थक गई हूँ सबको दिखाते–दिखाते कि मैं मज़बूत हूँ,
मुस्कुराते–मुस्कुराते दिल का बोझ और भारी हो सा गया।
ये जो ख़ामोशी है न मेरी…
काश कोई इसे भी पढ़ पाता।
सबको लगता है मैं खुश हूँ,
हँसती हूँ, बोलती हूँ, लड़ती हूं , झगड़ती हूं
मगर कोई ये नहीं देखता कि
रातों को मेरी आँखें क्यों भीग जाती हैं?
परेशान होकर क्यों आंसू मुझसे ही रूठ जाती है?
काश कोई होता…
जो मेरी उलझी बातों में छुपे दर्द को सुन पाता,
जो पूछे बिना ही समझ लेता,
कि मेरी ख़ामोश रातें कितनी तन्हा होती हैं....
बस कोई ऐसा…
जो कहता — “रूठ जाया कर मुझसे, थक जाया कर इस दुनिया से,
मगर लौट आना मेरी बाहों में…
क्योंकि मैं समझता हूँ तुझे… तुम जैसी हो, वैसी ही…”
काश… कोई होता,
जिसकी आँखों में मैं अपना सुकून ढूँढ पाती,
जो मेरी कमज़ोरियों से भी मोहब्बत करता,
और बिना कुछ कहे…
मुझे अपना सा कर लेता,
पर हकीकत कुछ और ही नजर आता है!!!!
_Manshi K