मेरा अधूरा सपना तुम पूरा कर रही हो।"
अर्निका को उनकी बातों में एक मां की अधूरी चाहत, छुपा दर्द और बेटी के लिए गर्व — सब साफ़ महसूस हुआ। उसने उस पल और कुछ नहीं पूछा। उसे यकीन था कि जब वक्त आएगा, मां खुद सब बताएंगी।
फिर थोड़ी और बातें करने के बाद अर्निका ने कॉल काट दिया। वह मन ही मन ठान चुकी थी — अब और मेहनत करनी है, ताकि न सिर्फ अपना, बल्कि अपनी मां का सपना भी पूरा कर सके।
वो फ्रेश हुई, नीचे जाकर सरिता दीदी से एक कप कॉफी बनवाने को कहा और फिर अपने कमरे में लौटकर स्टडी टेबल पर बैठ गई — एक नए जोश के साथ पढ़ाई करने के लिए।
ऐसे ही सात दिन कब बीत गए, पता ही नहीं चला। अर्निका हर रोज कॉलेज जाती, वापस आकर थोड़ा आराम करती और फिर पढ़ाई में लग जाती। इन कुछ दिनों में अर्निका कॉलेज में काफी पॉपुलर हो गई थी। अब लोग उसे कॉलेज की नई ब्यूटी क्वीन कहने लगे थे।
जहाँ पहले साइरा और उसके ग्रुप का नाम हर किसी की जुबान पर होता था, अब अर्निका की हिम्मत, खूबसूरती और सादगी की चर्चा हर कोने में सुनाई देने लगी। नए स्टूडेंट्स तो उसे अपना रोल मॉडल मानने लगे थे, और कुछ सीनियर्स भी उसकी आत्मविश्वास और अंदाज़ से प्रभावित हो चुके थे।
साइरा, उसका ग्रुप और रिया — सभी इस बदलाव से काफी परेशान थे। उन्हें यह हज़म नहीं हो रहा था कि उनकी जगह अब किसी और ने ले ली है। खासकर साइरा को यह सबसे ज़्यादा चुभ रहा था कि युगांश अब अक्सर अर्निका की तरफ ध्यान देने लगा है।
इन सात दिनों में अर्निका की एक अलग पहचान बन चुकी थी। वह सिर्फ एक मजबूत लड़की नहीं थी, बल्कि वह दूसरों के लिए आवाज उठाने वाली, अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने वाली शख्सियत बन चुकी थी।
उधर, प्रिंस की तबीयत भी अब काफी ठीक हो चुकी थी। उसकी चोटें लगभग भर चुकी थीं, बस कहीं-कहीं पट्टी बाकी थी। अब वह पहले जैसा सामान्य महसूस करने लगा था। वो घर से ही ऑफिस का काम सँभाल रहा था, हालांकि सब उसे आराम करने की सलाह देते रहते थे, लेकिन वो मानता नहीं था।
आज कई दिनों बाद वह ऑफिस जाने की तैयारी में था। सुबह उठकर उसने खुद को तैयार किया और नीचे डाइनिंग हॉल में आकर पूरे परिवार को गुड मॉर्निंग कहा।
डाइनिंग हॉल में जैसे ही प्रिंस आया, सभी के चेहरे पर खुशी झलक उठी। उसकी दादी ने उसे देखते ही कहा,
"अरे वाह! आज तो हमारा प्रिंस पहले जैसा चमक रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे घर की रौनक लौट आई हो।"
प्रिंस मुस्कुराया और बोला,
"दादी, अब ज्यादा दिन आराम किया तो बोर होने लगा। अब वापस काम पर लौटना ज़रूरी हो गया है।"
पापा ने अखबार एक तरफ रखते हुए कहा,
"काम ज़रूर करो बेटा, लेकिन ध्यान रखना — खुद को ज़्यादा मत थकाना। अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुए हो।"
मां ने प्यार से उसकी थाली में उसका फेवरेट नाश्ता परोसा और बोली,
"आज तुम्हारे लिए खास पराठे बनाए हैं, ऑफिस में एनर्जी की ज़रूरत पड़ेगी ना!"
प्रिंस ने मुस्कुराते हुए उन्हें धन्यवाद कहा और नाश्ता करने लगा। घर का माहौल एकदम पॉजिटिव था। सबको पता था कि प्रिंस आमतौर पर सीरियस रहता है, इसलिए उसके चेहरे की ये हल्की मुस्कान सबके लिए किसी तोहफे से कम नहीं थी।
तभी दादाजी ने प्रिंस की तरफ देख कर कहा,
"बेटा, मेरा मानना है कि तुम्हें कुछ दिन और आराम करना चाहिए। तुम्हारी चोट अभी पूरी तरह भरी नहीं है।"
प्रिंस ने तुरंत जवाब दिया,
"दादाजी, मैं बिलकुल ठीक हूँ। और ऑफिस में बहुत सारा काम जमा हो गया है। मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि थोड़ी सी चोट मुझे रोक सके।"
प्रिंस की बात सुनकर दादाजी हल्के से मुस्कुराए और बोले,
"ठीक है, लेकिन एक वादा करो — अगर तबीयत थोड़ी भी खराब लगे, तो फौरन घर लौट आना।"
प्रिंस ने सिर हिलाते हुए कहा,
"ठीक है दादाजी, वादा रहा।"
नाश्ता करने के बाद प्रिंस ने अपना लैपटॉप बैग उठाया और घर से बाहर निकल आई। गाड़ी पहले से ही तैयार खड़ी थी। जैसे ही वो गाड़ी की तरफ बढ़ी, दरवाज़े पर खड़े उसके छोटे भाई दर्शित ने मुस्कुराते हुए चुटकी ली,
"दीदी, आज तो लग रहा है जैसे आप ऑफिस नहीं, फिल्म की शूटिंग के लिए जा रही हो!"
प्रिंस ने उसकी तरफ घूरते हुए कहा,
"अपनी बकवास बंद कर और कॉलेज निकल, बहुत दिन से छुट्टियों के बहाने घर पर बैठा है। हां, अगर पढ़ाई नहीं करनी तो मेरे साथ ऑफिस चल।"
उसकी बात सुन दर्शित घबरा गया और जल्दी से बोला,
"नहीं नहीं भैया, मुझे कॉलेज के लिए देर हो रही है!"
इतना कहकर वो फटाफट अपनी स्पोर्ट्स कार में बैठा और वहां से निकल गया।
उसे भागते देख सब हंस पड़े। तभी छोटा भाई अधीर अपना स्कूल बैग लिए प्रिंस के पास आया और बोला,
"भैया, लगता है वो तो ऑफिस के नाम से ही डर के भाग गया।"
प्रिंस ने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ फेरा और उसे कार में बैठने का इशारा किया। दोनों जैसे ही बैठ गए, ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की और वे ऑफिस के लिए निकल पड़े।
वहीं दूसरी तरफ, हमेशा की तरह अर्निका, ईनाया को उठाने की कोशिश कर रही थी।
"ईनाया उठ जा! कॉलेज के लिए लेट हो जाएगा!"
पर ईनाया तो कंबल में लिपटी पड़ी थी, उठने का नाम ही नहीं ले रही थी।
थक हार कर अर्निका ने एक लंबी सांस ली और नीचे किचन में चली गई। फ्रीज से ठंडे पानी की बॉटल निकाली, उसे एक जग में डाला और वापस ऊपर जाने लगी।
सरिता ताई, जो नाश्ता बना रही थीं, ने उसे ऐसा करते देखा और पूछा,
"बिटिया, ये क्या करने जा रही हो?"
अर्निका ने शरारती मुस्कान के साथ कहा,
"अब कोई और रास्ता नहीं बचा ताई, इसे उठाने का यही तरीका है।"
सरिता ताई हँसते हुए बोलीं,
"पर ठंड लग गई तो?"
अर्निका ने मज़ाक में जवाब दिया,
"कुछ नहीं होगा उसे ताई!"
यह कहकर वो सीधा ईनाया के कमरे में गई, जहाँ ईनाया अब भी कंबल में दुबकी सो रही थी। अर्निका ने पहले तो एक बार ज़ोर से आवाज लगाई —
"ईनाया! उठ जा! कॉलेज के लिए देर हो जाएगी!"
लेकिन जब कोई जवाब नहीं आया, तो अर्निका ने बिना देर किए कंबल हटाया और ठंडा पानी सीधे ईनाया पर उड़ेल दिया।
पानी पड़ते ही ईनाया चौंककर उठ बैठी,
"आअह्ह्ह! कुकी!!! तू पागल हो गई है क्या?"
उसका चेहरा हैरानी से भरा हुआ था और बाल पूरे बिखरे हुए।
अर्निका हँसते हुए बोली,
"गुड मॉर्निंग, स्लीपिंग ब्यूटी! अब तो उठ जा, नहीं तो अगली बार पूरा बकेट भर के लाऊंगी।"
ईनाया ने झुंझलाकर तकिया उठाया और उसकी तरफ फेंकते हुए बोली,
"तुझे तो अलार्म घड़ी बना देना चाहिए… वो भी खतरनाक वाला!"
दोनों की इस नोकझोंक पर पूरा घर हँसी से भर गया।
सरिता ताई रसोई से मुस्कराते हुए बोलीं,
"इन दोनों की सुबह कभी सीधी-सादी नहीं होती!"
थोड़ी देर बाद ईनाया अनमने मन से फ्रेश होने चली गई और अर्निका भी अपने रूम में रेडी होने चली गई।
कुछ समय बाद, दोनों ने नाश्ता किया और यूनिवर्सिटी के लिए निकल गईं।
जब अर्निका कॉलेज कैंपस पहुँची, तो जैसे हर नज़र उसी की ओर घूम गई।
उसने अपनी बाइक पार्क की और आत्मविश्वास से भरी चाल में क्लासरूम की ओर बढ़ने लगी। उसके चेहरे पर कोई बनावट नहीं, बस एक सादगी भरी मुस्कान थी।
ईनाया उसके साथ चल रही थी, लेकिन आज थोड़ी पीछे थी, क्योंकि अर्निका की मौजूदगी ही जैसे लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी।
कुछ लड़कियाँ आपस में फुसफुसा रही थीं—
"यही है ना जिसने साइरा को उसकी जगह दिखा दी थी?"
"हाँ, और रातुल को भी! अकेले पूरी गैंग को हैंडल कर लिया था!"
"बिल्कुल दमदार है ये लड़की!"
वहीं कुछ लड़के भी उसकी बहादुरी की तारीफ कर रहे थे—
"अब तो कॉलेज का पूरा माहौल बदल गया है। कोई भी अब न्यू स्टूडेंट्स को परेशान नहीं करता।"
"और इसका पूरा क्रेडिट अर्निका को जाता है। सच में, सलाम है इसे!"
ईनाया ये सब सुनकर मुस्कुरा रही थी। उसने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा,
"देखा कुकी, अब तू यूनिवर्सिटी की हीरोइन बन गई है।"
अर्निका ने हल्का सा सिर झटकते हुए कहा,
"हीरोइन नहीं यार, बस एक लड़की जो सही के लिए खड़ी हुई।"
दोनों हँसते हुए आगे बढ़ रही थीं कि सामने से युगांश अपने दोस्तों के साथ आता दिखा। उसकी नज़र जैसे ही अर्निका पर पड़ी, वो कुछ पल के लिए वहीं ठहर सा गया।
जब अर्निका उसके पास से गुज़री, तो युगांश ने जेब से हाथ निकालते हुए आवाज दी,
"गुड मॉर्निंग, अर्निका।"
अर्निका कुछ कदम आगे जाकर रुक गई। फिर वो धीरे से मुड़ी और उसकी तरफ देखा।
उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, पर आंखों में वही तेज़ आत्मविश्वास साफ झलक रहा था।
अर्निका ने शांति से पूछा,
"हाँ, बोलो। कोई काम था?"
युगांश थोड़ा झिझकते हुए बोला,
"उस दिन जो कुछ भी हुआ… उसके लिए सॉरी।"
अर्निका कुछ पल तक चुप रही। उसकी आंखों में हल्की हैरानी थी, लेकिन चेहरे पर कोई बदलाव नहीं आया।
"माफ़ी?" उसने शांत स्वर में पूछा।
युगांश थोड़ा झिझकते हुए बोला,
"हाँ… उस दिन पार्किंग में मैंने जिस तरह से बात की थी, वो गलत था। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।"
अर्निका ने कुछ सेकंड उसकी तरफ देखा, फिर हल्के से बोली,
"कोई बात नहीं… मैं तो वो बात भूल भी चुकी हूँ।"
वो आगे बढ़ने लगी थी कि युगांश ने अचानक कहा,
"रुको!"
अर्निका ने रुककर उसे सवाल भरी नजरों से देखा।
युगांश बोला,
"क्या हम पिछली सारी बातें भूलकर दोस्त बन सकते हैं? मैं तुम्हारा सीनियर जरूर हूं, लेकिन क्या हम दोस्ती कर सकते हैं?"
अर्निका उसकी बात सुनकर कुछ देर शांत रही। उसकी नजरें युगांश की आंखों में जैसे कुछ टटोल रही थीं — सच और दिखावे के बीच फर्क समझने की कोशिश करती हुई।
फिर वह हल्के से मुस्कुराई और बोली,
"सीनियर होना कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन दोस्ती के लिए इरादे भी साफ होने चाहिए।"
युगांश ने तुरंत कहा,
"मैं बिल्कुल सीरियस हूं, अर्निका। उस दिन के बाद मुझे समझ आया कि तुम कितनी मजबूत हो। और शायद पहली बार किसी लड़की ने मुझे इतनी साफ़ और सही तरीके से जवाब दिया।"
अर्निका ने सिर हिलाया और कहा,
"ठीक है… दोस्ती शुरू करते हैं। लेकिन याद रखना, मुझे बनावटी लोग बिल्कुल पसंद नहीं हैं।"
युगांश ने मुस्कुराकर हाथ बढ़ाया और बोला,
"डील!"
अर्निका ने कुछ पल बाद युगांश का हाथ थामा और मुस्कुराकर बोली,
"डील!"
युगांश ने मुस्कराते हुए कहा,
"तो फिर लंच में साथ चलें?"
अर्निका ने हल्का सोचते हुए कहा,
"ठीक है,"
और फिर उसे बाय कहकर क्लास की तरफ बढ़ गई।
वहीं थोड़ी दूरी पर सायरा और उसके दोस्त ये सब देख रहे थे। रिया ने सायरा की तरफ देखते हुए कहा,
"लगता है ये लड़की अपनी अदाओं से युगांश को फंसा रही है, और शायद युगांश भी उसकी खूबसूरती पर फिदा हो गया है। सायरा दी, आपको जल्दी कुछ करना होगा नहीं तो ये लड़की आपको पीछे छोड़ देगी।"
सायरा ने गुस्से से उसकी तरफ देखा और कहा,
"तुम अपनी क्लास में जाओ।"
रिया चुपचाप वहां से निकल गई, और सायरा तेज़ कदमों से वहां से चली गई।
इसी बीच, राठौड़ एम्पायर की एंट्रेंस पर एक काली चमचमाती Rolls Royce आकर रुकी। गाड़ी की रॉयल लुक देखकर सिक्योरिटी गार्ड्स एक पल के लिए चौकन्ने हो गए और तुरंत गेट की ओर दौड़ पड़े।
Rolls Royce के पीछे एक के बाद एक लग्जरी गाड़ियों की लाइन लग गई — Range Rover, BMW, Mercedes — मानो कोई बहुत बड़ा बिजनेस टायकून या रॉयल फैमिली का सदस्य आ रहा हो।
Rolls Royce का ड्राइवर फुर्ती से उतरकर पीछे की सीट का दरवाज़ा खोलता है…
जैसे ही दरवाज़ा खुला, सबसे पहले एक चमकता हुआ काला लेदर शू बाहर निकला। उसके साथ ही एक लंबा, मजबूत और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला शख्स—कोई और नहीं, बल्कि खुद प्रिंस क्रेयांश सिंह राठौड़—गाड़ी से उतरा। उसकी चाल में एक ठहराव और रॉयल ठसक थी, जैसे वक़्त भी उसके इशारे पर चलता हो।
उसने ब्लैक थ्री-पीस सूट पहना था, आंखों पर हल्के नीले शेड वाले गॉगल्स और कलाई पर महंगी घड़ी—जो उसके रुतबे और क्लास की साफ गवाही दे रही थी।
उसके पीछे बॉडीगार्ड्स और उसका असिस्टेंट कुशल उतरते ही उसके साथ ऑफिस की ओर बढ़ चले।
जैसे ही क्रेयांश बिल्डिंग में दाखिल हुआ, पूरा ऑफिस स्टाफ तुरंत सतर्क हो गया। रिसेप्शन से लेकर ऊपरी मंजिल तक हर किसी को पहले से उसकी वापसी की खबर मिल चुकी थी।
वो बिना किसी रुकावट के सीधे अपनी प्राइवेट लिफ्ट की ओर बढ़ा। उसके हर कदम की गूंज लॉबी में सुनाई दे रही थी। कुशल बगल में चलते हुए रिपोर्ट दे रहा था।
"सर, आपकी वापसी की खबर इन्वेस्टर्स तक पहुंच चुकी है, मार्केट में शेयर ऊपर जा रहे हैं। लेकिन लीगल और प्रोजेक्ट्स डिपार्टमेंट में कुछ गड़बड़ी है।"
क्रेयांश ने बिना उसकी तरफ देखे ठंडे लहजे में कहा,
"जिन्हें ज़िम्मेदारी सौंपी थी, अगर वही बोझ बन जाएं... तो हटाना ज़रूरी हो जाता है।"
लिफ्ट का दरवाज़ा खुला और वो अपने फ्लोर पर उतरा। पूरा फ्लोर पहले से अलर्ट था। लोग खड़े होकर उसे देख रहे थे—कोई नज़रें नहीं मिला पा रहा था, कोई हल्के झुककर 'गुड मॉर्निंग सर' कह रहा था।
बिना कुछ कहे वो अपने केबिन की ओर बढ़ा। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, सामने एक बड़ी-सी पेंटिंग दिखी—जिसमें राठौड़ फाउंडेशन की शुरुआत के समय के उनके दादा जी की तस्वीर लगी थी।
क्रेयांश ने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए कुशल से कहा,
"सबसे पहले लीगल हेड और प्रोजेक्ट हेड को तुरंत बुलाओ।
मुझे बात करनी है और समझना है कि मेरी गैरमौजूदगी में क्या चलता रहा। साथ ही, दोपहर में सभी डिपार्टमेंट हेड्स के साथ मीटिंग फिक्स करो। अब देखना है किसने क्या किया है।"
कुशल ने तुरंत हामी भरी और तेजी से बाहर निकल गया।
क्रेयांश की वापसी की खबर से पूरे ऑफिस में हलचल मच गई थी। हर डिपार्टमेंट में अफरा-तफरी फैल चुकी थी। कुछ लोग पुरानी फाइलें खंगालने लगे, तो कुछ रिपोर्ट्स अपडेट करने में जुट गए। सबके मन में एक ही डर था—"आज किसकी नौकरी खतरे में है?"
कुछ सीनियर आपस में फोन पर चर्चा करने लगे—
"तू क्या बोलेगा अगर पूछा?"
"प्रेजेंटेशन तैयार है ना?"
"हमारे डिपार्टमेंट में कोई कमी तो नहीं थी, है ना?"
कुशल एक-एक डिपार्टमेंट में जाकर मीटिंग की सूचना देकर अपनी केबिन में लौट गया।
उधर क्रेयांश चुपचाप अपने केबिन में बैठा रिपोर्ट्स पढ़ रहा था। उसकी नजरें हर लाइन, हर नंबर पर टिक रही थीं—जैसे वो हर छोटे-बड़े फर्क को महसूस कर रहा हो।
कुछ ही देर में कुशल लौट आया और बोला,
"सर, सभी को नोटिस भेज दिया गया है। मीटिंग दोपहर 2 बजे कॉन्फ्रेंस हॉल में है। लीगल हेड मिस दिव्या और प्रोजेक्ट हेड मिस्टर राघव बाहर हैं।"
क्रेयांश ने उसकी तरफ देखा और कहा,
"दोनों को अंदर भेजो। अब वक्त है कुछ जवाब लेने का।"
कुशल ने सिर हिलाया और बाहर जाकर दोनों को अंदर बुला लाया।
दिव्या और राघव अंदर आए, उनके चेहरे पर हल्की घबराहट थी।
उन्हें पता था—क्रेयांश सर के सामने कोई बहाना नहीं चलता।
क्रेयांश ने दोनों की ओर ठंडे स्वर में देखा और अपनी कुर्सी पर पीछे टिकते हुए कहा,
"तो मिस दिव्या, बताइए... मेरी गैरमौजूदगी में आपने कौन-कौन से कॉन्ट्रैक्ट्स अप्रूव किए?"
दिव्या ने हड़बड़ाकर एक फाइल खोली और कुछ बोलने की कोशिश की, लेकिन उसकी आवाज़ में साफ झिझक थी। राघव का चेहरा भी तनाव से सफेद पड़ गया था।
क्रेयांश ने उसे बीच में रोकते हुए कहा,
"मुझे पता चला है कि आपने एक प्रोजेक्ट बिना पूरी जांच-पड़ताल के पास कर दिया, और उससे कंपनी को नुकसान हुआ है... क्या ये सच है?"
दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा, जैसे फैसला नहीं कर पा रहे हों कि गलती किसकी थी।
कट टू — दूसरी तरफ...
अर्निका अपनी दो लेक्चर अटेंड करने के बाद लाइब्रेरी की ओर बढ़ रही थी। उसने व्हाइट शर्ट और ब्लू डेनिम पहन रखी थी, बाल खुले थे और हाथ में उसकी डायरी थी। जैसे ही उसने लाइब्रेरी की सीढ़ियाँ चढ़ीं, उसकी नजर कोने में बैठे युगांश पर पड़ी, जो किसी किताब में पूरी तरह खोया हुआ था।
अर्निका के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आई, मगर उसने तुरंत नजरें फेर लीं।
वो काउंटर पर पहुंची और बोली,
"मैम, मुझे एक बुक चाहिए।"
लाइब्रेरियन ने उसका टाइटल पूछा, फिर लिस्ट चेक करके कहा,
"हाँ बेटा, सेकंड शेल्फ में रखी है। आप वहां से ले लीजिए और फिर काउंटर में एंट्री करवा दीजिए।"
अर्निका ने किताब ली, एंट्री की और बाहर निकलने लगी।
उसी वक्त पीछे से युगांश भी बाहर आ रहा था। उसने अर्निका को जाते देखा और तुरंत आवाज़ दी—
"अर्निका, एक मिनट...!"
अर्निका उसकी आवाज़ सुनकर रुक गई और उसकी तरफ देखा। युगांश थोड़ा