धरती ने ओढ़ी तिरंगे की चादर,
गगन में गूँजे आज़ादी का स्वर,
हर दिल में उमंग, हर आँख में नूर,
देशभक्ति का रंग हो गया भरपूर।
याद करो वो दीप जो जलते रहे,
अंधियारे में भी जो पलते रहे,
उनके सपनों से उजियारा फैला,
उनके बलिदान ने हमको सँभाला।
ना केवल गुलामी से मुक्ति का नाम,
ये है सपनों का, संकल्पों का धाम,
जहाँ हर जन हो अपने में स्वतंत्र,
और हर मन में हो सेवा का मंत्र।
आज का दिन सिर्फ झंडा लहराना नहीं,
ये है कर्तव्य निभाना, रुक जाना नहीं,
सच्ची आज़ादी मेहनत में छुपी,
सपनों को सच करने की राह में जुड़ी।
नदी-सा बहना, पर्वत-सा अडिग रहना,
किसी भी तूफ़ान से ना कभी सहमना,
देश के लिए हर सांस को अर्पण,
यही है वीरता, यही है समर्पण।
गाँव से शहर, खेत से कारखाने तक,
मेहनत के गीत हर तराने तक,
जहाँ न भूख हो, न अशिक्षा का नाम,
वहीं होगा आज़ादी का सच्चा मुकाम।
तो आओ मिलकर लें ये प्रतिज्ञा आज,
न होगा देश पर फिर कोई ताज,
जब तक सांस, तिरंगे का मान रहे,
भारत का हर जन अभिमान रहे। — जतिन त्यागी