तुम पर नज़्म, गीत, कविता, बताओ क्या लिखूँ?
तुम्हे खुदा की रहमत से मिला "ख़िताब" लिखूँ ?
तुम्हारे आने से रोशन हुए है दिन-रात मेरे,
तुम्हे मश'अल-ए-महताब लिखूँ या "आफताब" लिखूँ?
कभी-कभी तसव्वुर से लगते हो तुम मुझे,
तुम्हे हकीकत लिखूँ या फिर एक "ख्वाब" लिखूँ?
सफर-ए-जिंदगी मे तुम्हारा यूँ शामिल होना,
इसे साज़िश लिखूँ या महज़ "इत्तेफाक" लिखूँ?
तुम आए तो बहारो ने लुटाई है खुशबू,
तुम्हे गुलिस्तां मे खिला हुआ "गुलाब" लिखूँ?
मालूम है इश्क़ रुहानी और इरादे पाक है तुम्हारे,
तुम्हारी अश्रन्-ए-सोज-ए-मोहब्बत "बेहिसाब" लिखूँ?
जो ढूंढ रहे हो मालूम है मुझे उलझन तुम्हारी,
तुम्हारे लबों पर सजे हर सवालों के "जवाब" लिखूँ?
चश्म-ए-नम मुस्कुराती है याद मे भी तुम्हारी,
चलो जनाब अब तुम पर इक "इताब" लिखूँ?
तुम्हारा चेहरा खुद मे ही एक मुक़म्मल ग़ज़ल है,
"कीर्ति" सोच रही है तुम पर कोई "किताब" लिखूँ।
Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️
मश'अल-ए-महताब = चाँद की रोशनी
आफताब = सूर्य, प्रकाश,
तसव्वुर = कल्पना
अश्रन्-ए-सोज-ए-मोहब्बत = "मोहब्बत के दर्द से निकले आँसू", "प्रेम की जलन/दर्द में बहते आँसू"
चश्म = आँखे
इताब = नाराजगी, गुस्सा