आज फिर एक दिन गुजर गया,
संसार अपनी अनोखी गति में खुश था।
सुख-दुख का विक्ष प्रयोग तीव्र था।
प्रेम के पंछी को मुक्त कर, अब अदृश्य डोरी से बाँध दिया था।
अमरत्व को विष का आलिंगन हो जैसे।
मैं व्यथित था,
पर मैं चलता ही गया अपनी दिशा में —
आकाशमार्गी...
_अवधूत सूर्यवंशी