नैना मत खाइयो, पिया मिलन की आस।।
अर्थ: हे काग (कौवा) तन के हर जगह का माँस खाना पर आँखों का नहीं, क्योंकि मरने के बाद भी आँखों में पिया (प्रभु) मिलन की आस रहेगी ही रहेगी।
~ बाबा शेख फ़रीद
आचार्य प्रशांत: शेख फ़रीद ने वृद्धावस्था को लेकर और वियोग को लेकर ख़ूब कहा। तो कह रहे हैं कि वियोगी मन, वियोगी स्त्री राह तकते-तकते वृद्धा हो गयी, अब मौत सामने खड़ी है। और उस मुक़ाम पर वह कहती है कि, ‘अरे कागा, अरे कौवे, इस शरीर की मुझे बहुत परवाह नहीं। अब मर तो मैं जाऊँगी ही; तुझे जहाँ-जहाँ से माँस नोचना होगा, नोच लेना, चुग-चुग खा लेना, पर आँखें छोड़ देना मेरी। नैनों पर चोंच मत मारना।’ क्यों? उनमें पिया मिलन की आस है।
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- Umakant