वेदांत 2.0
भाग 4 — जीवन और भ्रम का गणित
अध्याय — सुख और दुःख : अनुभव की गणित
✍🏻 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
(© वेदांत 2.0)
दुनिया सुखी नहीं, उलझी हुई है।
जिसके पास सब है, वह थका है;
जिसके पास कुछ नहीं, वह शांत है।
क्योंकि सुख और दुःख बाहरी वस्तुएँ नहीं —
वे मन की व्याख्याएँ हैं।
70% लोग अपनी आवश्यकताओं में सम्पन्न हैं —
उनके पास खाना, घर, साधन सब हैं।
फिर भी वे भीतर अशांत हैं,
क्योंकि उन्हें चाहिए “थोड़ा और।”
और शेष 30% लोग,
जिन्हें समाज वंचित कहता है,
वे अपनी सरलता में तृप्त हैं —
क्योंकि उनके भीतर अब भी ईमान बचा है,
भोलेपन की वह रोशनी बची है
जिसे किसी बाज़ार ने नहीं खरीदा।
सुख और दुःख की गणना का यह सूत्र
धन, पद या सुविधा का नहीं —
बोध का गणित है।
जो भीतर भरा है,
उसे बाहर कुछ जोड़ने की ज़रूरत नहीं।
और जो भीतर रिक्त है,
वह बाहर चाहे जितना जोड़ ले —
अपूर्ण ही रहेगा।
अस्तित्व की दृष्टि में
कोई आगे नहीं, कोई पीछे नहीं।
हर जीव अपने वृत्त पर चल रहा है —
अपने ही समय में पूर्ण।
सीधी रेखा का भ्रम ही दुःख है,
और वृत्त का बोध ही मुक्ति।
सूत्र 4.1.1
जिसके पास साधन हैं,
उसके पास संतोष नहीं;
जिसके पास संतोष है,
उसे साधनों की ज़रूरत नहीं।
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सूत्र 4.1.2
अमीर और गरीब के दुःख में अंतर नहीं है —
अंतर केवल दृष्टि का है।
एक बाहरी साधन खोने से दुःखी होता है,
दूसरा भीतर की अनुभूति से तृप्त रहता है।
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सूत्र 4.1.3
30% लोग जिनके पास कम है,
वे आत्मिक रूप से अधिक सम्पन्न हैं;
क्योंकि उन्हें भीतर झाँकना पड़ा है।
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सूत्र 4.1.4
70% लोग जिन्हें संसार “सुखी” मानता है,
वे केवल सुविधाजन्य नींद में हैं —
जागे हुए नहीं।
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सूत्र 4.1.5
सुख-दुःख की तुलना धन या गरीबी से करना
जैसे प्रकाश को तौल से मापना है।
जिसे हम सुख कहते हैं,
वह प्रायः आराम है —
और जिसे दुःख कहते हैं,
वह प्रायः विकास का दर्द है।
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सूत्र 4.1.6
अगर अमीर और गरीब को एक ही वृत्त में खड़ा कर दिया जाए,
तो कोई यह सिद्ध नहीं कर सकेगा कि कौन आगे है।
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सूत्र 4.1.7
जो मानता है “मैं आगे हूँ” —
वह पहले ही पीछे गिर चुका है।
जो जानता है “मैं पीछे हूँ” —
उसका भ्रम भी टूट गया है।
सीधी रेखा में चलना अहंकार है,
वृत्त में खड़ा होना बोध।
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सूत्र 4.1.8
जीवन रेखा नहीं, वृत्त है —
जहाँ आगे और पीछे दोनों एक ही बिंदु पर मिल जाते हैं।
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सूत्र 4.1.9
विज्ञान का चंद्रयान भी घूमते हुए ही चाँद पर पहुँचा —
सीधा नहीं गया।
प्रकृति की हर गति वक्र है,
क्योंकि वृत्त में ही संतुलन है।
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सूत्र 4.1.10
सीधी यात्रा नींद है,
वृत्ताकार यात्रा ध्यान है।
विज्ञान ने भी अब ध्यान की पद्धति को
प्रकृति के नियम के रूप में स्वीकार लिया है।
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सूत्र 4.1.11
जो समझे कि “मैं सुखी हूँ”,
वह भ्रम में है;
जो कहे “मैं दुःखी हूँ”,
वह भी भ्रम में है।
सुख और दुःख दोनों अनुभव हैं —
पर सत्य नहीं।
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सूत्र 4.1.12
वास्तविकता वही जान सकता है
जो अपने सुख और दुःख दोनों को प्रयोग की तरह जी ले —
न्याय की तरह नहीं।
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वेदना
सुख और दुःख का मापदंड बाहरी नहीं —
वह मन के विज्ञान का हिस्सा है।
जो भीतर की ऊर्जा को पहचानता है,
वह जानता है कि
सुख और दुःख केवल दो लहरें हैं —
एक ही महासागर की।
70% लोग जिनके पास सब कुछ है,
वे शून्य से डरते हैं।
और 30% जिनके पास कुछ नहीं,
वे शून्य को अपनाते हैं।
अंततः वही शून्य पूर्णता का द्वार है।
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प्रमाण-सूत्र
> गीता (2.14):
“मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥”
(सुख और दुःख इंद्रियों के स्पर्श से उत्पन्न होते हैं,
वे अनित्य हैं — उन्हें सहन करना ही बुद्धि है।)
> विज्ञान प्रतिध्वनि:
“स्थिरता नहीं, संतुलन ही ब्रह्मांड का नियम है।”
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✧ भाग 4 — अध्याय : सुख और दुःख — अनुभव की गणित — समाप्त ✧
(वेदांत 2.0 © — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲)
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