Hindi Quote in Quotes by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR

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ज़िंदगी कभी-कभी ऐसे मोड़ पर ले आती है,
जहाँ किसी अजनबी से मिलने पर वो अपनापन महसूस होता है,
जो कई सालों में अपनों से भी नहीं हुआ।

कभी बस में, कभी ट्रेन में,
कभी किसी सफर या सम्मेलन में —
एक चेहरा, एक मुस्कान,
और फिर शुरू हो जाती है एक अनजानी बातचीत।

हम बात करते हैं —
बिना सोचें, बिना किसी डर के।
अपने ग़म, अधूरे ख्वाब, टूटे रिश्ते,
वो भी कह देते हैं जो शायद कभी
अपने सबसे करीबियों से भी नहीं कह पाए।

उस पल में लगता है —
जैसे किसी ने हमारे मन का बोझ हल्का कर दिया हो।
कोई है जो सुन रहा है,
जो हमें जज नहीं करेगा,
सिर्फ़ समझेगा।

लेकिन जब हम उस बातचीत से लौटते हैं —
अपने कमरे में,
अपने भीतर,
तो एक अजीब सा पछतावा उभरने लगता है।

“मैंने इतना सब कुछ क्यों कह दिया?”
“क्या उसने मुझे मज़ाक में लिया होगा?”
“क्या मैं बहुत जल्दी खुल गया?”

हम खुद से सवाल करने लगते हैं।
मन कहता है — “क्या मैंने अपनी भावनाओं को सस्ते में बेच दिया?”

यही वो बिंदु होता है, जहाँ हम सीखते हैं —
कि हर मुस्कराता चेहरा भरोसे के काबिल नहीं होता।
हर मौन टूटना ज़रूरी नहीं होता।
हर राहगीर दिल का हमसफ़र नहीं होता।

ज़िंदगी में कभी-कभी संवाद से ज़्यादा मौन जरूरी होता है।
कुछ बातें मन में रह जाएं तो बेहतर है,
क्योंकि हर जगह अपनापन नहीं होता,
और हर दिल अपना नहीं होता।

– धीरेंद्र सिंह बिष्ट
लेखक: मन की हार, ज़िंदगी की जीत

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