कब मिलूंगी तुमसे?
क्या कहूंगी तुमसे?
क्या कुछ कह भी पाऊंगी?
या बस एक टक देखती रहूंगी
कितना कुछ कहना है,
कितना कुछ करना है,
तुम्हें गले से लगाना है,
और सब कुछ भूल जाना है
सुनो..
जब मिलूंगी तुमसे
कुछ न कहूंगी तुमसे
मेरी आंखें जो कह जाए कुछ
बस पढ़ लेना ज़रा सुकून से..