मानसिक स्वतंत्रता और भौतिक सुख ✧
मनुष्य का जीवन बड़ा अजीब है।
बाहर से देखो तो सब कुछ चमकता हुआ—
बंगले, गाड़ियाँ, बैंक बैलेंस, पद और प्रतिष्ठा।
लेकिन भीतर झाँको,
तो एक अंधेरा, एक बेचैनी,
एक गहरी घुटन बैठी है।
यह घुटन किसी और ने नहीं दी।
इसे हमने खुद चुना है।
यह हमारी अपनी मानसिक गुलामी की उपज है।
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दुनिया जिसे सुख कहती है,
वह असल में सुख नहीं—
सुख का भ्रम है।
एक सपना है,
जो समाज ने हमें बचपन से दिखाया।
“पढ़ो, नंबर लाओ।
नौकरी करो।
धन कमाओ, नाम कमाओ—
और तुम सुखी हो जाओगे।”
लेकिन देखो तो—
क्या सचमुच ऐसा होता है?
क्या हर अमीर, भीतर से भी सम्पन्न है?
नहीं।
बाहर से अमीर, भीतर से भिखारी।
यही मनुष्य की सबसे बड़ी त्रासदी है।
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मैं कहता हूँ,
असली सुख भीतर है।
वह तुम्हारी स्वतंत्रता में है।
जब तुम्हारा मन
किसी भी बंधन, किसी भी विचार,
किसी भी सामाजिक अपेक्षा से मुक्त हो जाता है—
तभी असली आनंद जन्म लेता है।
वह आनंद न सत्ता से मिलता है,
न साधनों से,
न सम्मान से।
वह तो तुम्हारे मौन में छिपा है,
तुम्हारी जागरूकता में छिपा है।
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मनुष्य की ग़लती यही है कि
वह बाहर खोज रहा है,
जो भीतर है।
वह दिखावे के लिए जी रहा है—
भीतर की शांति खो बैठा है।
हर चाह पूरी होती है,
तो दूसरी जन्म ले लेती है।
यह अंतहीन दौड़ है।
यह दौड़ सोने की जेल है—
बाहर से चमकदार,
भीतर से कैदख़ाना।
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ओशो कहते हैं:
“जीवन का आनंद तब आता है,
जब मनुष्य भीतर से आज़ाद हो।
जब वह खुद को दूसरों की नज़र से नहीं,
अपने भीतर की आँखों से देखे।”
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धन, साधन, सत्ता—
ये साधन हैं, उद्देश्य नहीं।
इनका उपयोग करो,
इनके दास मत बनो।
जीवन का असली उद्देश्य है—
अपने भीतर के मौन की खोज।
अपनी अंतरात्मा की यात्रा।
और यह यात्रा तब शुरू होती है,
जब तुम अपनी मानसिक बेड़ियाँ तोड़ देते हो।
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स्वतंत्रता बाहर से नहीं आती।
वह भीतर से फूटती है।
जब तुम अपने मन के मालिक बन जाते हो,
तो जीवन में एक नई सुवास आती है।
एक नई रोशनी खिलती है।
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इसलिए, मेरे प्रिय,
अगर सचमुच सुखी होना है,
तो भीतर की यात्रा शुरू करो।
भीड़ की दौड़ छोड़ो।
अपनी मानसिक स्वतंत्रता को पहचानो।
यही असली सुख है।
यही असली संपत्ति है।
🙏🌸 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲