एक अधूरा ख़त... तेरे नाम"
कभी सोचा है कि किसी का सब कुछ होकर भी, कुछ न होना कैसा लगता है?
मैंने तुम्हें बेइंतहा चाहा... बिन शर्तों के, बिन उम्मीदों के।
बस एक चाह थी — कि तुम मेरी बातों में मुस्कुराओ, मेरी आँखों में खुद को देखो।
तुम जानते थे, मैं तुमसे प्यार करती हूँ।
जानते हुए भी, तुमने कभी वो जगह नहीं दी जिसे पाने के लिए मैंने खुद को भी पीछे छोड़ दिया।
मैंने अपने आपसे झूठ बोला, अपनी इज़्ज़त से समझौता किया, सिर्फ़ तुम्हारे लिए।
तुम्हें खोने का ख्याल भी मौत सा लगता था।
एक दिन भी अगर तुमसे बात न होती, तो लगता था कि सब कुछ खत्म हो गया है।
तुम्हें क्या पता, किसी की दुनिया सिर्फ़ एक इंसान से शुरू और खत्म हो सकती है।
तुम्हें क्या पता, प्यार कैसे किसी को तोड़ देता है — बिल्कुल ख़ामोशी से।
अब सोचती हूँ, प्यार वाकई अंधा होता है।
वो इंसान जिसे हम सब कुछ मानते हैं, वही हमें सबसे ज़्यादा रुलाता है।
मैं नहीं जानती अब तुम इस ख़त को कभी पढ़ोगे या नहीं।
पर अगर पढ़ो... तो इतना समझ लेना —
किसी ने तुम्हें पूरे दिल से चाहा था, और आज भी तुम्हारी यादों में कहीं ज़िंदा है।
– तुम्हारी कभी न पूरी हुई मोहब्बत
maya-