उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 16 की
कथानक : जयवंती के विवाह की मुख्य सूत्रधार माधो की बहन नसीबो को समझ नहीं आ रहा था कि दोनों परिवारों के शरीफ व इज्जतदार होने तथा सुशील, सुन्दर, साक्षात देवी की मूरत जयवंती के बावजूद यह आग किसने लगाई है? आखिर नसीबो के शक की सूई अपनी भाभी पर आकर ठहर ही नहीं गई बल्कि उसने प्रमाण भी जुटा लिए।
नसीबो ने अपने भाई माधो को अलग ले जाकर सही बात बताई तो माधो का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और वह तेजी से अपनी पत्नी ननकी को सबक सिखाने अपने घर की ओर जाने लगा तो नसीबो ने अपने भाई को कसम दिला दी कि वह भाभी से मारपीट नहीं करेगा।
माधो का गुस्सा देखकर शेरनी की तरह दहाड़ने वाली ननकी आज मेमना सी नजर आई।
माधो ने उसे मारने के लिए छड़ी उठाई किन्तु बहन की कसम याद आने पर छड़ी को फेंक कर पत्नी पर क्रोधित होकर उसे हमेशा के लिए घर छोड़ने के लिए ललकारा। फिर खुद ही उसकी बाँह पकड़कर घर से निकालने लगा तो भी बात नहीं बनी तो उसका बाजू छोड़कर प्यार से समझाने लगा।
अब ननकी ने अपना अपराध स्वीकार कर सरपंच के झांसे में आने की बात कही। वह पूरी तरह बदल चुकी थी।
माधो के कहे अनुसार पड़ोस के ट्रेक्टर वाले के साथ गुंजनपुर जाकर उसने वर पक्ष को सही-सही बात बता दी और राधोपुर लौट आई।
उधर गुंजनपुर में बिरादरी की पंचायत बुलाकर सरपंच केहर सिंह की इस घिनौनी हरकत के लिए उसका भाई-बिरादरी से बहिष्कार का निर्णय लिया गया और जीप का इंतजाम कर वर पक्ष के गिने-चुने लोग राधोपुर के लिए रवाना हो गए।
उपन्यासकार ने कथानक को रोचक बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इस बात की गवाही निम्न संवादों के अंशों की जुबानी:
- ननकी की हालत अब उस मेमने की तरह हो गई थी जिसे शेर को फांसने के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल किया गया हो। कहते हैं कि डंडे के आगे तो भूत भी नाचते हैं। ननकी को नचाने वाला मदारी कुछ ही कदमों के फासले पर था। (पृष्ठ 265)
- 'कुलटा! मेरे घर से इसी वक्त निकल जा। तेरा और मेरा सम्बन्ध अब खत्म हो चुका है। तेरे पापों का घड़ा अब भर कर फूट चुका है। इससे पहले कि किसी अनर्थ के लिए मेरा हाथ दोबारा ऊपर उठे, तू इसी समय मेरी नजरों से दूर हो जा। मैं अपाहिज तो उसी दिन हो गया था जिस दिन तू इस घर में ब्याह कर आई थी...एक देवी स्वरूप लड़की को चरित्रहीन बतलाकर तूने अपने अगले जन्म के लिए भी पाप की गठरी बाँध ली है।' (पृष्ठ 265)
- मैं तो सीधा-सादा एक ईमानदार किसान हूँ। परन्तु इतना मैं जरूर जानता हूँ कि बुरे कर्मों का फल हमेशा बुरा ही होता है।' (पृष्ठ 266)
- 'तू इंसान होकर भी शैतान वाले काम क्यों करती है? हम दोनों की आधी से अधिक जिंदगी बीत चुकी है, वह भी एक कुत्ते और बिल्ली के समान। एक छत के नीचे रहते हुए भी हम हमेशा एक दूसरे पर गुर्राते रहे। जरा सोच, क्यों और किसलिए?' (पृष्ठ 266)
- ननकी भी अब समय के आगे थक चुकी थी। उसे अतीत की परछाइयों से भय लगने लगा था। वह उनकी गिरफ्त से मुक्त होना चाहती थी। ननकी को भी सहारे की जरूरत थी। वह अपनी पलकें नीची किए माधो के पास पहुँची और अपना सिर उसके सीने से लगाकर फफक-फफक कर रोने लगी। (पृष्ठ 266-67)
किसी बहुत बुरे इंसान को मार-पीट कर नहीं सुधारा जा सकता लेकिन उसे प्यार से समझा कर अतीत में किए उसके पापों का अहसास करवाकर सही राह पर लाया जा सकता है, यह बात लेखक ने अपनी सशक्त लेखनी द्वारा उद्घाटित की है।
जयवंती के विवाह से जुड़ी एक और कड़ी पूर्ण होकर यहाँ चहुंओर उजास की किरणें विस्तार पाती प्रतीत हो रही हैं।
लेकिन पाठक अब भ्रमित हो रहे होंगे कि जयवंती का विवाह आखिर किस्से होगा?
यह जानने के लिए अगले भाग की प्रतीक्षा कीजिए।
समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमे