Hindi Quote in Book-Review by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR

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कभी-कभी किताबें सिर्फ़ पढ़ी नहीं जातीं, महसूस की जाती हैं। “काठगोदाम की गर्मियाँ” ऐसी ही एक किताब है, जो पहाड़ों की ठंडी हवा, चाय की महक और अनकही बातों के बीच आपको एक सुकून भरी यात्रा पर ले जाती है।

“काठगोदाम की हवा में एक जादू है—जो धीरे-धीरे असर करती है।”
यह किताब आपको उसी जादू का एहसास कराती है, जहाँ हर पन्ने पर प्यार, दोस्ती और रिश्तों की सच्चाई सांस लेती है।

कर्निका और रोहन की कहानी शहर और पहाड़ की दो अलग दुनिया को जोड़ती है। उनकी मुलाकातें बताती हैं कि कभी-कभी ख़ामोशियां भी कहानियां कह जाती हैं।
“कभी-कभी, किसी के सामने चुप रहना… बहुत कुछ कह जाना होता है।”

इस किताब का हर अध्याय मानो ज़िंदगी के किसी भूले-बिसरे मोड़ से मिला देता है। कुछ पन्ने हल्के-फुल्के, चाय और मैग्गी की खुशबू से भरे हैं, तो कुछ पन्ने रूह तक छू जाते हैं।
“कुछ रिश्ते नाम से नहीं, वक़्त और खामोशी से बनते हैं।”

जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, आप खुद को उन पहाड़ों के बीच महसूस करने लगते हैं। और जब आख़िर में दो कप चाय के बीच यह कहानी पूरी होती है, तो दिल कह उठता है—
“दो कप चाय, दो दिल, और एक कहानी… जो वहीं पूरी होती है, जहाँ शुरू हुई थी।”

अगर आप दिल को छू लेने वाली प्रेम कहानियों और भावनाओं की गहराई को पसंद करते हैं, तो “काठगोदाम की गर्मियाँ” आपको अपनी ओर खींच लेगी। यह किताब सिर्फ़ एक पढ़ाई नहीं, बल्कि एक एहसास है जिसे आप बार-बार जीना चाहेंगे।

Hindi Book-Review by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR : 111988370
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