उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 20 की
कथानक : राधोपुर ग्राम पंचायत के चुनाव अब छ: माह ही दूर थे। लेकिन इस बार परिस्थितियाँ वर्तमान सरपंच केहर सिंह के पक्ष में नहीं थीं क्योंकि केहर सिंह की धूर्तता लोग पहचान गए थे। साक्षरता बढ़ना भी लोगों को सजग कर रहा था।
केहर सिंह यह सब अनुभव कर अपने गुर्गों के साथ मंत्री की शरण में चला गया। मंत्री ने एसडीएम कविता से बात कर आदेशित किया कि वह एक तो सरपंच केहर सिंह के विरुद्ध विचाराधीन झूठी शिकायत को रफा-दफा कर दे। दूसरे, जगपाल चौधरी की फाइल निकाल कर उस पर तुरंत कार्रवाई करे।
कविता ने दोनों फाइलें निकलवा कर उनका अध्ययन किया व दोनों पार्टियों को उपस्थित होने का नोटिस दे दिया।
कार्रवाई के दिन फिर कविता के पास मंत्री का धमकी भरा फोन आ गया कि क्या कुछ करना है!
कार्यवाही शुरू होने से पहले केहर सिंह ने एसडीएम से मिलना चाहा तो कविता ने बाहर बैठने को कहा।
बैठक के समय सरपंच की आशा के विपरीत एसडीएम ने जानबूझ कर पहले सरपंच के विरुद्ध शिकायत का केस उठाया और इस सम्बन्ध में लोगों का पक्ष जाना तो सरपंच व पटवारी से जवाब देते न बना। इससे कविता को उनकी करतूत का पता चल गया। कहा कि वह गाँव जाकर पूरे मामले की जाँच-पड़ताल करेगी।
उसके बाद जगपाल चौधरी का केस लिया तो रमन ने अपने पिता का पक्ष अच्छी तरह रखा। यहाँ भी सरपंच व उसके आदमियों की वास्तविकता सामने आ गई।
कविता पूर्व में रमन से प्रोफेसर घोष के साथ सेमिनार में मिल चुकी थी और उसे पहचान भी लिया था अत: रमन को बाद में अलग से बुलाकर बात की तो रमन भी कविता को पहचान गया। दोनों के बीच वार्तालाप हुआ और रमन ने बताया कि किस तरह से सरपंच ने उसे झूठा केस बनवा कर सिविल परीक्षा से वंचित कर दिया और उसे पाठशाला खोलनी पड़ी।
उसने कविता से न्याय करने की अपील की तो कविता ने कहा कि वह इसी पावन उद्देश्य से सिविल सेवा में आई है।
उपन्यासकार ने 18 पृष्ठीय इस अंक में न्याय-अन्याय, झूठे-सच्चे लोगों की दास्तानें कहीं यथार्थ तो कहीं व्यंग्य की पिचकारी द्वारा अभिव्यक्त की हैं। साथ ही भ्रष्ट नेताओं द्वारा कर्मठ, ईमानदार अधिकारियों को काम न करने देने व दबाव की राजनीति उजागर की है।
प्रस्तुत हैं कुछ रोचक संवादों के अंश:
(1). 'मैडम, राधोपुर गाँव का सरपंच आपसे मिलना चाहता है।'
'किसलिए?'
'कहता है, उसे मंत्री जी ने भेजा है।'
'उससे कह दो, मैडम किसी जरूरी काम में व्यस्त है, बाद में बात करना।'
यह सुनकर सरपंच का चेहरा उतर गया। उसकी पूरी हेंकड़ी रफूचक्कर हो गई। वह मुँह लटकाए बाहर की ओर निकल गया। (पृष्ठ 312)
(2). 'आप में से केहर सिंह सरपंच कौन है?'
'जनाब, केहर सिंह सरपंच मैं हूँ।'
'सरपंच साहब, ये बाढ़ घोटाला का क्या माजरा है? क्या कुछ गड़बड़ हुई है इसमें?'
'जनाब, माजरा कुछ नहीं है। वैसे भी कुछ सिरफिरे लोगों ने राई का पहाड़ बना दिया है।'
'बिल्कुल सही फरमाया आपने सरपंच साहब, आप जैसे ईमानदार और भले मानुष्य को लोग कुछ अधिक ही परेशान करते हैं।' (पृष्ठ 313)
(3). 'क्या बात है मैडम, आपने मुझे बुलवाया है?'
'हाँ, मैं आपसे कुछ व्यक्तिगत बात करना चाहती हूँ।'
'जी, पूछिये।'
'अगर मैं गलती पर न होऊँ, तो क्या आपका नाम मि. रमन है?'
'जी हाँ मैडम, आप मुझे नाम से कैसे जानती हैं?'
'क्यों आप मुझे नहीं पहचानते हो क्या?'
'आप मिस कविता तो नहीं हैं?'
'यस, आपने बिल्कुल ठीक पहचाना है। आप तो सिविल सर्विसेज के लिए तैयारी कर रहे थे, अब क्या कोई और कैरियर चुन लिया है?'
'अपनी-अपनी किस्मत की बात है। जिस दिन परीक्षाएँ शुरू होनी थीं, उससे एक दिन पहले इसी सरपंच ने मुझे एक झूठे पुलिस केस में फंसवा दिया था। मैं परीक्षा में नहीं बैठ सका। यही घटना मेरी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट बन गई।'
'यह तो बहुत बुरी बात हुई। अब क्या कर रहे हो?'
'समाज सेवा। गाँव में बड़े-बुजुर्गों और अशिक्षितों के लिए एक पाठशाला चला रहा हूँ। इससे उनका भी भला हो रहा है और मेरी रोजी-रोटी भी चल रही है।'
'यह तो बहुत ही अच्छा कार्य है। परन्तु आप जैसे कर्मठ और ईमानदार व्यक्ति को तो समाज सेवा से कहीं ऊपर राष्ट्र सेवा में होना चाहिए था।' (पृष्ठ 320-21)
उक्त संवादों के अंश उपन्यास के कथानक में जान डाल देते हैं। इनमें सहजता, सरलता अपने विशिष्ट स्वरूप में देखने को मिलती है जो यथार्थपरक व अन्यायपूर्ण पूर्ण होने पर भी उनके विरुद्ध जाने का मार्ग प्रशस्त करती है।
लेखक ने कविता व रमन के रूप में जो पात्र चुने हैं, वे महान बनकर आदर्श परिस्थितियों का निर्माण कर रहे हैं, सुखद लग रहा है।
समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
21.12.202