उपजी याद कछार की, फसलें हुईं जवान।
सुखद रहा जीना सफल, जीवन गुजरा शान।।
यादें गाँव कछार की, कवियों की वह शाम।
विजय बागरी का सुखद,जन्म-कर्म का धाम।।
हुए व्यर्थ संबंध सब, छिनी प्रीति की डोर।
ईश्वर ही है जानता, कैसे होगी भोर ।।
करते समर्थवान ही, व्यर्थ सदा बकवास।
कर्म साधना छोड़ कर, उलझाते हैं खास।।