जाने कितनी बाते रह गई अधूरी
कितने जज्बात उठे थे दिल में
जब देखा था तुमने पीछे मुड़के
खामोश थे लब
लेकिन हो रही थी बाते
आंखो के इशारे से
कह ना पाएं कभी
पर ढूंढा करती थी आंखे मेरी भी तुम्हे
याद आती थी तन्हाई में मुझे भी
सताते थे तुम खयालों में आंके
आज दूर होकर भी
याद आती है वो आंखे
जो देख के हमे
रूक जाती ती हम ही पर।
-️v