जुगनू की औलादों ने फिर से,
सूरज पर प्रश्न उठाए हैं।
शेरों की मादों के आगे,
कुछ गीदड़ गरजे आए हैं।
मेवाड़ वंश, कुल कीर्ति-दीप,
जिसकी गाथा अमर हुई।
उन राणा सांगा के घावों पर,
अब भुनगे क्यों मंडराई हुई?
उनसे कह दो यह देश शौर्य की,
मुट्ठी अब और तानेगा।
जो राणा के घाव न समझे,
वह इतिहास कहाँ पहचानेगा?
हल्दीघाटी की धूल अभी तक,
राणा की गाथा गाती है।
उस माटी का हर कण हमको,
बलिदान की राह दिखाती है।
तलवार उठी तो गंगा बोली,
तप का यह महायज्ञ है।
शिवा, प्रताप के वंशजों का,
रक्त शौर्य की पहचान है।
कुम्भा की छाया, बप्पा की गाथा,
रण की ज्वाला बनती है।
जहाँ स्वाभिमान का दीप जले,
वह धरती गंगा बनती है।
इतिहास तुम्हारी सरकारों का,
बंधक अब ना रहेगा जी।
उनसे कह दो यह देश लुटेरों को,
अब नहीं मानता है जी।
यह देश ऋणी उन पुण्य प्रवाहों का,
जिनसे गाथा बलिदान बनी।
यह देश ऋणी है वीर शिवा के,
परम प्रतापी अभिमान धनी।
उनसे कह दो वे राजनीति का,
गुणा-भाग घर में रख लें।
यह देश ऋणी है महाराणा,
सांगा के अस्सी घावों का! - ©️ जतिन त्यागी