"तुम्हारी मोहब्बत का नूर"
तुमने समुंदर देखा या किनारा,
गुलाब की पंखुड़ियों की खुशबू ने मधुमक्खी को खींचा,
वैसे ही तुम्हारी बदन की महक,
मुझे मदहोश कर जाती है सदा।
तुम्हारे चेहरे का नूर ऐसा है,
जैसे शरद पूर्णिमा की रात का चांद,
और तुम्हारी आँखों की मटक,
जैसे पहाड़ों से बहता शुद्ध पानी का झरना।
तुम्हें पाने की खुशी ऐसी है,
जैसे भक्ति को उसका इष्ट देव मिल जाए,
तुम्हारी मोहब्बत में खो जाने से,
ज़िंदगी में हर खुशी मिल जाए।