जय हनुमंत वीर बलवाना,
राम दूत अतुलित निधाना।
शंकर सुत संकट के नाशक,
भक्त वत्सल कृपाल प्रकाशक।
शनि की पीड़ा तुम ही हरौ,
दुखियों के दिन तू उजियारौ।
लाल लंगोट गदा कर धारी,
दुष्ट दलन महा बल भारी।
लंका जारि सीता सुधि लाई,
राम काज में तन-मन लाई।
भूत प्रेत सब भागे जाई,
जहाँ नाम हनुमंत सुनाई।
चौकी बैठो जो मन लावे,
भक्त का हर संकट मिट जावे।
घाट घाट में नाम तुम्हारा,
करे उजाला जीवन सारा।
राम लखन सीता के प्यारे,
दानव दल पर हो तुम भारी।
जो पढ़े हर शनिवार प्रेमा,
उतर जाए भवसागर सीमा।