Hindi Quote in Book-Review by Kishore Sharma Saraswat

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उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 24 की

कथानक : सरकार बदलने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों के स्थानांतरण की सूचियां बनने लगीं। सबसे पहले जिला स्तर पर नये उपाचार्य नियुक्त हुए जिन्होंने आते ही समस्याओं सम्बन्धी प्रार्थना पत्रों पर कार्यवाही आरम्भ कर दी। केहर सिंह का प्रार्थना पत्र देखकर उन्होंने जगपाल का केस कविता से हटाकर किसी और को दे दिया जिससे कविता को घोर निराशा हुई।
वह अकेले ही सोच-सोचकर विचलित होती रही हालांकि वह रमन से इस बाबत बात करना चाहती थी।
एक बार दो लोगों के साथ रमन, कविता से मिलने पहुँचा और बताया कि गाँव के लोग आगामी चुनाव में उसके पिताजी को खड़े करना चाहते हैं लेकिन जब तक वे निर्दोष साबित नहीं हो जाते, चुनाव लड़ना अवैध है।
कविता ने बताया कि अब यह मामला किसी और को दे दिया गया है। रमन को यह सुनकर धक्का लगा।
बाद में कविता ने रमन को वापस बुलाकर उलाहना दिया कि वह क्यों मिलने नहीं आए जबकि वह काफी परेशान रही थी।
रमन ने पूछा कि परेशानी का क्या कारण था? कविता ने कहा कि आपके पिताजी पर केस के कारण ही, क्योंकि प्रतिद्वंद्वी उपाचार्य जी से स्वयं उससे केस वापस लेने के लिए मिल कर आए हैं।
काफी देर तक बात होने के बाद रमन को जाने से पहले कविता ने जाँच की प्रगति के बहाने ही सही, आने हेतु कहा।

उपन्यासकार ने इस अंक में देश के प्रति कर्तव्यनिष्ठ, समान विचारधारा किन्तु असमान पद व व्यक्तित्व के दो झिझकते, विवशता की डोर से बँधे, एक दूसरे के प्रति निष्ठावान एवं समर्पण रखने वाले प्रेम की ओर बढ़ते कपल का सधी हुई लेखनी से रोचक व मार्मिक चित्रण किया है।
कुछ बानगी देखिए:
- कविता ने बाहर निकले लोगों में से केवल रमन को अंदर बुलाने के लिए भेजा।
- 'माफ करना, उन लोगों के सामने मैं आपसे पूरी बात नहीं कर सकी। दूसरों के सामने कार्यालय की मर्यादा रखना भी जरूरी है।'
- 'मैं इस बात को समझता हूँ...घर और कार्यालय दो अलग जगह हैं और और इनकी परिस्थतियाँ भी एक दूसरे से भिन्न होती हैं। काफी समय हो गया, मैं भी इधर नहीं आया।'
- 'क्यों आपको किसी ने खूँटे से बाँध रखा था क्या?'
- 'कुछ ऐसा ही समझ लीजिए। खो देता है ईमान रोज का आना जाना। वरना आपसे मिलने की इच्छा तो सदैव बनी ही रहती है।'
- 'और कोई बहाना?'
- 'नहीं, और कोई बहाना नहीं है।'
- 'मैं पीछे परेशान रही और सोचती रही कि अगर आप होते तो अच्छा होता। किसी से मन की बात कह कर बोझ तो हल्का कर लेती।' (पृष्ठ 385)
लेखक एसडीएम कविता का चरित्र-चित्रण कुछ इस प्रकार करते हैं:
'पता नहीं, भगवान ने मेरा दिमाग कैसा बनाया है। मैं बड़ी से बड़ी विकट स्थिति से कभी नहीं घबराती, परन्तु अन्याय की एक छोटी सी बात भी मेरा मन विचलित करने के लिए काफी है। मेरा धैर्य मेरा साथ छोड़ देता है। आप भली भाँति जानते हो, मैं इंसाफ और इंसानियत का दामन थाम कर इस सेवा में आई हूँ।' (पृष्ठ 386)

कहना होगा कि लेखक जीवन के हर पहलू का रोचक और मर्मस्पर्शी चित्रण करने में सफल रहे हैं।

समीक्षक: डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
25.12.202

Hindi Book-Review by Kishore Sharma Saraswat : 111963280
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