उधौ कर्मण की गति न्यारी।
सब नदियाँ जल भरी-भरी रहियाँ सागर केहि बिध खरी। [1]
उज्वल पंख दिये बगुला को कोयल केहि गुन करि।
सुन्दर नयन मृग को दीन्हे बन-बन फिरत उजारी। [2]
मूरख-मूरख राजे कीन्हे पंडित फिरत भिखारी।
'सूर श्याम' मिलाने की आसा छिन-छिन बीतत भारी। [3]
- श्री सूरदास, सूर सागर
- Umakant