Garbh Sanskaar - 6 in Hindi Women Focused by Renu books and stories PDF | गर्भ-संस्कार - भाग 6

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गर्भ-संस्कार - भाग 6

गर्भवती इन बातों का अनुकरण करे।

— साफ सुथरे घर में जहाँ सूर्य प्रकाश भरपूर आता हो, शुद्ध और ताजी हवा का संचरण होता हो, ऐसे ही घर में गर्भवती को रहना चाहिये।

— गर्भ में कौन सी विकृती आ सकती है? गर्भपात होने के कारण क्या होते है? सिजरीन क्यों करना पडता है? शिशु को बाहर कैसे निकाला जाता है ? दवाईयाँ कौन सी लेनी चाहिए? इस तरह का साहित्य पढना या इन बातों पर सोचना सख्ती से टाल दें। क्योंकि नकारात्मक विचार नकारात्मक प्रसंगो को आमंत्रित करते है। ऐसे भी इन सब बातों की फिक्र आपके डॉक्टर को होती है। डॉक्टर आपकी देखभाल करने के साथ आपको उचित उपचार एवं औषधियाँ भी प्रदान करता है। आप इसकी फीस भी उनको प्रदान करती हो। गर्भसंस्कार की कुछ पुस्तकों में इस तरह की जानकारियाँ अधिकांश दी जाती है। यह सब गर्भ संस्कार का हिस्सा नही है, जबकी इन बातों से गर्भवती के मन में बेवजह भय निर्माण हो जाता है।

— गर्भवती महिला को प्रातः सूर्योदय से पहले जाग कर उदय होते सूर्य के दर्शन करना चाहिये। सुर्य को अर्घ्य दे तो अधिक लाभ है।

— गर्भवती को प्रतिदिन प्राणायाम, ध्यान और ॐ कार नाद-गूँजन-उच्चारण करना चाहिये। प्रतिदिन प्रातः काल एवं संध्या काल में श्रद्धा के अनुसार विशेष प्रार्थनाएँ तथा पूजा अर्चना भी करें।

— प्रातः एवं संध्या समय भगवान के पास व तुलसी के पास स्वयं दीपक जलायें।

— गर्भवती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त व्यायाम चलना है। सहजता से जितना संभव हो, उतना ही चलना चाहिए। जहाँ तक हो सके प्रातः काल घुमने जाएँ। घर के बाहर निकलना संभव ना हो तो छत पर, आंगन में या खिड़की दरवाजा खोल कर अपने घर में भी चल सकते हैं।

— वातावरण सुरीला, सुमधुर और अच्छे संगीत से भरा होना चाहिये। विशेष संगीत तथा वीणावादन, मुरली की ध्वनि के साथ मंत्र पठन करें। संतुर, सितार, बाँसुरी इ. संगीत गर्भवती महिला प्रतिदिन श्रवण कर सकती है।

—दिन भर मन से केवल मंगल भावना ही उठती रहे। जिसका अद्भुत सकारात्मक परिणाम शिशु पर होता है। दुसरो के प्रति ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध करने का अर्थ है कि शिशु को इन भावों की शिक्षा देना। इसके विपरीत सभी के प्रति प्रेम, अपनत्व आदि मंगल भाव मन में रखने से शिशु यही गुण धारण करता है।

—अगर आप को चित्रकला की थोडी भी रुची हो तो रोजाना एक चित्र बनायें संगीत जानते हो तो रोजाना रियाज करें।

— श्रीमद्भगवतगीता के अर्थ के साथ 18 अध्याय 9 माह में कम से कम 1 बार पढे या सुनें। ऐसी किताब, कॅसेट या सी. डी. उपलब्ध है। संभव हो तो सत्संग में (रामकथा, भागवत, भजन-कीर्तन आदि) अवश्य जायें। पास में कोई मंदिर मठ या आश्रम हो तो वहाँ रोजाना जायें, रोजाना संभव न हो तो सप्ताह या माह में एक बार अवश्य जायें।

—मन से सिजरिन का डर निकाल दें। आपकी संकल्पशक्ति सिजरिन की संभावना दुर करने में सक्षम है। डॉक्टर ने बेडरेस्ट कहा है तो भी प्रतिदिन गर्भ के विकास में सुधार होता रहता है। रोजाना के प्राणायाम, सामान्य व्यायाम व उचित आहारविहार-विचार से सामान्य प्रसूती की संभावना रहती है। प्रथम डिलेवरी सिजरिन होने के बाद भी दुसरी डिलीवरी सामान्य हो सकती है।

—घर में तनाव या किसी से मनमुटाव हो सकता है, लेकिन इन दिनों में उन बातों को मन से दूर रखें। उसके लिए जरुरी है कि प्रथम स्वयं के मन में ही सबके प्रति अच्छी व शुभ भावना रखें, चाहे सामने वाला कितना भी विपरीत क्यूँ न हो। इससे आपका शिशु अद्भुत सहनशील, सबको प्रेम से जीतने वाला एवं विपरीत परिस्थितियों में सफलता पाने वाला होगा।

— उल्हासित और उत्साही बनाने वाली कथायें, चरित्र पढने या सुनने चाहिये। अच्छे चित्रों को देखना चाहिये और मन को प्रसन्न करने वाला संगीत सुनना चाहिये।

— रोने (आनंद में या किसी अपनेपन में लिप्त व्यक्ति या प्रसंग को याद कर आँसु निकलना) या हँसने को मन करे तो उसे दबाये नही। इससे मन हलका होता है। तनाव कम होता है।

— किसी तरह का नैराश्य भाव मन में ना रखें। बीता हुआ कल एवं आने वाले कल में जीने के बजाय वर्तमान में मातृत्व के आनंद के संग जीयें। जो बीत गया वह लौटकर नही आता। भविष्य में जो होना है, वह सब शुभ एवं मंगल होगा क्योंकि आपका शिशु स्वयं परमात्मा के अंश रूप में ही आपके गर्भ में विराजमान होता है, पर यहाँ आपका विश्वास जितना अधिक होगा, उतना अधिक प्रतिफल मिलता है। आपका इन दिनों का सकारात्मक दृष्टिकोण एवं ईश्वरीय श्रध्दा शिशु के आगमन से आपके दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने में सक्षम होता है।

— गर्भवती स्त्री को राजस-तामस भावों से बचकर सात्त्विक भावनाएँ रखनी चाहिये। गंदे सिनेमा, टेलीविजन, पोस्टर न देखकर सात्त्विक देव दर्शन, संत दर्शन आदि ही करना चाहिये। नकारात्मक, अश्लील गीत सुनना-गाना छोडकर सात्त्विक भजन-कीर्तन ही सुनना सुनाना चाहिये। राजस-तामस, मांस-मदिरा-अंडा-प्याज-लहसुन, अति तीक्ष्ण मिर्च-मसाला छोडकर सात्त्विक दुध-घी, दाल-रोटी, हरी सब्जी आदि ही खाना-पीना चाहिये। गर्भकालीन भावना व खानपान का संतान पर प्रभाव पडता है। 

— उपरोक्त बातों को बार बार पढ़ें। जिससे यह संदेश आप वास्तव में आत्मसात कर सकें एवं संकल्प सिध्द हो सके।


गर्भवती के लिए वर्जित बातें

— गर्भवती स्त्री कभी भी मलमुत्र प्रवृत्ती या गॅसेस को रोक कर ना रखें। मलमूत्र का अवरोध ना करें। जिससे वातदोष का असंतुलन या युरीन इन्फेक्शन से बचा जा सकता है।

— गर्भवती स्त्री कडी व टेढी मेढी जगह पर या जो जगह आरामदेय ना हो ऐसी जगह पर ना बैठे। टेढे मेढे आसन में ना बैठे। बैठते समय रीढ की हड्डी यथा संभव सीधी रखें, सीधा बैठे। जिससे गर्भ अच्छी स्थिती में रहने को सहायता प्राप्त होगी।

— हमेशा पीठ पर ना सोते हुए संभवतः करवट पर लेटें।

— गर्भवती को गहरे कुएँ में झाँकना नहीं चाहिये और न ही ऊंचाई से गिरते हुए जलस्त्रोत को देखना चाहिए। नकारात्मक भाव वाले दृश्य जो मन में शंकायुक्त भाव पैदा करे, उनसे दूर रहना चाहिये। जिस कारण गर्भवती स्त्री को कोई डर या धक्का ना लगे एवं डर की संभावना से गर्भ को नुकसान न हो।

— बहुत जोरों की या अप्रिय, अजीब आवाजें / ध्वनी ना सुनें। कर्कश ध्वनी या कर्कश संगीत से दूर रहें। पटाखों की तेज आवाजों से बचने के लिए कान में रुई डाल लें।

— गर्भवती महिला को अतिश्रम, अति व्यायाम तथा भारी वजन उठाना नही चाहिये। अधिक शारीरिक कष्ट, अनुचित व अति व्यायाम ना करें। जिम, अरेबिक्स्, तैरना, अधिक वजन उठाना टाल दें।

— शरीर को झटके लगे, या थका दे, ऐसे वाहन में सफर ना करें। पहले तीन माह दूर का सफर ना करें। बाद में भी जरुरी हो तो आराम का सफर ही चुने।

— गर्भवती स्त्री के पेट पर किसी तरह का आघात ना हो। चोट या मोच ना लगे, इस बात का ध्यान रखें।

— गर्भवती को वस्त्र बहुत कसे हुए या तंग नहीं पहनने चाहिये, ढीले-ढाले और आरामदायी वस्त्र परिधान पहनने चाहिये। ज्यादा तने हुये कपडे, पेट पर कसकर बांधे जाने वाले कपडे ना पहनें। जिससे रक्तप्रवाह में कोई बाधा ना हो।

— उँची एड़ी की चप्पल पहनने से बॅलेंस जाने की संभावना तो होती है, साथ साथ पीठ दर्द की तकलीफ भी हो सकती है। अतः वजन में हल्की तथा अच्छी कंपनी की चप्पल पहनें।

— धुम्रपान एवं शराब पीने वालों से दुर रहें, ताकि शिशु के विकास में कोई कमी ना रहे। उत्तेजित होना, क्रोधित होना, ठहाके लगाकर जोर जोर से हँसना तथा धुम्रपान करना, शराब पीना, मांसाहार लेना, गर्भवती के लिये वर्जित है।

— गर्भवती स्त्री जरुरत से ज्यादा ना सोये। 6 घंटे रोज की नींद भी काफी है। दिन में ना सोना बेहतर है, जरुरी हो तो 1 घंटे से ज्यादा ना सोये। कुल मिलाकर 8-9 घंटे से ज्यादा सोना शिशु में आलस्य का भाव स्थापित करता है। रेस्ट / आराम का अर्थ यह नही कि दिनभर सोये रहो। कला, संगीत व किताबों के साथ भी आराम किया जा सकता है, जिससे शिशु को भी दुगुना लाभ होगा।

— जागरण के साथ बेवजह घुमना, अनजान जगह पर जाना, कोलाहल की जगह पर रुकना गर्भवती स्त्री के लिए मना है। गर्भवती महिला को किसी अपरिचित स्थल की यात्रा नहीं करना चाहिये, न ही उसे किसी तरह की घुटन होनी चाहिये।

— गर्भवती को सर्प तथा कोई भयानक दृश्य, डरावने चित्र आदि देखना नहीं चाहिये। टी.वी. सीरियल तथा फिल्में जो मन पर नकारात्मक प्रभाव डाले वह देखने के बजाय काव्य, कथाएँ पढनी चाहिये। गीत, भजन, स्तोत्र आदि सुनना चाहिये।

— जिस घर में गर्भवती रहती है उस घर में जीव-जन्तु-कीटक, मकड़ी के जालें, फंगस इत्यादि नहीं होना चाहिये।

— गर्भवती महिला अस्त होते हुए सूर्य को तथा कृष्णपक्ष के घटते हुए चंद्रमा को न देखें। ऐसी पुरानी मान्यता है।

— इसी तरह वह बातें, जो अक्सर गर्भवती को अच्छी नहीं लगती टालनी चाहिये। यह राय घरवालो के लिए विशेष रुप से है। गर्भवती महिला को हमेशा उल्हासित और प्रेमपूर्ण वातावरण में रहना चाहिये।

— जहाँ तक हो सके अकारण औषधियों का सेवन ना करें। उदाहरण के तौर पर कई लोगो को आदत होती है कि थोडा सा सिरदर्द हुआ नही कि सिरदर्द की गोली ले लेते है। संतुलित आहार के साथ नैसर्गिक औषधियाँ तथा स्वास्थ्यवर्धक औषधियाँ लेनी चाहिये।

— घर में मांसाहार (मांस, मटन, मच्छी, अंडे आदि) तामसिक पदार्थ ना बनायें, ना लायें। पति अगर ऐसे पदार्थ ना खाये तो बहुत अच्छा है। ऐसे पदार्थ, धुम्रपान, मद्यपान कर के गर्भवती माता के पास ना जाये। ऐसा करने से माता के माध्यम से सुक्ष्म लहरों और तरंगो द्वारा गर्भस्थ शिशु पर कुछ न कुछ दुष्परीणाम होने की संभावना होती है।

— पहले तीन महिने और आखिरी तीन महिने माँ और गर्भस्थ शिशु के लिए ज्यादा महत्वपुर्ण होते हैं। अतः वैद्यकीय दृष्टीकोन से इन दिनों पति के साथ समागम निषिध्द है। प्राचीन शास्त्र, संस्कृती व आध्यात्मिक दृष्टीकोन से तथा शिशु के मानसिक दृष्टीकोन से 9 माह पति के साथ समागम तथा सेक्स्युअल भावनाओ में उत्तेजित होना निषिध्द है ।

— वासनात्मक, हिंसात्मक, भयावह (हॉरर) व कुटिल भाव जागृत करने वाले कार्यक्रम, टी.वी. सीरियल, सिनेमा, किताबें, इनसे गर्भवती स्त्री को संभवतः दूर रहना चाहिये, ना ही ऐसे किसी माहौल में प्रत्यक्ष जाना चाहिये। आजकल की पीढियों में काफी कम उम्र से ही बच्चों में सेक्स व हिंसा के प्रति झुकाव नजर आता है। इस परिणाम के पीछे जाने अनजाने में उपरोक्त बातें ही जिम्मेदार साबित होती है। अतः अपनी भावी संतानो को इस मार्ग से दूर रखना हो तो उपरोक्त बातों को दृढता के साथ गर्भस्थ अवस्था में स्वीकारें।

— गर्भवती स्त्री के आसपास साफ सफाई रहना आवश्यक है। बदबू वाली जगह पर वो रुके ही नही।

— जिनका मासिक धर्म जारी है, ऐसी लडकियों एवं स्त्रियों से उन दिनो में यथा संभव दुरी बनाये रखें। वर्किंग लेडीज घर में स्प्रे में गंगाजल भर कर रखें। घर लौटते ही खुद पर स्प्रे करवा ले या कर ले।

— भावनाओं का पुरा परिणाम शिशु पर होने से गर्भवती स्त्री क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष भाव, कुटिलता, गाली गलौच, चिल्लाना, जोर से बोलना आदि मानसिकता को नौ माह तक समाप्त कर दे।

— बड, इमली के वृक्ष के पास ना जाये। संधी काल में अनजान जगह पर ना जाये। जिस वृक्ष पर मधुमख्खी का छत्ता हो उस वृक्ष के नीचे या उसके पास ना बैठें।

— अति तीक्ष्ण, उष्ण, तीखा, मसालेदार आहार लेना, कम पोषक तत्व वाला आहार लेना, भूख से कम खाना या भूख से ज्यादा खाना टाल दें, जिस कारण गर्भ का पोषण अच्छी तरह हो सके।

— वर्जित अन्न पदार्थ : सूखा, डीप फ्रोजन, बासी, उफाना हुआ व तला हुआ अन्न, अंडे या अंडो का उपयोग की गई चीजें, मांसाहार, बहुत उष्ण गुणधर्म का एवं पाचन के लिये भारी अन्न तथा मादक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिये । दूध में मिलाकर फल, नमकीन के साथ दूध, या उबलते पानी के साथ शहद नहीं लेना चाहिये।

—पसीना बहुत आता हो या उच्च रक्तचाप की शिकायत हो तो शीतली व शीत्कारी प्राणायाम इसमें फायदा करेंगे, परंतु यदि सांस या साइनस की समस्या हो तो इन्हे न करें। भ्रमर प्रणव प्राणायाम, शीतली, शीत्कारी से भी रक्तचाप सामान्य ना हो तो चंद्रभेदी प्राणायाम करें।

— गर्भवती माताएं आहार का विशेष ध्यान रखते हुए भोजन में 4 से 5 घंटे से अधिक का अंतर न रखें। आहार में आयरन वाले खाद्यों को प्राथमिकता दें। सेब में आयरन की मात्रा भरपूर होती है। सागसब्जीयाँ, फल व अंकुरित अन्न का प्रयोग करें। बैंगन की सब्जी, कोल्ड ड्रिंक्स्, फास्ट फूड, तली चीजें, बहुत गर्म व बहुत ठंडी चीजों से बचें।

— गाय का दूध नियमित रुप से लें। रात को 4-5 बादाम भिगोकर रखें। सुबह इन्हे पीसकर गुनगुने दूध के साथ मिला लें। इस दूध में 2-4 पंखुडि केशर की भी डालें। इस दूध के सेवन से शिशु गौर वर्ण का होगा।

— सुबह नाश्ते में अंकुरित अन्न, फल व दूध लें। शाम को 4 बजे फल का रस (जुस) पीयें। दोपहर व रात के खाने में दाल, सब्जी, रोटी, चावल, सलाद आदि होने चाहिए। दिन में दही व छाछ भी लें।

— किसी कारणवश बिस्तर पर लेटे रहने की सलाह दी गयी हो तो लेटे लेटे प्राणायाम व कुछ सामान्य व्यायाम किये जा सकते है। सामान्य व्यायामों से प्रसव सामान्य होने में सहायता मिलती है।

— गर्भावस्था में संयम में रहें। वासनात्मक वातावरण न रखें। नौ महीने का समय एक अनुष्ठान की तरह समझें। सकारात्मक विचार, प्रसन्नता व शुध्द वातावरण रहेगा तो होने वाली संतान बुध्दिमान, चरित्रवान व स्वस्थ होगी।

— आहार में मीठी चीजें शामिल करें। दूध, पालक की सब्जी व गेहूँ के ज्वारे का रस लेने से आयरन व कैल्शियम की उचित मात्रा शरीर को मिलेगी तथा हीमोग्लोबिन भी बढेगा।

— अंकुरित अन्न में मुँग के साथ साथ थोडी मूँगफली, किशमिश व बादाम भी लें।

—गर्भावस्था के दौरान या बाद में चेहरे पर जो दाग बन जाते हैं, उनके लिए हल्दी, चन्दन व तुलसी घिस कर चेहरे पर लगायें। घृतकुमारी का गूदा (एलोवेरा की गिरी) भी प्रयोग करें।

— जो माताऐं गर्भावस्था में धूम्रपान करती है, उनके बच्चों को हृदयरोग, मधुमेह व स्नायु संबधी समस्याओं से जुझना पड सकता है। पती को भी पास खडे रहकर धुम्रपान नही करना चाहिए।

— अन्न ग्रहण करते समय, टिवी-सीनेमा, न्युज चॅनल न देखे। जैसा भाव-वैसा अन्न एवं जैसा अन्न वैसा शरीर इस उक्ती को याद रखें।