बैठ कर हमेशा तेरी याद में नदी किनारे...
पूछते हैं हम कि तेरे बिना ये ज़िंदगी कैसे गुज़ारे...
भुला दूं तुझे ये कोई मज़ाक नहीं...
दुनिया कहती है अब हम में वो बात नहीं...
अब तो उम्मीद को उम्मीद नहीं तेरे आने की...
फिर भी नहीं भूल पा रहा लाख कोशिश कर ली भुलाने की...
सब कुछ पा के भी तेरे बिना खाली सा हूं...
बिना फूलों के बग़ीचे के माली सा हूं...
- Kshitij daroch