कृष्ण को मानना बहुत सरल है,
कृष्ण की मानना बहुत कठिन।
कृष्ण संदेश है ज्ञान का,
कृष्ण विज्ञान है साक्षी का।
कृष्ण मनुष्य की मृगतृष्णा का भेदन है,
कृष्ण उत्साह है जीवन का।
कृष्ण नृत्य है ब्रह्मांडीय, काल के परे।
कृष्ण प्रेम नहीं, प्रेम कृष्ण है।
कृष्ण मित्र है, परम मित्र।
कृष्ण जगद्गुरु है, सारा संसार उनमें है।
कृष्ण रणछोड़ दास हैं, अहंकार से शून्य।
कृष्ण शपथ तोड़ने वाले हैं, बंधनमुक्त।
कृष्ण विष्णु का आठवाँ अवतार हैं, मानवी चेतना का।
पूर्ण अवतार, परिपूर्ण मानव।
कृष्ण विष्णु का अर्थात रहस्यमयी जीवन-ऊर्जा का परिपूर्ण रूप हैं।
मत्स्य से विष्णु का जन्म हुआ।
मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम और कृष्ण तक की यात्रा है।
कृष्ण छलांग हैं मानव के
स्वयं के साक्षात्कार के।
अब चेतना को अपने घर जाना है,
यही संदेश है।
कृष्ण का संदेश साक्षी का संदेश है।
हे पार्थ! अपनी चेतना को जानो।
ना तुम्हें कोई मार सकता है,
ना तुम मर सकते हो।
अपने असली स्वरूप को जानो, पार्थ।
पर पार्थ अभी आपको देवकीनंदन कहकर
नए प्रश्न उपस्थित करेगा।
क्योंकि अभी के पार्थ को आपका वह स्वरूप भी
ठीक से समझाया नहीं गया है।
बहुत कम लोगों ने आपकी बात प्रामाणिकता से कही।
लेकिन जिन्होंने आपको सिर्फ़ देवता और ईश्वर बना दिया,
जो आपको हर समय हर कष्ट से बचाने वाला बताया,
हमने उन्हीं को बड़ा किया,
उन्हीं को पूजा गया।
आपके बताए हुए सारा ज्ञान, विज्ञान, विधियाँ ,
हम भूल गए।
कृष्ण जैसे महागुरु को,
पूर्णावतार को भी हम समझ न पाए।
इसीलिए मैंने कहा कि,
एक है कृष्ण को मानना,
सुंदर है, रूप ही ऐसा है कि मनुष्य झूम उठे।
एक है उन्होंने जो कहा, वह जानना।
पर हे देवकीनंदन,
सभी आपकी राह देख रहे हैं कि आप आओगे
और दुष्टों का संहार करोगे।
पर शायद हमें यह नहीं बताया गया कि आप आ भी गए तो
युद्ध तो हमें ही लड़ना होगा।
और युद्ध होगा भी।
शायद आपका संदेश गलत लिया गया।
मनुष्य ने उसे भी सीमित रखा।
और हमें भी पीढ़ी दर पीढ़ी यही बताया
कि विष्णु का अवतार होगा
और वह दुष्टों का सर्वनाश करेगा।
पर यह नहीं बताया कि वहाँ एक नहीं,
बहुत सारे अर्जुन होंगे,
तो वे सवालों की लड़ी लगा देंगे।
“तुम ही ब्रह्म हो अर्जुन, तुम अजन्मा हो।”
उनका यह संदेश बताया नहीं गया।
उन्होंने यह भी कहा,
“पार्थ! मेरे भी बहुत जन्म हुए हैं।”
फर्क इतना है कि मैं अभी उन्हें देख सकता हूँ,
और तुम नहीं।
जागो पार्थ!
मैं तुम्हें यहाँ सभीका मार्ग बताने आया हूँ।
पर कृष्ण को पूजना आसान होगा,
और हमेशा आसान रहा है मन के कारण।
मन का विस्तार होगा।
उपवास रख दिया,
दो-चार फूल चढ़ा आए - बात खत्म।
पर खुद का शीर, अहंकार कौन चढ़ाएगा?
कौन उन्होंने बताए हुए अनेक मार्गों में से
एक मार्ग चुनेगा?
कृष्ण हमें कृष्ण बनाने आए थे,
उस से कम नहीं।
इसीलिए तो उनको जगद्गुरु कहा गया।
गुरु - जो शिष्य को गुरु बना दे,
उससे कम नहीं।
और एक ही दुष्ट है जगत में - मनुष्य का मन।
उसका नाम दुर्योधन है।
वह सभी इंद्रियों को अपने साथ ले लेगा।
अभी तो अपना सारथी कृष्ण को बनाओ।
पर याद रखना, तुम्हें ही युद्ध लड़ना होगा।
मानो मत -जानो।
युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।
युद्ध मन से ही है।
क्योंकि बाहर कोई दुष्ट है ही नहीं।
कृष्ण का संदेश तत्वमसि है।
वहाँ दूसरा कहाँ?
अब चलो।
कृष्ण सिर्फ़ सारथी होंगे ,
सार कहने वाले,
दिशा दिखाने वाले।
_अवधूत सूर्यवंशी