मन से आगे बढ़ना सीखो
मन की अपनी अति और प्रीति की मांग है
अपने मन को व्यक्त कर समझना सीखो
मन चेतना और देह के बीच का बस एक संदेश वाहक है
पर संदेश वाहक को लगता की वही मालिक है
असल में हर समस्या का मूल मन के विस्तार से ही शुरू होता है
चेतना और बुद्धि अपने इनपुट देती है
पर मन अपने वायरस के साथ मस्त होता है
मन के आगे निकलने के बहुत मार्ग हैं
इसमें से सरल है, अपने आप को कुछ समय देना
यह ऐसा है जैसे आपने खुद को पढ़के एडजस्ट कर लिया है
असल में ड्राइविंग सीट पे चेतना को होना चाहिए था इस देह में
पर मन है, अब मन सैकड़ों बार रास्ता बदलता तो यात्री परेशान है
प्रेम, रस, करुणा, आनंद से भरा हमारा होना है
पर संदेशवाहक अगर मालिक हो तो बस अपने आप को खोना है
ज़िंदगी बहुत ज़्यादा खूबसूरत है मगर
मन के कारण आत्मकेश से सभी हैरान हैं
मन समझने का विषय है, लड़ने का नहीं
रोज जैसे हम नहाते हैं तन के लिए
मन को भी कैथार्सिस ध्यान से साफ करना है
चलो अभी सुबह सुबह ज़्यादा ज्ञान ना देता यह अवधूत
यह अभी आनंदित है, पर अपना संदेशवाहक भी ज़रा संवेदनशील है
_अवधूत सूर्यवंशी