“फोकटिया” सिर्फ एक किताब नहीं है — ये उन आवाज़ों की कहानी है जिन्हें कभी कोई सुनना नहीं चाहता था।
जिन्हें समाज ने हाशिये पर रखा, जिन्हें कभी गंभीरता से नहीं लिया गया, और जिनकी बातों को अक्सर “फोकट” कहकर टाल दिया गया — उनकी ज़िंदगी के अनुभवों में ही असल गहराई छुपी होती है।
फोकटिया उन्हीं लोगों की जुबान है।
वो लोग जो खुद को साबित नहीं करना चाहते, पर उनका हर खामोश लफ्ज़ कुछ कहता है।
वो लोग जो बड़ी डिग्रियों से नहीं, बड़ी समझ से जिए हैं।
वो लोग जिनके पास कम था, पर ज़िंदगी को देखने का नजरिया बहुत ज्यादा था।
इस किताब में आपको मिलेंगे ऐसे किरदार —
जो हंसते हैं जब टूटते हैं,
जो देते हैं जब खुद के पास कुछ नहीं होता,
और जो सवाल नहीं, जवाब बनकर सामने खड़े होते हैं।
📚 अगर आपने “फोकट में बोलने वालों” को कभी नजरअंदाज़ किया है,
तो यह किताब पढ़िए — शायद वही बातें आज आपको अंदर तक हिला दें।
✍️ लिखी है दिल से, कही गई है सच्चाई से,
“फोकटिया” पढ़िए और ज़िंदगी को नए नज़रिए से देखिए।
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💬 Comment below if you know a फोकटिया in your life — या शायद आप ही हैं एक!
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