🌸 "मैं क़लम हूँ" 🌸
(एक कविता जो जज़्बात और हौसले को समर्पित है)
मैं क़लम हूँ, लिखती हूँ जज़्बात,
हर लफ़्ज़ में छिपा है एक नया साथ।
कभी आँसुओं का दरिया बन जाती हूँ,
कभी ख़्वाबों की उजली राह दिखलाती हूँ।
मैं हर दिल की छुपी दास्तां हूँ,
जो कभी ना कह सके, वो ज़ुबां हूँ।
मैं नारी के संघर्ष की पुकार हूँ,
एक माँ के अरमानों का संसार हूँ।
मैं प्रेम हूँ, विश्वास हूँ,
तो कभी दर्द भरी कोई आस हूँ।
मैं अख़बारों से अलग, सच्चाइयों की बात हूँ,
मैं मातृभारती की शान, हर कलम की बात हूँ।
चलो लिखें कुछ ऐसा जो समाज जगाए,
हर लफ़्ज़ से एक नई रोशनी फैलाए।
मैं हूँ क़लम – ना रुकती हूँ, ना झुकती हूँ,
सच बोलती हूँ, और सच ही लिखती हूँ।
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🔖 शीर्षक सुझाव:
"मैं क़लम हूँ – एक आवाज़ जो रुकी नहीं"
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- Priyanka Singh