#_दाग़_हूं_मैं____SJT
दाग़ मुझमें थे और मैं कपड़े बदलता रहा,
आग उनमें ही थी पर मैं यूं ही जलता रहा,
कई दफा ख़ुद को बदलना चाहा मैनें,
पर ऐब इतने थे मुझमें कि मैं मरता रहा,
रंजिश ए ज़िन्दगी में उतर गई इस कदर,
सौदा अपनी सांसों का मौत से करता रहा,
ज़गमगाते जुगनुओं ने रास्ता दिखाया तो,
एक भयानक तूफान मेरी तरफ बढ़ता रहा,
मेरी ही कश्ती के कुछ मुसाफिरों ने मुझे,
बार बार गिराया पर हर बार मैं चढ़ता रहा,
कुछ हमदर्द बनकर आए सुलाने के वास्ते,
वो सोते रहे बेख़ौफ़ होकर मैं जगता रहा,
ज़िन्दगी के सफ़र में बहुत हमसफ़र मिले ,
उतर गए अपने स्टेशनों में पर मैं चलता रहा,
इक अधूरी आश लिए की पूरी हो जाए अब,
इसलिए ज़मीं के ख़ुदाओं के घर भटकता रहा,
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